मंगलवार, 25 सितंबर 2012

क्टुबर 2008 पिंजरा के सुवा कानून बेवस्था होगे फेल, जंगल मा होगे रक्सा राज। फुग्गा फुलावे बजावे गाल, बैरी झपट्टा मारे जइसे बाज।। कई कोरी गांव के लोगन ला, बसाइस सहत सिविर मा। गांव छुटे परिवार उजड़गे, बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।। खार खेत सब होगे परिया, माल मवेसी जंगल म जाय। ए पार नरवा ओ पार ढ़ोंड़गा, दिन रात जी हा गांव मा जाय।। लरा जरा के खुब सुरता आथे, चिरई होतेव उड़ के जातेव। तिहार बार के सुन्ना लागथे, तिजा नवई लेवा के लातेव।। बेटी के नान नान नोनी बाबु, बड़ उतययिल ओमन हाबय। बरजय बास मानय नहीे, घेरी बेरी नरवा म जावय।। का गलती करे हन भगवन, सिविर मा हमला डारे तय हर। तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे, का के सजा देवत हस तेहा।। वरदी वाला डंडा लहरावे, बात बात म वो खिसयाथे। काकरो सुने के आदत नईये, टांट भाखा सुन माथा पिराथे।। हमला देखके बन के बघवा, मुड़ी गडि़याय पूछी ओरमाय। टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन, धमकी देवे नी सरमाय।। चिरई चुरगुन ला उड़त देख, मन हा उड़थे बादर मा। कुहू कुहू कोयलिया बोले, थाप लगातेव मांदर मा।। हइरना मिरगा नरतन करय, मूरली बजावे पड़की मैना। फुदक फुदक के भठलिया नाचे, कमर मटकावे बन कैना।। भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी, मईंद खार म लारी बनातेव। मडि़या जोंधरा जुवार बाजरा, सूवा रमली दूर भगातेव।। आमा अमली अऊ चार तेंदू, सबके अब्बड़ सूरता आथे। महुवा फुल बिने बा जातेंव, बांस करील के सुरता आथे।। चार चिरौंजी बजार हाट मा, सहेब सुदा मन सूब बिसाथे। दूनो परानी संग मा जाथन, नी जाब मा घरवाली रिसाथे।। सिविर बंधन तन ला बांधे, मन तरंग मा उडि़ उडि़ जाय। कब तक हम बंधाके रहिबो, सूवा पिंजरा मा असकटाय।। हमर सुनइया कोनो नइये, लगथे हमला जग अंिधयार। लाल लाल आंखी सबो दिखाथे, कहां से मिलही हमला पियार।। बन मा घुमय बन मानुस, दादा दीदी ओमन कहलाय। घर म जबरन आके घूसय, पेज पसिया सबो खटिया जठना मा वो सूतय, मुहाटी मा हमला कुकरा बासत घर से निकले, जावत बेरा घुब धमकाय।। पुलिस वाला आवे चढ़ती बेरा, बांध के लाने पुलिस थाना। गारी बखाना खुब देवय, लात घुसा के रहय पीना खाना।। दलम वाला हमर दार दरे, पुलिस वाला करय पिसान। जाता मा हम पिसावत हन, नी बाचय थोरको निसान।। धरती वाला सब आंखी मंूदे, हमला सब कोई डरवाय। प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं, तेहा काबर चुप मिटकाय।।


क्टुबर 2008 पिंजरा के सुवा कानून बेवस्था होगे फेल, जंगल मा होगे रक्सा राज। फुग्गा फुलावे बजावे गाल, बैरी झपट्टा मारे जइसे बाज।। कई कोरी गांव के लोगन ला, बसाइस सहत सिविर मा। गांव छुटे परिवार उजड़गे, बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।। खार खेत सब होगे परिया, माल मवेसी जंगल म जाय। ए पार नरवा ओ पार ढ़ोंड़गा, दिन रात जी हा गांव मा जाय।। लरा जरा के खुब सुरता आथे, चिरई होतेव उड़ के जातेव। तिहार बार के सुन्ना लागथे, तिजा नवई लेवा के लातेव।। बेटी के नान नान नोनी बाबु, बड़ उतययिल ओमन हाबय। बरजय बास मानय नहीे, घेरी बेरी नरवा म जावय।। का गलती करे हन भगवन, सिविर मा हमला डारे तय हर। तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे, का के सजा देवत हस तेहा।। वरदी वाला डंडा लहरावे, बात बात म वो खिसयाथे। काकरो सुने के आदत नईये, टांट भाखा सुन माथा पिराथे।। हमला देखके बन के बघवा, मुड़ी गडि़याय पूछी ओरमाय। टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन, धमकी देवे नी सरमाय।। चिरई चुरगुन ला उड़त देख, मन हा उड़थे बादर मा। कुहू कुहू कोयलिया बोले, थाप लगातेव मांदर मा।। हइरना मिरगा नरतन करय, मूरली बजावे पड़की मैना। फुदक फुदक के भठलिया नाचे, कमर मटकावे बन कैना।। भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी, मईंद खार म लारी बनातेव। मडि़या जोंधरा जुवार बाजरा, सूवा रमली दूर भगातेव।। आमा अमली अऊ चार तेंदू, सबके अब्बड़ सूरता आथे। महुवा फुल बिने बा जातेंव, बांस करील के सुरता आथे।। चार चिरौंजी बजार हाट मा, सहेब सुदा मन सूब बिसाथे। दूनो परानी संग मा जाथन, नी जाब मा घरवाली रिसाथे।। सिविर बंधन तन ला बांधे, मन तरंग मा उडि़ उडि़ जाय। कब तक हम बंधाके रहिबो, सूवा पिंजरा मा असकटाय।। हमर सुनइया कोनो नइये, लगथे हमला जग अंिधयार। लाल लाल आंखी सबो दिखाथे, कहां से मिलही हमला पियार।। बन मा घुमय बन मानुस, दादा दीदी ओमन कहलाय। घर म जबरन आके घूसय, पेज पसिया सबो खटिया जठना मा वो सूतय, मुहाटी मा हमला कुकरा बासत घर से निकले, जावत बेरा घुब धमकाय।। पुलिस वाला आवे चढ़ती बेरा, बांध के लाने पुलिस थाना। गारी बखाना खुब देवय, लात घुसा के रहय पीना खाना।। दलम वाला हमर दार दरे, पुलिस वाला करय पिसान। जाता मा हम पिसावत हन, नी बाचय थोरको निसान।। धरती वाला सब आंखी मंूदे, हमला सब कोई डरवाय। प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं, तेहा काबर चुप मिटकाय।।

kavita

क्टुबर 2008 पिंजरा के सुवा कानून बेवस्था होगे फेल, जंगल मा होगे रक्सा राज। फुग्गा फुलावे बजावे गाल, बैरी झपट्टा मारे जइसे बाज।। कई कोरी गांव के लोगन ला, बसाइस सहत सिविर मा। गांव छुटे परिवार उजड़गे, बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।। खार खेत सब होगे परिया, माल मवेसी जंगल म जाय। ए पार नरवा ओ पार ढ़ोंड़गा, दिन रात जी हा गांव मा जाय।। लरा जरा के खुब सुरता आथे, चिरई होतेव उड़ के जातेव। तिहार बार के सुन्ना लागथे, तिजा नवई लेवा के लातेव।। बेटी के नान नान नोनी बाबु, बड़ उतययिल ओमन हाबय। बरजय बास मानय नहीे, घेरी बेरी नरवा म जावय।। का गलती करे हन भगवन, सिविर मा हमला डारे तय हर। तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे, का के सजा देवत हस तेहा।। वरदी वाला डंडा लहरावे, बात बात म वो खिसयाथे। काकरो सुने के आदत नईये, टांट भाखा सुन माथा पिराथे।। हमला देखके बन के बघवा, मुड़ी गडि़याय पूछी ओरमाय। टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन, धमकी देवे नी सरमाय।। चिरई चुरगुन ला उड़त देख, मन हा उड़थे बादर मा। कुहू कुहू कोयलिया बोले, थाप लगातेव मांदर मा।। @@2@@ हइरना मिरगा नरतन करय, मूरली बजावे पड़की मैना। फुदक फुदक के भठलिया नाचे, कमर मटकावे बन कैना।। भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी, मईंद खार म लारी बनातेव। मडि़या जोंधरा जुवार बाजरा, सूवा रमली दूर भगातेव।। आमा अमली अऊ चार तेंदू, सबके अब्बड़ सूरता आथे। महुवा फुल बिने बा जातेंव, बांस करील के सुरता आथे।। चार चिरौंजी बजार हाट मा, सहेब सुदा मन सूब बिसाथे। दूनो परानी संग मा जाथन, नी जाब मा घरवाली रिसाथे।। सिविर बंधन तन ला बांधे, मन तरंग मा उडि़ उडि़ जाय। कब तक हम बंधाके रहिबो, सूवा पिंजरा मा असकटाय।। हमर सुनइया कोनो नइये, लगथे हमला जग अंिधयार। लाल लाल आंखी सबो दिखाथे, कहां से मिलही हमला पियार।। बन मा घुमय बन मानुस, दादा दीदी ओमन कहलाय। घर म जबरन आके घूसय, पेज पसिया सबो खटिया जठना मा वो सूतय, मुहाटी मा हमला कुकरा बासत घर से निकले, जावत बेरा घुब धमकाय।। पुलिस वाला आवे चढ़ती बेरा, बांध के लाने पुलिस थाना। गारी बखाना खुब देवय, लात घुसा के रहय पीना खाना।। दलम वाला हमर दार दरे, पुलिस वाला करय पिसान। @@3@@ @@2@@ च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ @@3@@ जाता मा हम पिसावत हन, नी बाचय थोरको निसान।। धरती वाला सब आंखी मंूदे, हमला सब कोई डरवाय। प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं, तेहा काबर चुप मिटकाय।। ......................................................................000............................................................................... च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ 17 अक्टुबर 2008 बगुला भगत संतन बन के आइस बगुला, तरिया तिर मा बनाइस डेरा। एक गोड मा चुप खड़े रहय, राम नाम के करत हे फेरा।। ह पता बीते महिना गुजरगे, दाना पानी छोड़ करय तपस्या। मछरी मुखिया करय निवेदन, संतन कहे, हावे भारी समस्या।। हिमालय मा में करंव तपस्या, मिलिस तप बल से दिव्यशक्ति। भगवान बोले हे भक्त राज, अलौकिक हावे तोर शिव भक्ति।। मांग वरदान, जो मांगे सो पावे, प्रभु, जन सेवा में तोला मांगव। रूपिया पैसा सब थोथा जानो, शक्ति दे, में तोर पइंया लागवं।। प्रसन्न हो शिव खोलिस खजाना, दीस मांला अलौकिक दिव्य शक्ति। भूत भविष्य सब दिखथे मोला, यहां तक लाइस परम शक्ति।। होही यहां भारी उथल पुथल, धरती डोलय अऊ पानी उछलय। चिखला पानी सरमेट्टा होय, आग बरसही होही परलय।। जीव जंतु बर दया के भावना, करंव तपस्या तुहंर खातिर, करही भगवान तुहंर रक्षा। प्राण तियागहूं तुहंर खातिर।। तरिया के मछरी होगे भयभीत, स्वामी जी! प्राण रक्षा बता उपाय। बगुला बने चतुरा हुसयार, जीव जंतु ला बताइस उपाय।। सोच म परगे सब मछरी, सरांगी बिजलू कोतरा टेंगना। बामी रूदवा चिंगरी केकरा, मोंगरी देखे बगुला के रंेगना।। @@4@@ पोटोर पोटोर भुख मरत हे, अढि़या बिन पोटा अटियाय। लप लप लप जीभ हर करय, करिया चोंच मा लार टपकाय।। देखा आंखी मा मछरी देखय, राम राम ला वो सुमरत जाय। मोंगरी सोचे दार मा कुछ काला, फौरन मछरी बैठक बुलाय। लेबो परीक्षा ढ़ोंगी संतन के, केकरा गीस बगुला के निकत। मछरी मन सब तमासा देखय, बगुला बर समस्या बिकट।। बगुला केकरा ला आवत देखे, दूनों डाढ़ा ला केकरा फैलाय। बगुला डर मा पाछू घंूचय, सोचत हे, का होगे बिन बुलाय।। कोकड़ा ला कारी पसीना छुटय, मारे डर के भारी जर हमागे। रक्सा बरोबर केकरा दिखय, कोकड़ा के करेजा डर समागे।। मछरी के भोरहा तरिया आवे, केकरा के सपेटा मा परगे। संतन चोला फेंकिस कोकड़ा, केकरा के चरण मा गिरगे।। कोक कोक कोकड़ा नरियाय। चिंगरी कोतरी नाचय कूदय, मछरी मन अति हर साय।। .............................................................................000........................................................................ च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ 12 अक्टुबर 2008 कुकुर देव दूर देश ले आवय ओमन, कहलावे व्यापारी बंजारा। घोड़ा खच्चर के बने काफिला, लेकर चलय दल बंजारा।। लइका सियान अउ दाई माई, पूरा परिवार संग मा चलय। छेरी बोकरा, कूकरी कुकरा, माल मवेसी ला घलो धरय।। नून तेल गुर अउ मनिहारी, बंजारा करय सबो व्यापार। तरिया नदिया पानी असलग, डेरा लगावे चतुरा हुसयार।। दूर दूर तक घूमय फिरय, बट्टा मा धन वदूसा लगाय। सीजन मा जब वापस आवे, करजा वसूले पइसा कमाय।। नाचा गाना संगीत के परेमी, दिन मा घूमे राम मन बहलाय। लोगन से हिल मिल के रहे, सुख दुख मा रहे सहाय।। एक रिहिस गरीब किसान, काम बुता मा कोढि़या अलाल। बंजारा से मांगिस करजा, मदद कर मोर परे हे दुकाल।। हाथ जारिस आऊ पांव परिस, आगे असाड़ खड़ा होगे नांगर। बिसाहूं बइला करहूं किसानी, भरोसा करबे चलत हे जांगर।। गांव वाला सब गवाही दीही, पतियाबे, झन समुझबे लबरा। परिवार बिपत मा पड़े हे मोर, अकाल के मार परत हे जबरा।। दुखल सुन पसीज के बंजारा, ले पइसा मेहनत बने करबे। भगवान रही तोर बर सहाय, काम बुता ल कभू झन डरबे।। प्रसन्न मन से चलय किसान, बइला खरीदिस करिस जुताई। दिन आऊ रात एक करिस , बीजा पाटिस होगे बुवाई।। आगू आगू सब काम करय, करिस निंदाई होगे बियासी। सरग भरोसा खेती किसानी, खेत मांगे पानी, मरे पियासी। बादर उठे हवा उड़ा ले जाय, पानी बिन सब खेत सुखागे। मेहनत खुब करे किसान, दुर्दशा देख चेहरा मुरझागे।। करगा बदरा लूवे किसान, मवेसी बर पैरा सकलाय। सावां बदउर पसिया ओगराबो, भूख भगाबो जिनगी चलाय।। अपन बेरा मा आवे बंजारा, गीस किसान करिस गुहार। आंखी मा बहे आंसू के धार, कइसे करों भारी रिनी तुहांर।। अढि़या पानी बिन तरसत हे, ए जीव हर रही तोर अमानत। कबरा कुकुर तोर सेवा बजाही, नी करे अमानत मा खियानत।। अंधियारा के अधरतिया मा, लुटेरा दल पहूंचिस डेरा मा। हाथ मा ठेंगा फरसा पकड़े, कोरी खइरखा घेरिन डेरा ला।। डेरा मा चुप दुबकगे कुकुर, लुटेरा करिन पूरा सफाई। बुद्धिमानी से कुत्ता करिस काम, मालिक से झन हो हाथापाई।। बिहनिया बेरा जागिस मालिक, धोती खींचे चले तरिया पार। पानी मा वो लगाइस डुबकी, मुंह मा गुंडी रखे तरिया पार।। एक एक कर सबो निकाले, चकित हो देखे कुकुर कमाल। लोगन सब कुकुर ला देखे, आज बचादिस सब जान माल।। कुकुर ला सब सहूंरावत हे, अइसन प्राणी लाखों म होय। कब का होही ओकर का भरोसा, कुकुर मनखे बरोबर होय।। बंजारा लिखिस सुंदर पाती, भेजिस कुकुर मालिक के पास। देख के मालिक गुस्सा होगे, मारिस टंगिया गिरीस लास।। पढि़स पाती उड़ागे होस, चेत बिचेत मुरख किसान। बंजारा सुनिस सबो खबर, वफादार कुत्ता के रही निसान।। माली घोरी के पटपर भांठा, भव्य मंदिर कुकुर देव के। लोगन श्रद्धा सुमन चढ़ावे, सूरता करय कुकुर देव के।। सब जीव होथे एक सामान, फरक होवय रूप रंग मा। आचार-विचार बनके रथे, जइसे मिलय सतसंग मा।। ...................................................................000.................................................................................. शरद पूर्णिमा 13 अक्टुबर 2008 लकड़हारा हर सबेरे घर से निकले, पांच कोस के रेंगय रद्दा। खांद मा टंगिया कमर मा रस्सी, साठ बरस के बुढ़वा दद्दा।। दुबला पतला पिचके गाल, बदन सलुखा सिर मा गमछा। कमर मा धोती माड़ी ओरमाय, जिनगी चलाय प्रभु के इच्छा।। परिवार मा रहय एक अकेला, लकड़ी बेचे दीन लकड़हारा। बीबी बच्चा शहरे मा रहिथे, छोडि़क सब, होगे बेसहारा।। जंगल मा रोज लकड़ी सकेले, बंडल उठावे फिर चले शहर। बदन मा कारी पसीना पझरय, संझा बेरा मा अमरे शहर।। भूखे लांघन रहिके बुढ़वा, मेहनत करे रात आऊ दिन। बेटा बहुरिया सेवा बजातिन, समय के मारे देख दुरदिन।। नाती पोता पातिस पोटारतिस, भाग मा नईये अइसन सुख। ऊपर वाला जो रेखा खींच दिस, उही बनाथे सुख आऊ दुख।। घरवाली पावे बेटा के सुख, सेवा करय बहुरिया रानी। दुधे खाय आऊ दुधे अचोय, मोर भाग मा आवे दुखे दुख।। गुड़ी मा बोहे लकड़ी के बोझा, चिंता फिकर ला सोचत सोचत रद्दा काटे, का बचे हे हाड़ मास के तन मा।। शिव पार्वती चले भ्रमण मा, पृथ्वी लोक मा करिन अवतरण। रद्दा मा रेंगत हे लकड़हारा, माता धरे, शिव-कमल-चरण।। माता शिव से करत हे विनती, दुख के बोझा चैथे पन मा करत हे मेहनत, हावे धन हीन, नइये कर्महीन।। हे प्रभु तोर खजाना भरे बोजे, लकड़हारा ला कर कुछ मदद। घाम पियास मा करे मेहनत, प्रभु, कुछ बरसा दे, हे जलद।। मानव तन होवे कर्म प्रधान, देवी, चलो आगे, करों प्रस्थान। नहीं, प्रभु, ममता ला देबे ध्यान, कृपा कर तब जाबो अन्य स्थान।। शिव, माता के आगे होगे विनत, मुहर के थैेली रखिस रद्दा मा। लकड़हारा लतिया दिस थैली, सुरू कुरू चलिस फिर रद्दा मा।। देवी, ये जनम नइये धन सुख, अगले जनम मा रही माला माल। धन कुबेर के बनही मालिक, बैठांगुर अऊ निचट अलाल।। देव लोक जस करही सुखभोग, सभा मा अप्सरा करही नर्तन। धन्य हो प्रभु मोला होगे संतुष्टि, कर्मशील के होगे सुंदर जतन।। ..............................................................................000....................................................................... 14 अक्टुबर 2008 श्रद्धा भक्ति हाथ मा कटोरा, कांध मा गमछा, लकुटी ओकर बनय सहारा। माता जी के पुकार ल सुन के, कहे, तोर महिमा हावे कतिक न्यारा।। पय डगरी मा डगर नापय, सोचत गुनत हे मने मन मा। में हा रेंगत रेंगत आहूं माता, तोर तसवीर बनाहूं, मन मा।। मोटर गाड़ी बर नई पइसा, अपन कोरा मा तोला झुलाहू माता। पान फुल के नी होइस जोरा, श्रद्धा सुमन तोला चढ़ाहूं माता।। मोर घर मा नइये आटा चांवल, कहां से मांगतेंव कलेवा मेंहा। दूनों हाथ जोर बिनती करहूं, माफी देबे, परगट होबे तेहा। सरसरउंवा चले मोटर गाड़ी, करथे जी हा धक पक धक पक। नीचट तीर ल फटफटी चलथ्ेा, ओहा करथे फकफक फकफक।। पोटा हा मोर कांपत हे माता, तिहीं हा लगाबे बेड़ा पार माता। चार कोस ले आवत हों रेंगत, ले देके खूंदेव तोर सियार।। तोर दरबार के गजब हे लीला, महमहावत हे चम्पा चमेली। मयना मंजूर नरतन करय, हइरना मिरगा करे अठखेली।। डोंगरी तीर बिराजे हस माता, बहत हे शीतल मंद समीरा। सुर सरिता तोर पखारे पइंया, अउ करत हे आचमन नीय।। भक्तन सब करत हे दरसन, सब बर मयारू हावस तेहा। पान परसाद चढ़ावय सब, मन के आस पूरा करबे तेहा।। ए डोकरा, सरको, भगो यहां से, लोगन सब दुतकार लगावे। भक्तन के मन होगे उदास, कइसे इंकर बेवहार हा हावे।। चलिस मंदिर के पिछवाड़ा मा। गमछा मा अपन आंसू पोछय, चकित, का होगे माता के बाड़ा मा।। अचानक आइस भूचाल वहां, मंदिर मुहाटी घूम पाछू। भक्तन सम्मुख माता प्रगटे। मूरख जन होवय आगू पाछू।। ........................................................................000............................................................................. 06 अक्टुबर 2008 मयारू माता बारह बछर के नोनी आवे, परसाद दे चिल्लावत हे। सेउक हा अंगेठा मा सूतय, आंचे आंच खूब ऊंघावत हे।। थके हारे निंद मा सूतय, नाक हा खूब गर्रावत हे। गोहार ला ओ सूनत नइये, नींद हा जबरा भन्नावत हे।। बबा बबा मोला परसाद दे, नोनी हो ऊंचाहा चिल्लावत हे। रकपका के उठिस सेऊक, आंखी कान ला रमंजत हे।। कोई मोला पुकार लगावे, जतर कतर ला देखत हे। में हा शायद सपना देखेंव, इहां कोई हा नी दीखत हे।। उसनिंदा मा हावय सेऊक, जठना मा फेर नींद मा ओला कोन जगाइस, सोचत करवट बदलत हे।। जठना छोड़ उठिस संतन, हाथ मा ठेंगा उठावत हे। एती ओती खोजत हे आंखी, मोला कोन, रात पुकारत हे।। चारों मुड़ा ला घुम के देखिस, कोनो नजर नी आवत हे। खोजत गिस मंदिर तिर मा, माता सम्मुख झट पहंुचत हे।। इहां भी कोनो दिखत नइये, माता हर सुघ्घर सोवत हे। मंदिर पट ला खोलिस कोन, संतन मन मा खूब सोचत हे।। गुना भाग मन मा करय, हूरहा ओला सूरता आवत हे। जावत बेरा मा बड़े पुजारी, कानों कान समझावत हे।। भूलाबे झन रे तेहा भोंदू, माता आसन मा बिराजत हे। सारा जग नींद मा सोवय, जगदंबा रशिया जागत हे।। सूते जठिया कोनो नी आवय, घर मा सब नींद भंाजत हे। रात माई सखी संग आवय, चहूं दिशा कजरा आंजत हे।। चंपा चमेली सदा सोहागी, रात मनी महमहावत हे। दसमत हा लाली बिखेरे, मदार मंद मुसकावत हे।। गोंदा कनेर अऊ सिरइयां, सोनहा रंग ला बिछावत हे। वरूण देव धूकना धुकय, चंदा हा लोरी सुनावत हे।। रूख राई सब नाचय गावय, बरगद मुड़ी डोलावत हे। पुरइन पान मोतियन बटोरे, खोखमा खूब सरमावत हे।। तरिया जल तरंग बजावय, नदिया मृदंग बजावत हे। मछरी जल नर्तन करय, कुमुदनी खिलखिलावत हे।। कपाट ला ते ओधाके सूतबे, इहीं बात हा बिसरावत हे। मगज कइसे मोर मारे गीस, अभी एदे सूरता आवत हे।। जगदंबा मइया हावे मयारू, माता कैना बन के पुकारत हे। परसाद मांगय के ओखीमा, संतन ला ओहा जगावत हे।। भक्तन बर रहिथे सदा प्रसन्न, माता ल जग सहूंरावत हे। भारी दुःख मा परे हे प्राणी, जगदंबा ल गोहरावत हे।। भाव के भूखा हावय माता, सुमन श्रद्धा भक्ति चढ़ावत हे। माता के कोठी भरे बोजे हे, जो मांगो, मन, चाहा पावत हे।। निस दिन सेवा करबोन माता के, माता जी सब ला बुलावत हे। सब जीव बर मयारू हे माता, जगदंबा ओ कहलावत हे।। .....................................................................000................................................................................ 