शनिवार, 31 मई 2008

कृषि नीति क्या ऐ सी रूम मे बैठ कर तैयार होती है ?
यह शायद हमारा दुर्भाग्य कहे की सोभाग्य किहमारी कृषि नीति उन लोगो द्वारा बनाई जाती है जिन्हें न देश की कृषि विरासत की जानकारी है न ही भोअगोलिक विषम ताओ की ,वे सिर्फ़ कागजी घोडे है जो यस सर की परम्परा पर चलते हुए जी हुजूरी करते फिर रहे , कहने को तो देश मे कृषि विस्वविद्यालय है पर वो भी सिर्फ़ वर्चस्व की लड़ाई मे उलझे हुए है । लालफीताशाही का फंदा यहाँ भी मजबूत है और फाइलों पर ही काम होता है खेतो मे नही ।
छत्तीसगढ़ मे देखा जाए तो विगत वर्षो मे कई योजनाये लागू की गई लेकिन अभी तक कोई सार्थक परिणाम नजर नही आता ,कृषि विभाग अपने महकमों से क्या कार्य कराती है कोई नही जानता , सिर्फ़ बजट को खर्च करना ही उनका उद्देश्य होता है , कृषि विभाग के आंकडे भी विस्वस्नीय नही होते है हर साल अपने लक्ष्य पूर्ति को सिर्फ़ कागज वृद्धि करते जाते है

शुक्रवार, 30 मई 2008

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
समाज के लिए प्रतिबद्घ

मंगलवार, 27 मई 2008

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
आज की बात -
विकास के मायने क्या है , क्या विकसित समाज सुख से रहता है , क्या सड़के भवन कॉलेज विकास के प्रतीक है, इंटरनेट मीडिया पैसा स्टाक मार्केट से जुड़े लोग विकसित है? या सुदूर आदिवासी अंचलों मे रहने वाले लोग भी विकसित है

शनिवार, 3 मई 2008

कुर्यात सदा मंगलम

कुर्यात सदा मंगलम

सृष्टि के रचियेता ईश़्वर ने मानव को श्रेष्ठ कर्मो को करने के लिए रचना की है । मनुष्य योनि मे जन्म लिए व्यक्ति का यह धर्म है की वह सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए कर्म करे। मानव ने समाज का संगठन भी इसीलिए बनाया कि वह पथ भ्रष्ट न हो कर श्रेष्ठ मार्ग पर चल सके। हर जाति ,धर्म ,सम्प्रदाय , समाज ,देश,मे अलग अलग संगठन सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए ही बनाए जाते है । सभी धार्मिक सामाजिक आर्थिक तंत्र किसलिए कार्य करते है ? मात्र मानव हित के लिए ,मानव की समृधि के लिए ,मानव कल्याण के लिए । पर क्या यह यथार्थ मे दिखाई देती है ? तथ्य यह है कि लोग संगठन का ,समाज का, धर्म का सिर्फ़ संकुचित स्वार्थ के लिए उपयोग करते दिखायी देते है । लेकिन ऐसा क्यो ? आज भी परिवार जाति कुटुंब जैसी सामाजिक संस्थाओ का अस्तित्व सिर्फ़ समाज के कारण ही अस्तित्व मे है ।