8 अक्टुबर 2008 बखरी के तूमानार बखरी मा फुल फुलवारी, गोंदा गुलाब महमहावत हे। नार बेलोरा खूब लहरावय, तोरई डोड़का झूमरत हे।। तूमा नार छानी छानी पसरत हे। फलों के राजा कुम्हड़ा दादा, छानी मा खूबेच मोटावत हे।। पाछू पाछू रखिया चलय, सासू हर खूब सहूंरावत हे। रखिया बरी बनाबोन हम, बहुरिया ल खुद बतावत हे।। भीतरे भीतर हरसथ, नोनी, चेहरा ओकर लजावत हे। मया के मारे कहि दिस माता, नोनी हा तो सरमावत हे।। बरबही करेला बने संगवारी, लार मुंह मा टपकावत हे। चना घलो कनोजी मा कूदय, रंधइया मंुह पंशवत हे।। कुंदरू के लरा जरा बाढ़य, माचा मा खूब इतरावत हे। कोरी खइरखा लइका लोगन, बखरी हा गद बदावत हे।। खेखसी जोंथरा बखरी जागय, सुवाद खूब सुहावत हे। देखइया मन साग मांगय, सबके मन ल मडावत हे।। रमकलिया ल सब झन खावय, बघरा अम्मट मिठावत हे। चुचुटिया हा घलो सुहावय, बखरी मा मिट मिटावत हे।। चम्मास धूपकाला दूनो बेरा, चेंच भाजी खूब सुहावत हे। अम्मट बर पटवा भाजी, सबो दिन लल चावत हे।। जरी भाजी साल भर आवय, गुत्तुर गुत्तुर खूब लागत हे। बरी संग बनेच मिठावय, लइका सियान सब खावत हे।। तुमा नार खूबेच बगरय, रूंधना ओपार नाहकत हे। तूमा साग पड़ोसी घलो खावय, हमला कभूच नी बतावत हे।। लुका लुका के तूमा ल टोरय, मुसुर मुसुर साग खावत हे। तूमा ला कोन हर टोरत होही, परोसी चुप्पे मिटकारत हे।। हमर नार के तूमा टोरय, लोगन ला खूबेच बांटत हे। सगा सील ला घलो बांटय, हमर जी हा चुचवावत हे।। ओकर कुकरा रूंधना कूदय, हमर बाड़ी मा खूब बासत हे। मौका हमला सुघ्घर मिलिस, धरेन ओला छटपटावत हे।। कूकरा मालिक घर मा आइस, कुकराल वापस मांगत हे। नियाव कराय के नियत हावे, लोगन ला सब सकेलत हे।। हमार नार के तूमा टोरिस, ओ पार ला अपन समझत हे। कुकरा मिलिस हमर बाड़ी मा, परोसी काबर चिल्लावत हे।। .....................................................................000................................................................................ (विजया दसमी) 8 अक्टुबर 2008 झगरा झगरा लड़ाई काला कहिथे, नाती अपन दादा ल पूछत हे। लइकई बुद्धि जागे जिज्ञासा, दादा मने मन मा गुनत हे।। दादा बोलिस अपन नाती ला, नाती घर से गुर लानत हे। मुहाटी आगू गलियन मा, गुर ला चुप्पे मड़ावत हे।। जहां रहे गुर, वहां आवे चांटी, देखते देखत, चांटी झुमत हे। चांटी ल देख कुकरा आवय, ठोनक ठोनक के बने खावत हे।। कुकरा देख भेंकवा के मुंह मा, पानी आवे लार टपकत हे। भेंकवा कूकरा के पाछु पड़गे, मौका देख झपट्टा मारत हे।। उत्ता धुर्रा कुकरा हा भागिस, भेंकवा खूब दउड़ावत हे। कुकरा के कारी पसीना छूटय, कोट कोटावत खूब भागत हे।। ओती ले आवे करिया कुकुर, भों भों कर जबरा भूंकत हे। कुकुर के दहाड़ ला सुन के, भेंकवा मुंहू ला लुकावत हे।। भेंकवा मालिक घर से आवे, हाथ मा ठेंगा अंटियावत हे। करिया कुकुर के सामत आगे, ठेंगा ठेंगा खूब बरसावत हे।। कांय कांय कर कुकुर भागय, गोसइंया तमतमावत हे। ठेंगा धरे घर से निकलय, गारी बखाना सुनावत हे।। कुकुर बिलाई घरमा खुसरगे, गोसइंया अब ठेंगा भांजत हे। होगे दूनो गुथ्थम गुथ्था, ठेंगा फेंक बजनी बाजत हे।। घर वाला सब कइसे चुकय, माई पिला सब सकलावत हे। गलियन बनय जंगी कुरूक्षेत्र, अपन ताकत बतलावत हे।। माई लोगन कछोरा भीरय, चूंदी ला खुब झटियावत हे। टूरा मन दोंय दोंय पीटय, जोर जोर सब चिल्लावत हे।। रोना चिल्लाना घलो होवय, गारी बखाना खूब देवत हे। भूइंया ठठावे ताल ठोंकय, सब बदला खूब लेवत हे।। नाती बूढ़ा दूनो तमासा देखय, नाती कोरा मा मुंह लुकावत हे। काम बुता ल छोड़ के लोगन, गली मा सब सकलावत हे।। का होगे कुछ समझ नी आवे, एक दूसर ला सब पूछत हे। बताने वाला कोनो नइये, जा जानय ओ हा मिटकावत हे।। लड़त लड़त अलोर पड़गे, भूइंया मा छटपटावत हे। जांगर सबके चेहरा ला सब ओमावत हे।। नाती बूढ़ा घर मा चलदिन, नाती ला फिर बतलावत हे। अइसने होथे लड़ाई झगरा, नाती मुड़ी ला डोलावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 08 सितम्बर 2008 ’’ मरखंडी गाय ’’ गौशाला मा आज होवत हे, पूजा भक्ति के जंगी प्रदर्शन। चमचा करत हे नाराबाजी, नेता जी के गउ माता दरसन। नेता जी के संग मा चलय, चमचा चाटुकार के दल। गउ माता हा रंभावत हे, सतर्क होवय सुरक्षा बद।। एक झन होइस देवीजी, करिस गउ माता के उपहास। पंचपति परमेश्वर बनय, बखान करत हे इतिहास।। जइसे जइसे होथय देव, तइसे चढ़ावय पान फुल। देवी देवता होवय बली, झइन करव कभूच भुल।। जंगल मा खूब राज करय, आदम खोर बब्बर शेर। भोजन बने हइरना मिरगा, झपट्टा मारे लगत देर।। धूप दीप अऊ जल तरपन, नेता जी करय गोधन पूजा। शरण मा गोहरावत हे माता, अउर नहीं कवनो दूजा।। धरती माता के प्रगट रूप, जग मा हावे साक्षात गौ माता। मनोकामना सब पूरा करय, काम धेनु होथे मयारू माता।। धारण करे सब तीरथ धाम, सबके पूजनीय गौमाता। स्वर्ग नरक होथे धरती मा, गावत हे गुण बेद माता।। कर्म फल तोला मिल के रही, जइसे ते करबे करम। देर हे मगर अंधेर नहीं, बखानत हे नीति धरम।। गौमाता खाथे चारा घास, तेहा परोसत हस लाड़ू। च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ गौमाता खूबेच बिफरगे, हुमेलिस, चला दिस झाड़ू।। लाली गाय पियंर लाड़ू, घुंसिया के होगे लाल पीला। ओला खवातिस दाना पानी, अक्कल के पेंच, हावय गउ माता बनगे रणचंडी, गाय संभाले नी संभलत हे। नेता जी सोचे जतर कतर, विपक्षी मन के हरकत हे।। अवसर वादी नेता करिस मांग, करत जांच दल के गठन। विरोधी के आंखी फुटत हे, खुल जही ओकर आंखी बटन।। दूसर नेता बोले चूके बिना, एफ आई आर दर्ज करव। सुधवा पन ला छोड़ देवे, जुर मिल के सब अर्ज करव।। तेज तर्रार नेता कइसे चूके, मरखंडी गाय करो गिरफ्तार। राजनीति खूब गरमावत हे, जोस मा पकड़त हे रफ्तार।। नेता मन के नेता भक्ति, खूबेच रंग जनावत हे। ऊल जलूल हरकत करय, प्रजातंत्र ला सरमावत हे।। .........................................................................000............................................................................ 29 सितम्बर 2008 ’’देवी दरसन’’ नेता जी के सवारी निकलय, करही ओहर देवी दरसन। मिडिया वाला संग मा चलय, चमचा चाटुकार होवे हरसन।। गांव गांव मा होगे मुनादी, नेता जी हमर पधारत हे। आदर अगवानी करहू ओकर, स्वागत द्वार बनावत हे।। चैक चैराहा तोरण पताका, लहर लहर लहरावत हे। जगा जगा पढ़इया लइका, जोर जोर नारा लगावत हे।। घाम पियास मा खड़े हे लइका, देख देख बेर बिजरावत हे। खड़े खडे असकटावय सब, गुरूजी ल देःख डर्रावत हे।। मोटर गाड़ी के रद्दा मूंदय, संतरी वाला चमकावत हे। रिक्सा सायकल के सामत होगे, बरदी वाला धमकावत हे।। देवी दरसन बर उमड़य भीड़, भक्तन खूब खिसयावत हे। लाठी डंडा देख के भक्तन, सबके चेहरा मुरझावत हे।। भूख पियास मा लइका रोवय, पानी पानी चिचयावत हे। पुलिसिया डंडा देख के माता, बेबस, पानी पानी होवत हे।। बूढ़वा सियान गोड़हा कांपय, लगे पियास कंठ सुखावत हे। तन बदन पसीना पझरय, बैरी, पोंछे नी पोंछावत हे।। खड़े खड़े उबकासी लागय, मन हा खूब मिचलावत हे। आय हन करेबा दरसन, देवी हमला नी बुलावत हे।। आइस नेता खुलगे पट, पुजारी मन सहुंरावत हे। पालथी मोर बैठिस नेता, घंटों देवी ल मनावत हे।। कोपरा कोपरा मेवा मिस्ठान, देवी ल भोग लगावत हे। जंतर मंतर पढ़य पुजारी, कांख कांख शंख बजावत हे।। प्रसन्न मन से नेता निकलिस, पुजारी मन गिड़गिड़ावत हे। जनता के जब लगिस नंबर, ओला उत्ता धुर्रा सरकारत हे।। देवी सम्मुख भक्तन पहुंचे, नरिहर बत्ती मड़ावत हे। देवी दरसन दोन नी पावे, पाछू वाला धकियावत हे।। देवी रूठे करम हर फुटगे, अपन भाग ल कोसत हे। मन मन्दिर मा देवी बिराजे, दीन हीन सब ला पोसत हे।। कहां भटकहू तुम एती ओती, देवी खुद तोला पुकारत हे। तोर ध्यान मा देवी बसत हे, मन मंदिर ला उजियारत हे।। देवी मां मांगे मिठाई कलेवा, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे। सर्व ब्यापी हावे देवी माता, भक्तन के मन मड़ावत हे।। ....................................................................000................................................................................. 5 अक्टुबर 2008 देवी पूजा अकेला रद्दा झइन रेंगव, कुकुर मन सब घूमत हे। गरवा खोजइया बनके बैरी, यनुक मार मइनखे सूंघत हे।। जेठ के महिना जादा तूकय, घाम खूबेच लकलकावत हे। घाम पियास बन मा घूमय, गांव तीर मा सोरियावत हे।। दिखब मा अब्बड़ सुधवा हाबे, माल मवेसी बहाना बनावत हे। नी चीन्हया लइका आऊ बुढ़वा, झिम झाम के बेरा देखत हे।। बाहरा नार के मौघा फुटय, साले चके दौड़गा बनावत हे। देवी ली बने मनाबोन हम, ओहा सालेच के रूसावत हे।। खुन के टीका मांगय माता, भूख ओकर करलावत हे। पानी गिरे के पहिलेच बदी, देवी ला खूब सपनावत हे।। कारी कारी लुगा ल पहिरय, आंखी लाा खूब नटेरत हे। चूंदी मूड़ी ल फितरा के देवी, जीब लामे खूबेच नाचत हे।। माथ मा लाली के टीका सोहे, गोड़ मा घुंघरू खूब बाजत हे। एक हाथ मा फरसा धारय, दूसर खप्पर गुंगवावत हे।। बिधुन होके नाचय देवी, तन बदन हा लहरावत हे। लप लप लप जीब हा करय, जबरा दांत किटकिटावत हे। नरी मा नरमुंड माला पहिरे, भूइंया तक माला घिरलत हे। रणचंडी बन झूपय माता, जोर जोर खूब किरलत हे।। कोलिहा जंगल मा नरियावय, किलर किलर के रोवत हे। संझा सब कुकुर सकलावे, गांव बहिर सब रोवत हे।। रथिया घूघवा मन रोवय, पोटा सबके अटियावत हे। सुने सुन लोगन के रूवां, बदन मा खूब बगियावत हे।। बिहनिया सब कऊंवा रोवय, कांव कांव सब चिचयावत हे। रथिया मवेसी गऊसाला मा, बजनी बाजय रंभावत हे।। जागिस दादी, टूटय सपना, बिहनिया ल अगोरत हे। सुटुर सुटुर निकलय घर से, सुरूकूरू डोंगरी बाट जावत हे।। कुरबुर कुरबुर करय दादी, मने मन मा गोठियावत हे। जंगल मा चिरइ चिरगुन, दादी देख फड़फड़ावत हे।। बघवा चितवा खूब दहाड़े खबर सब ला बतावत हे। जंगल मा सूंघय जानय, मनुक मार चले आवत हे।। खेत खार के रद्दा टूटय, दिन बूड़त घर आवत हे। गलियन मा सन्नाटा छावय, लोगन घर भीतरावत हे।। मइया लइका ल बरजय, लइका धरइया आवत हे। घर से बहिर निकलो मत, लइका ल सब पोटारत हे।। सियान लोगन ल समझावे, घर मा रहो सब सावाचेत। सरहद मा कुकुर हा घूमय, करय सब ला चेत बिचेत।। अपन घर ला खुद संभालो, गांव तीर मा कुकुर घुमत हे। खार खेत मा घलो दिखय, जकाहा बरोबर घूमत हे।। गांव वाला मन सुनता करय, मनुक मार ला दूर खेदारत हे। दस दस चेलिक के टोली बनय, हावाधूका ल बहिर बिदारत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 25 सितम्बर 2008 ’’हमर गांव’’ शहर मा तुम पढ़थो रहिथो, भुला जथो गांव गवंइ ला। बेरा बखत मा आवत रहव, सूरता करहू तीजा नवइ्र्र ला।। तिहार बार के बनथे इहां, आनी बानी के कुत्तुर कलेवा। सूजी हलवा मडि़या के पकवा, बरा सोहांरी पपची कलेवा।। खूरमी ठेठरी सुवाद हे आला, अइरसा भजिया लार टपकाय। चीला अंगाकर गरमेगरम, चटनी संग गजब सुहाय।। बिहनिया खाथन बासी चटनी, रहय प्रोटिन के अजब भंडार। बासी खवइया रहिथे कड़मस, नी देखे वो हा रक्सहूं भंडार।। जीर्रा चटनी अउ पटवा भाजी, लइका सियान सबो ललचाय। जरी चेंच खोटनी चरोंटा, बासी भात उपराहा खवाय।। जिमी कांदा सब्जी के राजा, मन भर खाव सेहत बनाय। मडि़या पेज के गुण हे आला, झांज झोला बदन बचाय।। कोचई पाना बेसन मांगय, दही मसाला सबो सुहाय। उल्हवा उल्हवा बोहार भाजी, आमा अमली संगी बनाय।। फरा गूंझिया सुंदर कलेवा, करी लाड़ु खूबेच सुहाय। मूर्रा लाड़ू दिखब मा जबरा, पानी पियो भूख भगाय।। खीरा कलिन्दर बात निराला, मुंह मा डालो पानी ओगराय। भूख पियास ल दूर भगावे, झोला गरमी ला खूब चमकाय।। कांदा भाजी संग चना के दार, डबका बघरा सबो सुहाय। कोलयारी भाजी खूबेच मिठाथे, एकर गुण आयुरवेद बताय।। कुम्हड़ा बरबट्टी के भाजी, चना दार ल संगवारी बनाय। सास बहू के झगरा भगावे, दूनों के मया खूबेच बढ़ाय।। कुवंर भाजी मूंग उरदा के, बहुरिया सुंदर बघवा लगाय। सास ससुर मन चरचा करय, नोनी के जेवन खूब खवाय।। चना लाखड़ी के बात निराला, सोंदे सोंद मा खूबेच खवाय। किलिर कालर लइका करय, रंधइया मंुह ताकत रह जाय।। बर्रे भाजी अउ फूटू रमकलिया, मुंह के सुवाद भिनगे बढ़ाय। तोरइ डोड़का गुत्तूर गुत्तूर, बुढ़वा सियान ला खूब सुहाय।। तरिया नदिया घाट घठौंदा संगी जवंहरिया सबो मिलाय, तउंरे डूबके अउ बतियाय, सियान बरजय कहां बिलाय।। खार खेत हा सोना उगले, धान गहूं खेत मा लहराय। रहेर चना अउ मूंग उरदा, झुमर झुमर मन बहला।। दिन मा सूरज रात मा चंदा, कमइया ला रद्दा बताय। खेत कोठार मा मिले कमइया, मेहनत करे पसीना बोहाय।। रात मा चांदनी चले बयार, थकाहारा करे रथिया बिसराम। तिहार बार के नाचय गावय, काम बूता ला देवे विराम।। लोक रंग मा डूबय लोगन, गांव इन्द्र लोक बन जाय। इन्द्र धनुषी छटा बिखेरे, इन्द्र लोक घलो सरमाय।। चिरई चिरगुन रूख राइ मा, संझा बिहनिया मुरली बजाय। गलियन मा लइका खेलय, किलकारी सुन दुख बिसराय।। बड़े बिहनिया कुकरा जागय, कुकड़ंू कू सायरन बजाय। कमइया किसान जठना छोड़े, कुकरा बासत हो जाय।। संझा बेरा बरदी ओइले, दुहानू गाय हुमरत आय। घांटी घुम्मर मन ला भावे, बृन्दाबन जस गांव सुहाय।। देवारी बर गउ माता के पूजा, कलेवा खिचरी भोग लगाय। संझा बेरा गोरधन खुंदावे, गांव हमर गोकुल बन जाय।। यदुवंशी भाई नाचय गावय, कृष्ण कन्हैया परगट हो जाय। गोप बाला राधा बन जावे, वो सुख बरनय नी जाय।। गांव के धरती पावन धरती, मधुर शीतल जल बरसाय। सुबह शाम चले मखइया, तन मन हा अति हरसाय।। रथिया मोतियन के बरसा, बड़े सबेरे परगट हो जाय। बनझार डारा पाना ला, मोती शबनम दुनो नहलाय।। गांव मा बसत हे माटीपूत, सोंधी गंध महमहावत हे। फुल फुलवारी के नाता रिसता, चमन खिलखिलावत हे।। भइया भउजी, अऊ कका काकी, पावन रिसता मनावत हे। पूरा गंाव परिवार जस लागय, देख देख शिव मुसकावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 27 सितम्बर 2008 बिजली बाई गांव मा रहिथे मिटमिटही टुरी, बिजली बाई ओकर नाम। दूर देश ले आथे ओहा, जानथे सब बुता काम।। जइसे तियारबे सबो करही, हाबे बड़ चतुरा हुसयार। गरीब अमीर सबघा जावे, ओला मिलथे सबके पियार।। दिन मान धुंधरासी लागे, रथिया आंखी चमकय। बोली भाषा समझय नहीं, इसारा मा खुब मटकय।। घर दुवार खार खेत मा, पानी भरना ओकर काम। छेड़खानी ल सहय नहीं, तोला कर दीही बदनाम।। हावय चकचकही बानी के, गिजिर गिजिर करत रहिथे। देहें पांव हावय कड़मस, घाम पानी सबो ल सहिथ्ेा।। रिंगी चिंगी कपड़ा पहनय, तन बदन हा दमकत हे। बेनी जस लहरावय नोनी, चाल ओकर चमकत हे।। टीबी अस्तरी घलो चलाय, रंधइया ल करय मदद। थकासी ल जानय नहीं, ओ रहिथे हरदम गदगद।। पढ़इया मन ला बड़ बिजराथे, मिलथे ओला गारी बखाना। दिन अऊ रात धूकना धूकय, असीस देवे लइका सियान।। दिन रात खटथे बूता मा, मरवा पिरावे न तरवा। जब ओला ओतयासी लागे, लोगन झांके तरिया नरवा।। बर बिहाव मा अब्बड़ सम्हरथे, खूबेच मिटमिटावत रहिथे। बर बधू ला छोड़ के लोगन, इ हिच ला देखत रहिथे।। बिहदरा बेरा मा बिजली, रहिथे खूब मसती मा। झूमर झूमर गाना गवाथे, सोर मचाथे बसती मा।। लोगन ला खूबेच भड़काथे, हावय चुगलहिन बानी के। भड़कौनी मा आके लोगन, करनी करथे आनी बानी के।। दिन रात ये हा सेवा बजाथे, करय मेहनत मन लगा के। टांट भाखा सहय नहीं, दम लिही जान नंगा के।। मालिक के मन ला टमड़ के, कहिथे पगार बढ़ादे मोर। बजार हाट मा भाव बढ़गे, खरचा मा पड़े खूबेच जोर।। आफिस दफ्तर मा करे अंजोर, छितका कुरिया घलो सुहाय। खोर गली मा घलो घूमे, कल कारखाना मा इतराय।। मेला मड़ई मा गिंजरे फिरे, होटल दूकान मा अंडि़याय। चउराहा मा टेªफिक संभाले, चलइया ल रद्दा बताय।। शहर देखे बर बड़ पुचपुचीही, रेलगाड़ी मा करय सफर। जंगल पहाड़ सब ला घूमे, नी खोजे अपन हम सफर।। लरा जरा एकर अब्बड़ हावे, संगवारी बनावे तत्काल। जब मइके रही भरे बोजे, बिजली के घर मा सुकाल।। बिजली जस कमइया पा के, सबला मिलथे खूबेच ओत। ओकर बिना जग अंधियार, रहय सदा बिजली के जोत।। .......................................................................000.............................................................................. 20 सितम्बर 2008 पढि़स न सीखिस गरीबों के मसीहा मिलिस पदवी, ताली बजाय, पेपर छापत हे। नेता जी, खड़ा होगे अकड़ के, विकास सड़के सड़क आवत हे।। गांव गरीब किसान भाई ला, सर्वोच्च प्राथमिकता देबोन। गांव गांव मा शाला भवन, मुंह मांगा पइसा देबोन।। बनगे शाला भवन गांव मा, फीता कटय, होवे उद्घाटन। घूमय गली मा बेरा कुबेरा, आव देखय न ताव लोकारपन।। चहा पानी बर नइये फुरसद, तन मा पसीना चुचवावत हे। घूमय दस गांव एक दिन मा, नेता जी मनेमन मुसकावत हे।। जनता के दुख नी धरे कान, खोजत हे, कहां हे कैंची फीता। करय नेता, हड़बड़ हड़हड़ , फेर सुनाबो भगवत गीता।। स्कूल खूलगे, होगे भरती, स्कूल जाथे हांसत हांसत। बजाय घंटी, हाजरी चढ़ाय, आवे चरबज्जी रोवत रोवत।। चुप तोला कोई मारिन हे, रो मत, का होगे, मोला बता। स्कूल के बात स्कूले मा छोड़, कुछ होय तो गुरूजी ला बता।। बइठे बइठे लागथे असकट, नइये गुरूजी पढ़ाई नी होय। मन लगा के पढ़बो कथन, स्कूल जाय के मन नी होय।। झारा झारा खाय के मिलिस नेवता, हाथ धोवाय बइठे पंगत मा। घंटों गुजरगे, भात न कलेवा, कहां पड़ेन अइसन संगत मा।। इही हाल सर्व शिक्षा अभियान के, धोषणा करे, पइसा फेंकत हे। अढ़त के गढ़त योजना बनावे, ठेकेदार के काम, हाथ सेंकत हे।। प ग्रामीण शिक्षा आंसू बहावत हे।। मटक मटक के बजावे गाल, विकास के गंगा बहावत हे।। महतारी मनेमन सोचत हे, धर मा सुघ्घर बनी कमातिस। पढि़स न सीखिस होगे सुखियार, घर देतेन बने सगा आतिस।। .......................................................................000.............................................................................. 22 सितम्बर 2008 ’’मया के मुंदरी’’ नाक मा फूली गल मा सूतिया, दुल्लहन ला सुघ्घर सजावत हे। पांव मा पैरी कान मा खिनवा, देख देख नोनी लजावत हे।। सतलरिया करधन कनिहा खोहे, नागिन जस बेनी लहरावत हे। संगी जवंहरिया करय, ठिठोली, बात बात मा खिलखिलावत हे।। हाथ मा एैंठी बांह मा पहूंची, गोड़ मा मेंहदी रचावत हे। सुंदरी बिछिया अंगरी बिराजे, नोनी हा नी चिन्हावत हे।। अंखियन मा कजरा आंजय, माथ मा टिकली दमकत हे। अंगरी मा भूइंया ला खुरचय, मने मन दिल हा तड़फत हे।। पंच गज्जी लुगा ल पहिरे, लहंगा पोलखा समहरत हे। छिटहीं बंुदीही लुगाल देख, सब के मन हा भरमत हे।। मइंद अंगना मा मड़वा माड़े, जोत कलस जगमगावत हे। सगा सील के आवा जाही, घर अब्बड़ गदबदावत हे।। लइका मन खूब दौड़य घूपय, चिरइ जस चिचयावत हे। बरजय बात मानय नहीं, अऊ जादा इतरावत हे।। मोहरिया वाला मन ला मोहय, आनी बानी धुन सुनावत हे। डफरा वाला धुन मा झुमय, झुम झुम झुमरावत हे।। डमरू के बात हे निराला, लइका सियान डगमगावत हे। टिमिर टिमिर टासक बाजय, मंजीरा करय छिनिन छानन, सुनेच सुने बर मन भावत हे। जोक्कड़ नाचय मटक मटक के, परी सबला रिझावत हे।। गुहाटी मा पधारे दुल्हा राजा, बरतिया मन खुब नाचत हे। दनादन फूटे बम फटाका, रंग गुलाल उड़ावत हे।। पहुना मन के पांव पखारे, अक्षत टीका लगावत हे। समधी से समधी मिलय, जोहारे, गलबइहां पोटारत हे।। केमरा वाला दउंड़ दउंड़ के , आंखी मूंद बटन दबावत हे। घरतिया खोजे, दुल्हा राजा, सब झन ला धकियावत हे।। बरतिया देखे दुल्हनिया ला, मने मन मा हरसावत हे। जुग जोड़ी हा सुंदर फभय, दूनों के भाग ला सहुंरावत हे।। महतारी अइस पांव पखारिस, माथ टीका, आरती उतारत हे। मया के मुंदरी सौंपिस माता, मने मन मा सहुंरावत हे।। सहमे सहमे चले हिरनिया, आंखी हा खूब सरमावत हे। दूनों हाथ मा फुल गजरा, थोरको, संभारे नी संभरत हे।। अन्तस मा उठे तुुफान बैरी, तन बदन ला सिहरावत हे। प्रेम के बिरवा मन मा जागे, मन ला खूब लहरावत हे।। वरसम्मुख पहुंचगे कन्या, वरमाला पहिनावत हे। चरण बन्दन करिस समरपन, मन मन्दिर हरसावत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 23 सितम्बर 2008 ’’नेता जी आवत हे’’ सियान मन सब चरचा करय, नेता जी आवत हे गांव मा। स्वागत अभिनन्दन करबो, बइठाबोन मंच के छाव मा।। दरी ताल पतरी बिछाबोन, शमियाना घला लगाबोन। बेंच कुरसी घलो लगही, गली मा गलीचा बिछाबोन।। खारा मीठा काजू किस मिस, शहर ले मंगाबोन हम। सहूंरावत हन भाग ला, दिल खोल के परघाबोन हम।। टेª गिलास अउ कप पलेट, दाऊ घर ले मंगाबोन हम। नेता जी ला खुश करबो, अरजी बिनती करबोन हम।। दाई माई अउ लइका सियान, मन मा खूब खूशयाली हे। नेता आवत हे हमर गांव मा, जहन मा खूब हरियाली हे।। करबोन हम सब साफ सफाई, गुहाटी मा रंगोली सजाबोन। काम बुता सब रही बंद, नेता तिहार मनाबोन हम।। युवा मंडल महिला मंडल, संभालही सबोच काम ला। हमर बराती के होही सोर, उपर उठाही हमर नाम ला।। घर घर से आही गोंदा फुल, चुन चुन के गजरा बनाबोन। नेता जी पधारही हमर गांव मा, रद्दा मा फुल बिछाबोन।। अक्षत अउ गुलाल के टीका, माथा मा लगाबोन हम। चंदेनी गोंदा, फुल-गजरा, गला मा पहनाबोन हम।। साहंड़ा देव मा हूम दीप, पूजा पाठ अऊ जलतरपन। पूजा करही गउ माता के, खिचरी भोग परसाद अरपन।। देखाबो गऊठान के गयरी, गउ माता बर खही तरस। मयारू नेता करही घोषणा, खोधरा पटाही इही बरस।। सीमेंटी करण ला देखही नेता, गली भ्रमण कराबोन हम। सिरमिट रेती सब बोहागे, नेता जी ला बताबोन हम।। सराहा कांड़ फूटाहा खपरा, शाला भवन ला देखाबोन। बरसात मा छानी खूब टपकथे, लइका बर छतरी मांगबोन।। हावे सात कोरी पढ़इया लइका, पढ़ाथे एक मास्टर जी। कइसे पढ़ाथे एक अकेला, परगट देखही हमर नेताजी।। नवा भवन के छबना ओदरगे, फ्लोरिंग के दरसन कराबो। खोचका डिपरा मा बइठे लइका, लइका मन से भेंट कराबो।। आंगन बाड़ी सामुदायिक भवन, नेताजी ला सब देखाबोन। ठेकेदार करिस बदमासी, सबो लना खुलके बताबोन।। नेता जी हावय बड़ मयारू, सुनही हमर सब बात ला। एक एक ठन ला नोट करही, नी बिसरावे कोनो बात ला।। नेता जी के आइस चिट्ठी, केन्सिल होगे सब परोग्राम। सब झन के चेहरा उतरगे, ये का चरित्तर होगे राम।। नेता बर सब जोरा करेन, ओ हा हमला झंटयावत हे। सुख दुख मा आही कथन, जतर कतर बहंकावत हे।। हमला येहा खरचा कराइस, दिन बादर एकरो आही। लामे हे पानी के धार, किंजर फिर मछरी बेंदुवा आही।। ...........................................................................000.......................................................................... 14 सितम्बर 2008 अनन्त चतुर्दशी ’’चाणक्य’’ परम ज्ञानी अऊ महा प्रतापी, देश विदेश मा नामी विद्वान। करिया बिलवा दुब्बर पातर, मस्तक मा टीका, शिखावान।। महाक्रोधी अऊ स्वाभिमानी, राष्ट्र हित मा करय चिन्तन। कूटनीति के कुशल खिलाड़ी, अखंड भारत के करिस चिन्तन।। नाम बिष्णु गुप्त आचार्य, चाणक्य नाम से जग चाहिर। राजनीति के मुखर वक्ता, जोड़ तोड़ मा रिहिस माहिर।। छोटे छोटे राजा महराजा, गृह कलह मा रहय व्यस्त। दंभी विलासी राजा मन, आपसी युद्ध मा होगे पस्त।। तुर्क यमन आक्रमण कारी, बाज जइसे झपट्टा मारय। कुकुर बिलाई जस लड़इया, तूफानी हमला नी सम्हारय।। अखंड भारत के सपना साकार। कइसे हाही सपना साकार, उधड़ बुन मा लगगे कौटिल्य, युवा चन्द्रगुप्त होनहार।। ऊंचपूर कछावर युवक, मस्तक ओकर दमकस रहय। नालंदा के विा पीठ मा, राजनीति के अध्येता रहय।। ओ दिन ला कइसे बिसराय, मगध के राजा करिस अनादर। शिखा खोल करिस संकल्प, राजा के अही दिन बादर।। करिया बाम्हन के घुंस्सा देखबे, तोर राजवंश के होही पतन। राजसिंहासन ले तरबे तेहा, काल कोठरी मा होही जतन।। भावी राजा के रूप मा होगे, युवा चन्द्रगुप्त के पहिचान। मगध राज मा होगे मुनादी, बचाना हे मगध के शान।। जगा जगा खुलगे सिविर, युवा मन के लगिस कतार। सैन्य संगठन होन लगिस, होही अत्याचारी के तार तार।। दिन मुहरत नियत समय मा, वीर चन्द्रगुप्त करिस हमला। नवा राजा पडि़स कमजोर, मगध झोंकिस सेना जुमला।। चंन्द्रगुप्त ल नवा सीख मिलिस, मगध ल हराना हंसी खेल नहीं। गुरू चेला सोचन लगिन, बघवा कोलिहा मा मेल नहीं।। निकलगे दूनों अज्ञात दिशा मा, रथिया जहां बिताया जाय। दुर कुटिया मा दिखिस रोसनी, कोन रहिथे वहां सूंघा जाय।। महतारी, बेटा ला समझाय, चन्द्र गुप्त जइसे ते करथस। लकरधकर तोला हावय, तीर छोंड़ मइंद ला खाथस।। दूनों झन ला, आगे समझ, उहा पोह मा मिलिस सहारा। समझ मा आगे काबर हारेन, कूट नीति के लेबोन सहारा।। कोन हे बैरी कोन सहारा, एकर पहली पता लगाबो। फुलवारी बनाबो सखा मित्र ला, बैरी ला खूब मजा चखाबो।। साम दाम के नीत ला अपनाबो, दंड भेद ला घला अजमाबो। विषकन्या राजदरबार मा, जो संभव ओ सब ल करबो।। तूफान जइसे चलय चन्द्रगुप्त, मगध मा मचगे हाहा कार। दंभी राजा खइस पटखनी, चमचा चाटूकार करय चित्कार।। मगध मा आइस नवा बिहनिया, चन्द्रगुप्त बनगे युवा राजा। चाणक्य ल बनाइस महामंत्री, बधाई मा बाजय बिगुल बाजा।। चाणक्य ल अभी अराम कहां, कालदूत रावन-फिरंगी आवत हे। भारत विजय हे ओकर सपना, सिकंदर से सीमांत कांपत हे।। घर मा भूंके बहिर पूछी ओरमाय, कोई पांव परे कोई सिर कटाय। थकाहारा सिकंदर पसोपेस मा, सेना आगे बढ़ाय या पीछे हटाय।। यूनानी शिविर ला मिलिस संदेशा, तलवार उठाओ या मिलाओ हाथ। चाणक्य चलिस अद्भूत चाल, यवन बाला चन्द्रगुप्त के साथ।। बचगे मगध रक्तपात ले, चले सिकन्दर वतन के रसता। फंसगे कठिन चाल मा, सिकंदर फंसगे कठिन चाल मा, मरूस्थल बने घर के रसता।। सिकंदर के पंजा बंद, मिसिर पहुंचे हफरत हफरत। वीर उलझे चानक के जाल मा, योद्धा निष्प्राण, थमगे हरकत।। ........................................................................000............................................................................. 18 सितम्बर 2008 ’’सोनाखान के बघवा’’ रत्नगर्भा छत्तीसगढ़ मा, हावय पावन सोभाखान। हर माता के कोख ले, जनमय इहां सपूत महान।। धरती माता जननी माता, होथे दूनो एक समान। सस्यश्यामला धरती देवे, कोदो कुटकी अन्न धान।। सज्जुग त्रेता अऊ द्वापर, कलजुग होथे एक सामान। बेरा बेरा के होथे बात, कोनो साव कोनो बेइमान।। धरती उगले सोना चांदी, छत्तीसगढि़या बोले भी वाणी। सरल सुधवा सुभाव के होथे, गुस्सा मा निकले वीर वाणी।। राजवंश मा पैदा होइस, वीर बहादूर सपूत महान। दाई ददा के मयारू बेटा, नारायण सिंह ओकर नाम।। सोना खान होगे धन्य, राजा करे परजा प्रतिपाल, रिहिस दुस्ट फिरंगी शासन, राजा ला करिस बदनाम।। सूक्खा होगे परिस दुकाल, मचगे चारों ओर हाहा कार। दाना पानी बर तरसय लोगन, कंठ सुखागे करे चित्कार।। खार खेत हा दर्रा हनदिस, तरिया नदिया घलो सुखाय। रूख राई के पाना झरगे, सावां बदउर घलो सिराय।। माल मवेसी झिटका होगे, रूख राई सब मुरझाय। कीरा मकोरा घलो ओठंगे, मछरी कोतरी नरवा अंटियाय।। चीतवा बघव होगे अलोर, हूंड़रा कोलिहा करे विलाप। हथ्थी ला चलना मुस्किल, यमलोक मा होवे मिलाप।। सूवा रमली चील मंजूर, तीतर बटेर पड़की मैना। खुसरा घूघवा कौआ गिधान, कोनो ल नइये बन मा रैना।। कोठी डोली के अढि़या सिरागे, गहना गूठा घलो बेचाय। अढि़या बिन चुल्हा जुडागे, सन्सो फिकर मा मुड़ी पिराय।। मवेसी ला छोडि़न जंगल, उही बाट मा अपनो गिन। घर दुवार मा ओधाइन बेंस, बन मा काटिन दुरदिन।। कांदा कुसा ला खा के लोगन, मिटावे पेट के भूख ला। फिरंगी ला नइये चिंता, नी समझे जनता के दुख ला।। गांव मा रिहिस साहूकार, कपटी काइंया अऊ मक्कार। नारायण सिंह गीस वहां, करिस सेठ आदर सत्कार।। परे हे भारी दुकाल गांव मा, खोल दे गोदाम के ताला। भूखे जनता ला मिलही काम, बांध बंधाही नरवा नाला।। बेरोजगार ला मिलही काम, पेट भरे बर देबे अनाज। दुकाल मा होगे जिना दुभर, सेठ जी, दया कर बचा दे लाज।। आज तेहा जनता ल देबे, तोला दीही ऊपर वाला। धरम करम मा खरचा कर, किरपा करही सबके रखवाला।। धन धान्य ले भरे भंडार, गोदाम मा मुसवा खेलत हे। भूखे लांघन पेट मा मुसवा, कोरी खइरखा पेलत हे।। जगा जगा तेहा देबे काम, जग मा होही तोरच नाम। तोर मिलही सुघ्घर आसिरवाद, लोंगन करही तोला सलाम।। हमला विश्वास अऊ भरोसा हे, बात ला रखबे तेहा सेठ। जनता मा रोस हे प्रबल, हो जबे ते मटिया मेट।। काइंया साहूकार करिस रपोट, थाना ले आगे पुलुस सिपाही। साहूकार निकलिस दगाबाज, राजा ला धरिस पुलिस सिपाही।। तीर कमान टंगिया फरसा, घरे हाथ मा, करिन हमला। घुस्साये आदिवासी करे वार, निचट समझथे फिरंगी हमला।। फिरंगी बंधन तोड़ के राजा, निकलगे बीहड़ जंगल मा। संगठित होगे सब आदिवासी, कूदय लइका सियान दंगल मा।। फिरंगी चलावे गोला बारूद, आदिवासी चलावे तीर कमान। एक एक योद्धा दस दस मारे, फिरंगी पानी मंगे होगे हलाकान।। रयपुर ले आगे फौेजी दस्ता, करिन ताबड़ तोड़ मारकाट। फिरंगी भारी पड़े होगे भंग कमान, वतन रक्षा बर चलिन कुर्बानी बाट।। योद्धा होगे निस्ठुरता के शिकार, नवा सुराज के दीपक जलाइस। वीर नारायण सिंह होगे शहीद, शहादत सुराजी रद्दा दिखलाइस।। हे छत्तीसगढ़ के क्रान्ति योद्धा, तोर करत हन शत शत अभिनंदन। दीन हीन सब ला मिलही न्याय, अन्याय अत्याचार के होही दमन।। .............................................................................000........................................................................ 11 सितम्बर 2008 ’’चक्रब्यूह’’ धर्म क्षेत्र कुरूक्षेत्र मा होवय, महाभारत के युद्ध महान। गदायुद्ध हर देखते बनय, सनसना वय असि, तीर कमान।। चील गिधान झपट्टा मारय, कोलिहा कुकूर भूख भगाय। महा संग्राम बनगे, समसान, जगा जगा चिता गुंगवाय।। दिन मा चलय घनघोर संग्राम, सिविर मा रथिया करय विश्राम। दूनों दल गोल्लर जस लड़य, कब कइसे होही विराम।। कौरव दल मा होइस मंथन, चक्रब्यूह के करव रचना। चक्रब्यूह सेदन अर्जुन जानय, होइस गंभीर कूट रचना।। बिहनिया ले रणभेरी बजय, अर्जुन निकलगे दूर कहीं। कूट बयूह मा उलझगे अर्जुन, अऊ लड़त हे कहीं।। चक्रब्यूह के होगे रचना, पांडव सिविर, गमगीन बनय। होगे उदास पांडव राज, चुनौती अब संगीन बनय।। राज महल मा गिस खबर, चक्रब्यूह के होगे रचना। अर्जुन कहीं दूर लड़त हे, कौरव दल के कुटिल रचना।। पांडव दल मा होगे खलबली, अब का होही भगवान। वीर अभिमन्यू सम्हर क निकलिस, करिस माता के चरण बन्दन।। संग्राम भेस मा देख बेटा ला, आंखी दूनो भरगे माता के। पांडव दल के लाज बचाहूं, रिन चुकाहूं माता पिता के।। चरण बन्दन करिस माता के, माता छाती मा लिपटाय। वीर सावक बैठिस रथ मा, मन मा प्रभू ध्यान लगाय।। पांडव सिविर मा पहूंचे सूरमा, ताउ के करिस चरण बन्दन। भरे मन से धरमराज हा, करिस योद्धा के अभिनन्दन।। धूम केतु बन चले अभिमन्यु, रद्दा अपने आप बनय। होगे फेल द्रोण के रचना, अभिमन्यु ब्यूह भेदन करय।। एक अकेला वीर अभिमन्यु, ध्वस्त करिस ब्यूह रचना। योद्धा महारथी होगे भयभीत, मुस्किल हे तूफान से बचना।। बाज जइसे मारे झपट्टा, कौरव दल करे चित्कार। घायल मुर्दा से पटगे धरती, होगे चारों ओर हाहाकार।। शेर जइसे दहाड़े बालक, दुस्मन के कलेजा फट जाय। सूरज जइसे दमके प्रबल, दुश्मन देखत ही मुरझाय।। नागिन जइसे लहराये योद्धा, दर्जनों सिर कटय एक साथ। बड़े बड़े योद्धा थरथर कांपय, जान बचादे प्राण नाथ।। पवन वेग से चले अभिमन्यू, दुस्मन के सीना फट जाय। काल बन के झूमय सूरमा, दुस्मन के पोटा अंटियाय।। कौरव दल चिंता मा पड़गे, साजिस करय खतरनाक। नीत ल छोड़ अनीत करय, निरणय करिन शरम नाक।। सात महारथी घेरिन रथ ला, अभिमन्यू होगे रथविहीन। रथ के चक्का बनिस सुदर्शन, दुस्मन होवे प्राण हीन।। अंतिम क्षण तक अभिमन्यु, करिस दुस्मन के संहार। वीर गति ला पाइस बालक, सदा सूरता करही संसार।। सूंरवीर के पूजा सब करंय, कायर ला दुनिया बखानत हे। धरती माता सबोच के माता, संतान वत सबला पालत हे।। .............................................................................000........................................................................ 12 सितम्बर 2008 ’’दंडकारण्य’’ दंडक मुनी के पावन धरती, रिसी मुनी के तपस थली। यज्ञ हवन मा विघ्न बाधा, मचावच रक्सा मन खलबली।। होवय मंत्रोच्चार वेदों के, दंडक मन सदा प्रशंात। रक्सा मन के आंखी फुटगे, दंडक होगे परम अशांत।। निस दिन होवय यज्ञ हवन, करंय सब मंगल कमना। गिरिजन सब करंय आरती, प्रभू ध्यान मा मन रमना।। तितर बटेर नाचय कूदय, हइरना मिरगा कमर मटकाय। कोलिहा हूंड़रा गम्मत करय, बन भइसा मुड़ी झटकाय।। बघवा चितवा मैना मंजूर मूरली बजाय। मुसवा भठलिया मंजीरा धरय, रेड़वा भालू कुला मटकाय।। सूवा रमली भजन गावय, चिरइ चुरगुन सुर मिलाय। गजराज हरमोनिया सजावय, पशु पक्षी सब ताली बजाय।। दशरथ नन्दन अजोध्या ले, पधारिस दंडक वन मा। जगत जननी छइंया बनगे, लछमन चलय भाई संग मा।। दुस्ट दलन के संहार करिस, रक्षा करिस रिसी मुनी के। रावन के होइस नियत खराब, दंडक आइस खबर सुनि के।। बहुरूपिया बन कुटिया मा अइस, हरण करिस सीता माता के। रामलखन चितकार करय, सुन्ना होगे बिन माता के।। जामवंत सुगरिव, करिन मदद, पवन सुत पहूंचगे लंका मा। सीता माता के दर्शन करिस, शक्ति दिखाइस लंका मा।। बानर भालू के सेना धरके, पहूंचगे राम सागर तट मा। दिन अउ रात करिन मेहनत, रामसेतु बनाईन झट मा।। शिव जी उंहा होगे परगट, ज्योति पीठ रामेश्वरम कहलाइस। श्री राम के पडि़स चरण कमल, राम सेतु, सागर पार कराइस।। प्रभु राम करिस सर संधान, दहलगे लंका होगे हाहाकार। परिवार उजड़गे, करम फुटगे, दाइ्र्र माई करय चितकार।। भाइ्र्र बंद कतको झन समझाइन, मूरख करय उलटा वार। दंभी रावन एक न सूनय, अहंकार मुड़ी मा सवार।। बेटा अक्षय होगे कालकवलित, मेघनाथ के होगे बोलती बंद। कुंभकरण धरती मा सूतगे, अहिरावण के नजरबंद।। सोनहा लंका होगे समसान, विभीषण संभालिस राजकाज। क्रोध बैर के होगे पलायन, आग बुझाइस राजाधिराज।। पापी दुसमन ला मिलगे सजा, जनता करिस जय जयकार। प्रभु श्रीराम के आर्शीवाद, ज्योतिरमय होगे ओमकार।। ........................................................................000............................................................................. 13 सितम्बर 2008 शकुनि मामा ममा-भाचा के दोस्ती, हावय सारा जगपरसिद्ध। कहे बोले बर लागय नहीं, हावय स्वयम सिद्ध।। बइला खरीदो ममा भंाचा, हो जाव निस-चिन्त। नांगर फांदों गाड़ी चलाव, कलेश नहीं किनचित।। द्वापर जुग मा नाम कमइस, शकुनि ओकर नाम। घर दुवार ला तियाग के, रहय भंाटो के धाम।। कुरूराज जनम के अंधवा, पुत्र मोह के वसीभूत। महारानी माता गंधारी, धृतराष्ट्र के चरण दूत।। दीदी भांटो बरजय नहीं, शकूनी खूब इतराय। ममा भंाचा के खूब पटय, पांडव मन अकुलाय।। शकूनी हर सपना देखय, दुर्जोधन बनतिस राजा। पांडव मन के देश निकाला, बजा दो उंकर बाजा।। शकूनी हर हवा भरय, दुर्जोधन गाल बजाय। कौरव पांडव मन के रिसता, करेला कस करूवाय।। भाई भाई ल लड़त देख, शकुनी मन मा हरसाय। पांडव राज युधिसठिर ला, ुत क्र्रीड़ा खूबेच सुहाय।। शकुनी हर पासा फेंकिस, भंाचा एक दांव हो जाय। पांडव राज हामी भरिस, फौरन सतरंग बिछाय।। सब कुछ लगगे दांव मा, अऊ पांडव होगे कंगाल। दु्रपद सुता ला जीत के, दुर्जोधन जंघा ठोंकय ताल।। गंधार देश के शकुनी मामा, चलय कुटिल चाल। जतकी ओ चतुरा रिहिस, ओतकी रिहिस बाचाल।। लड़ने वाला लड़ मरय, हाथ मा कुछ न आय। अब पछताय से का होत हे, समय हाथ से निकल जाय।। ........................................................................000............................................................................. 9 सितम्बर 2008 राम राज के सपना रामनामी चद्दर ओढ़े एक, स्वामी जी अइस हमर गांव मा। कला मंच मा कुर्सी लगिस, स्वामी जी बैठिस छांव मा।। कोटवार के हांका परिस, सकलावत जादु कला मंच मा। खार खेत ले लहुट के, घर आइन सब लंच मा।। कला मंच के चारों खुटमा, बैठिस परजा रठ मार के। स्वामी जी माइक धरिस, शुरू करिस खखार के ।। मोर संगे संग कहू तूमन, राम राम जय सिया राम। जनता हर धरम के प्रेमी, जपत हे, जय सियाराम।। स्वामी जी कहे प्रवचन मा, राम राज मा सुखे सुख। राम नाम के अइसन असर, मिटय सब संसारी दुख।। राम नाम अंकित कर, वानर, बनाइन एक पुल महान। त्रेता युग मा बने रामसेतु, चकित हो देखय जहान।। राम नाम के महिमा अपार, समुद्र लांध लंका पहूंचे। हनुमान के शक्ति ल देख, रक्सा मन भुइंया खुरचे।। रावण दल के संहार कर, अजोध्या लहुटे प्रभु श्रीराम। राम के राज, राम ला मिले, राम करे सीताप्रति राम।। भाई भरत अऊ लखन सहित, शत्रुहन ला पियार करे। जगत जननी मां जानकी, ममता के नेवछार करे।। बघवा बोकरा सब पशु, पानी पिये एक घाट मा। बिना मोल भाव तराजू के, खरीदी होवय हाट मा।। कुकुर बिलाई संग ना खेले, कुकरा सब ला धमकाय। बघवा देख कोई डरय नहीं, चीयां चील ल चमकाय।। चोर बटमार कहीं न रहे, लोगन घर उघरा छोड़ जाय। मुसवा कुकुर भेकवा बिलाई, बिना देय कभूच नी खाय।। दुध दही के नदियां बोहाय, लेवना के रहय भरमार। सब दूधे खाय दूधे अचोय, अइसन रिहिस राम संसार।। राम नाम ला जपत रहो, जल्दी आवत हे राम राज। त्रेता म रिहिस राम राज, कलजुग मा ग्राम सुराज।। अठोरिया पंद्रह दिन मा, गांव मा आइस एक कार। कार ले उतरिन शंुड भसूंड, रहे टकला, मुड़ी चमकदार।। रक्सा बरोबर दिखत रहे, हाथ मा ठेंगा अंटियाय। डरो नहीं रहो निरभय, बोले मीठ मीठ समझाय।। गांव मा, हम खोलबोन, एक ठन सरकारी दुकान बेरोजगार ला काम देबो, आफिस बर दुहु मकान।। पहुना मन के गोठ ला सुन, जनता होगे गदगद ले। स्वामी जी के भविष्य वाणी, पइसा बरसही रदरद ले।। गांव मा खुलगे नवा दुकान, देशी दारू ओकर नाम। लोगन करे खुसूर फुसुर, का चरित्तर होगे राम।। दूध दही के सपना देखेन, घर मा आही जरसी गाय। दूधे खाबो दूधे अचोबो, बाचल होटल मा जाय।। कोठी डोली सब होगे रीता, कपाट बेंड़ी आन बेचाय। गहना गूठा सबो बेचागे, बर्तन भाड़ा धलो सिराय।। स्वामी जी हमला भलठ गिस, सपना देखेन राम राज के। घर होगे तहस नहस, ये हाल हे ग्राम सुराज के।। ..........0.......... दूध दही हा सपना होगे, गांव गांव मा दारू बेचाय। स्वामी जी चद्दर ला फेंकीस, वसूली मा बेंदरा जस नचाय।। राम राम ला जय राम करिस, बदन सफारी सूट चमकाय। सलाम बंदगी छोड़ दिस, कहे हलो हलो , हाय हाय।। पर परतिस्ठा पाये बर, नीत करम ला छोड़ दिन। धन लक्षमी कमाये बर, ईमान धरम ल बोर दिन।। नवा बोतल मा पुराना शराब, लेबल बदल पइसा कमावत हे। राम राज बने ग्राम सुराज, मीठा छोड़ करू पिलावत हे।। .........................................................................000............................................................................ 10 सितम्बर 2008 ’’कुकुर बिलइ के दोस्ती’’ कथें होनहार बिरवान के, होवत हे चिककन पात। झब्बुलाल के बेटा खब्बूलाल, सब झन ले अलग चिन्हात।। हंडि़या के एक ठन सीथा, तोरन जतन दूना होय। दिन दूना रात चउगुना, सुदी केस चंदा बढ़ती होय।। झब्बूलाल ला होइस चिंता, बेटा होगे चेलिक जवान। जात बिरादरी मा करिस चर्चा, कन्या देखो सुन्दर सग्यान।। झब्बू के मूंह उले के पहली, कन्या के लगिस कतार। देश बिदेश ले मिलिस नेवता, हमर से जोड़ो रिस्ता के तार।। अकबका गे झब्बुलाल, कइसे करंव तइसे लगथे। सुन्दर सुशील कन्या के फोटो, परी जइसे सब झन लगथे।। इस्टदेव ला सुमरिस झब्बू, तेहा मोला अक्कल दे। मोर मगज हर फिरगे माता, मोला ते बुद्धि बल दे।। झब्बू ला सूझिस उपाय, आंखी मुंद एक फोटो उठइस। महतारी बेटा ला भा गे कन्या, माता ला फौरन लाड़ू चढ़इस।। लगिन तिलक के तिथि निकलगे, मंगनी बरनी फौरन होय। सगासील मन देखिन कन्या, अइसन बहू लाखों मा होय।। दइज डोर के अतराप मा छा गे झब्बूलाल। पेटभरहा खइन खुशी मनइन, सब झन खेलिन रंग गुलाल।। बिहाव के असर होवन लगिस, नेता अफसर घर मा आय। भी आइ पी बनगे झब्बू, लक्षमी आवे बिन बुलाय।। झब्बूलाल के जांगर थकगे, कारोबार संभालिस बेटा हा। झब्बू अब करय बिसराम, बंधागे, खब्बू के सर फेंटाहा।। धन बरसा होवन लगिस, धनपति होगे माला माल। एक अगर दस के बाप बनिस, सब बेटा करिन कमाल।। बेटा मन ला सौपिस जिम्मा, एक देखय राशन दुकान। दूसर करय ठेकादारी, सबके खूलगे अलग दुकान।। नेता अफसर के मितानी, मिलिस सरकारी कोटा के जिम्मा। माल के होवे, अफरा तफरी, कोई न करय तितम्म।। रासन निकलय गोदाम ले, कहां जाय कुछ पता नहीं। मिडिया हर खूब उछालिस, प्रशासन के कुछ पता नहीं।। जागरूक नेता आगू आइस, असेंबली मा उठइस सवाल। मंत्री करिस टरकाउ बात, मचगे सदन मा बवाल।। मुड़ी गडि़या के मंत्री बोलिस, हो के रही एकर फौरन जांच। मंत्री अफसर चलिन चाल, काकरो उपर न आवे आंच।। विपक्ष अड़गे अपन बात मा, फौरन करो रपोट थाना मा। रासन घोटाला अतिक होवत हे, मुंहु लुकावत हो थाना मा।। शासन हर घुटना टेकिस, प्रशासन अइस हरकत मा। कुशासन के पोल खुलगे, खब्बूलाल होगे हिरासत मा।। कुकुर बिलाई के दोस्ती, एक दिन हो के रहि चरयि। मौका देख भूंकय कुकुर, अवसर मा बिलई गुर्राय।। ......................................................................000............................................................................... 24 सितम्बर 2008 ’’पीतर’’ कुंवार बदी के महिना आवय, पीतर मन सब सकलावत हे। कऊंवा बन सब रद्दा देखय, कांव कांव खूब नरियावत हे।। बड़े बिहनिया रक्सहूं दिशा मा, गोबर पानी मा निरपत हे। चउंर पिसान के चउंक पूरय, पूरखा मन ला सूमरत हे।। लकड़ी पाटा के आसन बनावे, फुलकंसिया लोटा मड़ावत हे। ताजा साफ पानी भरके, दतउन मुखारी परोसत हे।। तोरइ तिरइंया फूलवा लावय, तोरइ पान के पतरी बनावत हे। धूप दीप के करय व्यवस्था, चउंर दार उरदा चढ़ावत हे।। करय पूरखा मन ला तरपन, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे। पूरखा मन ला मिलिस नेवता, मंझनिया जेवन बुलावत हे।। बरा सोहांरी गुराहा भजिया, तोरई बरबट्टी चना बनावत हे। खीर दार भात सब रांधय, दही तुमा कुम्हड़ा मिठावत हे।। फुल कंसिया थारी कलेवा सजावे, तोरइ पान के पतरी लगावत हे। हूम दीप अउ जलतरपन, पूरखा मन ला सब बुलावत हे।। पीतर भात के भोग लगावे, पूरखा मन ला खिलावत हे। फुदक फुदक के खावे पीतर, देवे आसीस मन अघावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 03 सितम्बर 2008 श्री गणेश वन्दना वैनायिकी चतुर्थी प्रथम सुमरंव गणेश देव ला, हे गणनायक परगट हो। भूल चूक ला क्षमा कर दे, हे सिद्ध विनायक परगट हो।। शंकर सुवन पार्वती नंदन, हे विघ्न हनता परगट हो। हे लम्बोदर गजानन प्रभू, रिद्धि-सिद्धि सहित परगट हो।। मस्तक मा, सिंदुर के टीका, हे गणपति परगट हो। दुर्ग तोला अति प्रिय हे, हे कैेलाश नंदन परगट हो।। मेवा मिस्ठान्न के भोग लगय, हे गणाधिपति परगट हो। फुल गजरा गला मा सोहे, सहज कृपालू परगट हो।। मूसक वाहन करे सवारी, हे बुद्धि बिनायक परगट हो। पीताम्बर बसन हे तन मा, हे अंकुसधारी परगट हो।। लाड़ू कलेवा तोला रूचय, हे दीनबन्धू परगट हो। दीन हीन समझ के भगवन, हे एक दन्ता परगट हो। धूप दीप अऊ पूजा आरती, हे प्रसन्न वदना परगट हो।। ’’ओम् श्री गणेशाय नमः’’ प्रथम सुमरंव गणेश देव ला, हे गणनायक परगट हो। ऋषी पंचमी 04 सितम्बर 2008 श्री दुर्गा स्तुति हे आदि शक्ति मां दुर्गा भवानी, हे सिंह वाहिनी, हो परगट मां। रक्ताम्बर बसन तन मा सोहे, हे महिषासुर मर्दिनी हो परगट मां।। सुरनर, मुनिगण सेवत निश दिन, हे खप्पर धारी हो परगट मां। मस्तक मा सोहे सिंदूर के टीका, हे खडगधारी हो परगट मां।। रक्तपुष्प के सोहे, फुल गजरा, हे त्रिसूलधारी, हो परगट मां। शुभ्भ निशुम्भ के संहार करइया, हे गदाधारी, हो परगट मां।। चण्डमुण्ड रक्सा मारय, संतन के त्रास हरे, हे जगत जननी, हो परगट मां। शंख चक्र अउ कमल हाथ मा, हे ब्रम्हाणी, रूद्राणी, हो परगट मां।। चैंसठ जोगिनी, नित मंगल गावत, हे कमला रानी, हो परगट मां। दूख हरता मइया तुम सुखदाता, अस्ट भुजाधारी हो परगट मां।। मधू कैटम पछाड़े हे रणचण्डी मां, हे अंबे गौरी, हो परगट मां। धूप दीप से करय आरती, हे दुर्गा भवानी, हो परगट मां।। दुःख दारिद्र के हरण करो मां, हे कृपानिधान, हों परगट मां। तोर दरबार मा खड़े हे भक्त जन, हे वर दायनी, हो परगट मां।। या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः। 6 सितम्बर 2008 हरहा गरवा एक झन रिहिस लफराहा नौकर, रिहिस बड़बोला सुभाव के। काम बुता मा कोताही करय, मुंह चलावे बेभाव के।। मालिक रिहिस अब्बड़ सुधवा, सब ला समझे एक समान। चाहा पानी अऊ चोंगी माखुर, सब ला पूछय अपन जान।। खेती रिहिस दस नांगर के, दस नौकर कड़मस कमाय। दरोगा रिहिस सबके मुखिया, बनिहार तियारे हाजरी लगाय।। भीतर बाहर सब ला जाने, लेन देन मा रिहिस हुसयार। एक एक ठन के रखे हिसाब, बात करब मा जस कुसयार।। धान लुवागे अइस ओलहा, खार मा ओनारिस गहूं चना। हांक दून जातिस अब्बड़, थभकगे खेत मा गहूं चना।। बेरा मा पानी पलोइस, अउ डारिस फसल देख आंखी फुटय, रखवाली बिना होही बरबाद।। खेत रखवार करते जुगाड़, बोलिस दरोगा ला मालिक। पानी पसिया खाथन हम हा, रखवाली खुद करहूं मालिक।। सूतहूं मेंहा चना खेत मा, लारी बनाहूं मईंद खार मा। अंगेठा बार के जाड़ भगाहूं, रात पहाहूं मइंद खार मा।। उमर पहागे खेती कमावत, नी जानों में हा डर भाव ला। मोर उपर ते करबे भरोसा, सब जानत हों चोर-साव ला।। तोर उपर हे पूरा भरोसा, तब ले, सून ते मोर बात। उत्ती बूड़ती मा तरिया के पानी, भंडार मा डोंगरी, करही धात।। चोर चंडाल अउ हरहा गरवा, निझाग बेरा दूनों उतरथे। सावा चेत रबे, जागे जागे सूतबे, मूसरा खाथे कम, जादा कतरथे।। अधरतिया अइंस हरहा गरवा, चरन लागिस मइंद खार मा। खुरच खुरच गोल्लर भुंकरे, खुरखेंद मचाइस खार मा।। पहाती बेरा जागिस रखवार, आंखी रमजत ठेंगा उठइस। गोल्लर सुनिस खूब गोहार, अंखमुंदा भागे दुम उठइस।। चढ़ती बेरा गइस मालिक धर, बढ़ा चढ़ा के बताइस बात। फलाना के हरहा गोल्लर, खुरखेंद करिस लगायेंव लात।। हरहा गरवा पछाड़े जाय, उसनिंदा हस रात भर के बइठ, बनावत हे चाय, खा पी के जाबे, मन भर के।। हम निचट बसुन्दरा किसान, बनीभूती मा गुजर बसर। दिन अऊ रात सेवा बजाथन, बदला मा मिलथे दोना पसर।। जुन्ना पुराना कपड़ा लत्ता, पहिनके सहूंराथन भाग। बेरा बखत मा मिलथे मदद, मिल बांट के खाथन साग।। तुहंर परसादे जियत हन, नाक के कान कभू नी जियाने। बउगला हंस बरोबर नहीं, नीत के बात कहे सियाने।। मुसुर मुसुर मुस्काइस कहे, पुचुर पुचुर बड़ मारत हस। रात भर के उसनिंदा हावस, नानुक गोठ खूब बघारत हस।। जा घर, नहा खोर अराम कर, संजहा,रखवाली मा जाबे। पांव परिस, जावत हों मालिक, तोर नमक मोला लगे हावे।। ............................................................................000......................................................................... बइसंकी 15 सितम्बर 2008 ’’मदिरा महिमा’’ करिस एक जनहितैषी काम, गांव गांव खुलगे, दारू दुकाान। खाओं पियो और मौज उड़ाओ, चैक चैराहा, मुहाटी मा दुकान।। सपना मत देखो जरसी गाय के , लात मारे खरचा करवाय। बनाहू घर कोठा लगे पइसा, करजा मा बूड़के करम ठठाय।। छांद गेरवा , कोटना घलो लगही, चारा भूसा मा उपराहा पइसा। रतन जतन मा होवय चेंघट, जांगर थकही, बहाहू पइसा।। चेपटी के हावय महिमा अपार, यार मिलावे, महफिल सजाय। अमीर गरीब सबके चहेता, पिपाला छलके, वंक राजा बन जाय।। बियर बरांडी हर्रा, सबो मिलथे, चेपटी होथे, थान निराला। मिक्चर मटन भजिया गोंदली, खाओ पिओ, स्वाद हे आला।। कहां जेहू, मन्दिर गुरूदुवारा, रहे दिन रात खूला, मधूशाला। समाजवाद के दरसन परसन, प्रगट करावय मधुशाला।। हाथ मा पियाला, मुख मा हाला, नित जस्न मनावय मधुशाला। छटठी बरही , बर बिहाव मा, खूब रंग जमावय मधुशाला।। मेला मड़ई, बजार हाट मा, भक्तन के रहे, भीड़ अपार। पोरा हरेली, देवारी दसराहा, मधुशाला करे, सब ला पियार।। जिगरी दोस्त जिगर के टुकड़ा, सगा सील के, सम्मान बढ़ाय। आरटी पारटी, जहां कहीं होय, मधुशाला सबके कदर बढ़ाय।। खुद पिओ, पिलाओ सब ला, दारू के नदिया बोहावत हे। आंगन मा पिओ, भट्ठी मा पिओ, मधुशाला सब ला नहलावत हे।। शासन करत हे नेक काम, बेवहार मा, मदिरा रामबाण। शासन के भरय, कोठी खजाना, आबकारी विभाग हे परमाण।। मन मा दारू रग रग मा दारू, दारू सर्वब्यापी, अंग मा समाय। शासन मदिरा के सम्मान बढ़ाय, गांव मा जगा जगा दारू बेचाय।। ..........................................................................000............................................................................ पोला- 30 अगस्त 2008 सोन चिरइया दूनो हाथ जोड़ करय बंदगी, मस्तक पसीना चुचवावत हे। गला गमछा लहराय, आंखी हा भिचभिचावत हे।। चैक मा नेताजी के आम सभा, झरफर झरफर रेंगत हे। जिन्दाबाद, नेताजी के जय हो, जोश मा जनता चिल्लावत हे।। आम सभा के दर्शक ल देख, नेता जी भारी गदगद हे। भरे जड़कला तन बदन मा, कारी पसीना पझरत हे।। उद्घोषक एनाउन्स करय, हार्दिक स्वागत अभिनन्दन हे। कोल्लर भर फुल गजरा, अऊ बोरा भर बन्नदन हे।। नेता जी ठीक करिस टोपी, अउ थाम लिस माइक ला। मयारू जनता ला हाथ जोडि़स, परनाम करिस माइक ला।। हमर भाइ्र्र मन के सहयोग, अऊ दाई मन के आर्शिवाद। दुस्मन जरूर पटखनी खाही, तुहंर लाख लाख धन्यवाद्।। ढ़ोंगी कोढि़या लफराहा मन, भूइंया मा छटपटावत हे। हमर जइसे कड़मस ला, दुनिया कइसे सहुरावत हे।। असली छत्तीसगढिया ला, हम बना के रबो राजा। ढ़ोंगी कपटी कोढि़या बर, नई खुले राज दरवाजा।। जरूरत मंद ला देबो हम, रोटी मपड़ा अऊ मकान। पानी अऊ बिजली मिलही, खेती मा आही मुस्कान।। हर गांव के पाठशाला मा, नौबत नी आय ताला बंदी के। पुलिया कपटा बनाबोन हम, बाधा नी आय नाला नंदी के।। उन्नत खेती करय बर, बीजा दवाई मिलही तुंहला। दवा खातु मिलही बेरा मा, झइन ताको ककरो मुंह ला।। बस्तर ले रक्सा भगाबो, अमन चैन जरूर अही वहां। आदिवासी मन के जीवन बनही, किंजरइया फिरइया जहीं वहां।। गली मा होही सीमेंटीकरण, भ्रस्टाचार ला भगाबोन हम। यंत्री संत्री मा लगाम कसके, प्रजातंत्र लाबोन हम।। हर हाथ ला काम देबो, मिलही गारंटी रोजगार के। सबके रक्षा करबोन हम, बनिहार कुली कामगार के।। हर बनवासी ला मिलही हक, घर जमीन अऊ जंगल के। सबके सपना पूरा होही, जरूर, जंगल मा मंगल के।। कल कारखाना के आसपास, खेती के होथे खुब नुकसान। कंपनी मालिक करही भरपाई, पइसा पाही गरीब किसान।। पंन्द्रा किलोमीटरा हछल मा, ओहा करही विकास के काम। गांव वाला मन कंपनी, सबले पहली दीही काम।। स्वास्थ्य परीक्षण घलो करही, शाला सड़क बना के दीही। पानी अऊ बिजली के परबन्ध, गांव ला सुघ्घर बना के दीही।। खेती वाला अफसर मन, आफिस छोड़ खेत मा घुमही। सब रोग राई दूर भगाही, धान गेंहू खेत मा झूमही। पी एस सी के प्रतियोगी परीक्षा, नियमित होही हर साल। छत्तीसगढ़ मा ला के रबो, कार्यक्रम अनूठा बेमिसाल।। अनुभव अउ विश्वास हावे, हमर पास हमर दल मा। जतर कतर ला देखो मत, फंस जाहू तुम दलदल मा।। जान लो हर चमकने वाला, कभू नी होवय असल हीरा। बाद में पछताहू जबरा, कोन सुनही तुहर पीरा।। हमला जानत हो पहिचानत हो, वोट मिलही तुंहर सबके। गांव गरीब किसान मजदूर, प्यार मिलही आप सबके।। कोई न हो फालतु बइठांगुर, न रहे किंजरइया फिरइया। एक दिन जरूर बनके रही, छत्तीसगढ़ सोन चिरइया।। सबके तरक्की सबके भला, ये हमर सबला गोहार हे। दाई बहिनी दीदी ला राम राम, भाई मन ला हमर जोहार।। .......................................................................000.............................................................................. 05 सितम्बर 2008 गुरू वन्दना प्रथम सुमिरन गुरूदेव ला, करत हो तुहर चरण-वन्दन। गला सोहे फुल गजरा, माथे मा टीका चंदन बंदन।। सर्व पल्ली डाॅ. राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन के ज्ञानी महान। पांच सितम्बर जनम दिन मा, सम्मानित होथे शिक्षक महान। भारत मा पढि़स-लिखिस, पढ़ाइस देख विदेश मा। भारतीय दर्शन के सही रूप ला, फैलाइस देश विदेश मा।। सोवियत रूस मा बनिस राजदूस, बढ़ाइस रूस-भारत मितानी। बी. एस. पी. ला करिस मदद, आड़े दिन काम आइस मितानी।। उपराष्ट्रपति बनिस भारत के, राज्य सभा के सदर। दार्शनिक राजा के आचार-विचार, ृ मन ला भाइस, छूगे अंदर।। राष्ट्रपति बनके, राधाकृष्णन, बनिस राजा हिन्दुस्तान के। पूरा होगे सपना, अफलातुन के, नाम उजागर करेन हिन्दुस्तान के।। धर्म राजनीति के कोरे समन्वय, लिखिस ग्रंथ कई ठो महान। भारतीयता के करे वकालत, अध्यात्म शक्ति हे महान।। रूसी मुखिया क्रुश्चिेव पूछिस, हमर देश तोला कइसे लागिस। भौतिक विज्ञान करय तरक्की, अध्यात्म मरणासन्न लागिस।। भारत देश के यहाभाग, सर्वपल्ली जइस सपूत महान। पांच सितम्बर शिक्षक दिवस, त्याग तप बनावे व्यक्ति महान।। राष्ट्र निर्माता गुरू ज्ञान के भंडार, मन रोवे मुखड़ा मा मुस्कान। शिक्षक दिवस मा हमर संकल्प, मिलही ज्ञान करो गुरू सम्मान।। ...........................................................................000.......................................................................... 15 अगस्त 2008 छत्तीसगढ़ पुरान सुनो संगवारी सुनो मितान, ध्यान लगा के तुमन सुनहू। सुनावत हो कथा कहानी, मने मा खुबेच गुनहूं।। एक झन आइस मंगन बनके, चिरहा फटहा कपड़ा लत्ता मा। हम का जानन सुधवा मन, वो खेलिस आगी इंगरा मा।। सज्जुग त्रेता अऊ द्वापर, अभी चलत हे कलजुग। छत्तीसगढि़या नइ बदले, सबो जुग ला समझे सज्जुग।। पावन गंगा कस दिल रखथे, हमर छत्तीसगढिया भाई मन। छल कपट ला कभू नी जानय, भाई बहनी अऊ दाई मन।। माटी के ओ वेद पुराण सब बनावत हे। मत कर घमंड रे पाखंडी, आगे जमराज गुरबित हे।। रथे गांव के जोगी जोगड़ा, होवय आन गांव के सिद्ध। हमर सुभाव ला जानत हे, मेहमान नवीसी मा परसिद्ध।। पहुना बनके घर आइस, बैठिस खटिया के पाटी मा। खुद पसरगे खटिया मा, हमला धकयाइस माटी मा।। हम तो ठहरे धरती पूत, कहलाथन छत्तीसगढि़या। पसीना बोहात करथन मेहनत, बासी खाथन पीथन मडि़या।। बघवा खाल ला ओढ़के कोलिहा, बनगे, ओहा जंगल के राजा। राज काज के मरम नई जानय, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।। कोलिहा राजा के हाव भाव ल देख, जनता के मन मा होइस शंका। अब तो भेद खुल के रही, बजाईन सब मिलके डंका।। हुआं हुआं करिन सब कोलिहा, राजा ला घलो लगिस हुआंस। राजा पन ला भुलगे कोलिहा, हुआं हुआं कर करिस खुलास।। चारों मुड़ा ले दोडि़स परजा, खुलगे भेद खुलगे राज। आंखी ल नटेर दिस कोलिहा, जंगल मा आगे सुराज।। मंत्रालय मा बइठे बइठे, मेछरावत हे सब मंत्री मन। रक्षक हा भक्षक बनगे, अंटियावत हे संतरी मन।। बंगदेश के नकसल बाड़ी ले, पसरत हे खूनी सलाम। सत्ता दलम थरवित हे, जनता के होगे हाल बेहाल।। पूरे छत्तीसगढ़ मा पसरगे, आतंक अराजकता के राज। सुध बुध लेवइया कोनो नइये, मौज करत हे खुनी बाज।। बेसरम कंत्री मंत्री सबझन, मिथ्या बजावत हे गाल। भ्रष्टाचारी सब यंत्री संत्री, मनमौजी खेलत रंग गुलाल।। सड़क भवन तरिया डबरी, भ्रस्टाचार के कहे कथा। आंख के अंधरा कान के बहरा, कोन सुनही हमार ब्यथा।। शिक्षा कर्मी के नाम पर, बेरोजगार होवय हलाकान। दलाल दलम सक्रिय होगे, चलगे रिस्वत के दुकान।। सत्ता पाये के खातिर कपटी, आदिवासी मन ला भरमाइस। सरल सुभाव के आदिवासी, लबरा के छलावा मा आइस।। एक ठन गाय दूहूं किहिस, झूठ बोलिस लबरा हा। कतको छिपाबे ते हा लबरा, छलकत पाप के गगरा हा।। कुकुर भरय मुड़ी के घाव, मंगन भरे गोड़ के घाव। तेहा कतको सफाई देबे, नइ भुलाय लबरा के नाव।। सलवा जुडुम के नाम पर, होत हे बस्तर के विनास। उड़न खटोला मा उड़े मंत्री, कहे, होत हे बस्तर के विकास।। आगू आगू एस पी ओ चले, पाछू चले पुलुस जवान। फिरंगी चाल चले ओमन, जनता ल करे हलाकान।। ये हा राहत सिविर नहीं, बनगे जलिया वाला बाग। ओ डायर बनके बैरी, बरसावत हे शोला आग।। कहां जहु तुम काशी नगरी, जा के देखो बस्तर मा। पूरा बस्तर समसान बने हे, सूल चलत हे अन्तस मा।। धू धू कर चिता जलत हे, पूरा बस्तर गुंगवावत हे। सत्ता दलम सैर मा निकले, हाथ सेकय जाड़ भगावत हे।। खेती किसानी के मत पूछो हाल, बेरा मा खातु मिलय न बिजली। मांगों तो होथे टोटा फांसी, किसान के उड़ाथे खिल्ली।। लोगन पूछत हे बारमबार कब किसान के दिन बहूरही। कोढि़या लफराहा ल भगाओ, कड़मस लाओ किसान के दिन बहुरही।। छत्तीसगढ़ महतारी के ललाट, दमकत हे, भूजा फड़कत हे। छत्तीसगढ़ मा आही, नवा बिहनिया, अइसन लक्षण महकत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 25 अगस्त 2008 उड़न खटोला फुरफूंडी पुरान रैनएयरवेज के उड़नखटोला, होगे शासन के, जी के काल। दंडक वन मा रक्सा घूमय, गट सांप के बिला मा छूछू घूसय, लीलत बनय न उगलत। गृह मंत्रालय ठाढ़े सुखागे, करन लागिस हरकत।। कहां लुकागे उड़न खटोला, चारों मुड़ा मा भेजो दूत। ऐसी ले निकलय नहीं, कागद मा करय करतुत।। बघवा खइस के चितवा खइस, गृह मंत्री हर करय विचार। राम नाम होवय सत्य, सोचत हे बारम बार।। पवन रथ फुरफुंडी अस उड़ैया, ते कहां उतर गय मोला बता। मरघट मा उतरे, कि पन घट मा, बीहड़ मा कहां समागे ये बता।। हे यज्ञ देव ते हो जा परगट, लगिन मुहरत लकठावत हे। यज्ञ पुरोहित आके बइठे हे, घड़ी देख छटपटावत हे।। चुनावी शंख बजा के बैरी, दनादन नंगाड़ा ठोकत हे। हमर योद्धा महारथी मन, चेथी खजवाय खिसयावत हे।। हे फुरफुडी ते हो जा परगट, में घर के होयेंव न घाट के। गृह मंत्री हर चिंता मा पड़गे, होवत हे चर्चा बाजार हाट में।। एस पी जारी करय फरमान, नरवा देखो ांको। जंगल पहाड़ ल छान मारो, कोई कसर न बाकी राखो।। हुकूम करइया ला करन दे, आओ चलो खैनी फांको। दम मारो सुस्ती भगाओ, रखो सामान गाड़ी हांको।। एक ठन गांव मा पूछेन हम हा, तुमन ला इहां कुछ दिखिस हे। लबारी हम काबर कहिबो, उत्ती डहर ले निकलिस हे।। सच कहत हो तुमन दादी, उत्ती ले उथे, बेर जाथे बूड़ती मा। हमर बइठे के बेरा नइये, हमू जावत हन बूड़ती मा।। हवलदार पूछे दादी ला, कतिक रिहिन दूकोरी दस। अरे बाप रे फौरन फुटो यहां से, हमर संख्या हे पांच कम दस।। बीबी बच्चा रद्दा देखत होही, दरसन बर तरसत होही। बिहनिया ले मुन्ना स्कूल जाथे।। ददा बिना वो हर रोवत होही।। दिहि डोंगर ला देख डारेन, अऊ देखेन जंगल झाड़ी ला। रूख राई ला पूछ डारेन, अउ खंगालेन कचरा काड़ी ला।। बेंदरा भालू ला घलो पूछेन, अऊ पूछेन चील गिधान ला। हे नाथ नई पायेन विमान ल ।। दंडक बन मा रक्सा के राज, हुकुम बिना हवा चले न पानी। नेता अफसर रयपुर मा बइठे, गाल बजाय करे सियानी।। नरवा देखेन ांकेन, खेत खार ला छान मारेन। रूख राई ल चढ़ के देखेन, गाड़ी ल छोड़के पैदल घूमेन।। चितवा बघवा हांव ले करे, बन भइसा मारे बर कुदाय। गिरत हपटत भागेन हम हा, ले देके परान बचाय।। पहली दफा सपेटा मा परगेन, नी देखे रेहेन ददा पुरखा। सहेब सुदा मन एसी मा बइठे, हमला समझथे निचट मुरखा।। पानी पुरा ला तउंर के नहाकेन, अऊ पुछन कमइया किसान ला। जोन ला पुछो मुड़ी डोलाथे, हे नाथ नी पायन विमान ला।। कब लहुटही नोनी के बाबू, परेशान परिजन करे चित्कार। नाक कान मा पोनी गोंज के, सूते हे उंघरी सरकार।। भाई भइया के मयारू भइया, तोर बिन होगे घर सुन्ना। चेत बिचेत पड़े गुडि़या, भूखे लांघन सोवत हे मुन्ना।। बिलख बिलख के पत्नि रोवय, चारों मुड़ा मा होगे अंधयार। सूसक सूसक के बेटा रोवय, कब मिलही पापा के पियार।। दाई ददा के दुलरूवा बेटा, कब लहुटही घर संसार। रोवत रोवत आंखी भरगे, गंगा जमुना बोहावत हे धर।। तरा जरा मन देख रद्दा, संगी साथी कब के अगोरत हे। शासन ला नइये ककरो चिंता, फीता काटय ताली बटोरत हे।। चारो धर मा मातम छागे, जस्न मनावत हे सरकार। टेटका असन रंग बदलय, महिनो गुजरगे नई मिलिस, बात बनावत हे सरकार। सावन के अंधा ला हरिहर सूझे, जन पीड़ा से ओला का दरकार।। .............................................................................000................................................................... .. क्रमांक शीर्षक 1. चाणक्य 2. चक्रब्यूह 3. दंडकारण्य 4. शकुनी मामा 5. राम राज के सपना 6. कुकुर बिलाई के दोस्ती 7. श्री गणेश वंदना 8. श्री दुर्गा स्तुति 9. हरहा गरवा 10. मरखंडी गाय 11. सोन चिरइया 12. गुरू वन्दना 13. छत्तीसगढ़ पुरान 14. फुरफुडी पुरान 15. मदिरा महिमा 16. सोनाखान के बघवा 17. पढि़स न सीखिस 18. मया के मुंदरी 19. नेता जी आवत हे 20. पीतर 21. हमर गांव 22. बिजली बाई 23. देवी दरसन 24. देवी पूजा 25. मयारू माता 26. बखरी के तूमानार 27. झगरा 28. कुकुर देव 29. लकड़हारा 30. श्रद्धा भक्ति 31. पिंजरा के सुवा 32. बगुला भगत

kavita

क्टुबर 2008 
पिंजरा के सुवा
 कानून बेवस्था होगे फेल, 
 जंगल मा होगे रक्सा राज।
 फुग्गा फुलावे बजावे गाल,
 बैरी झपट्टा मारे जइसे बाज।।
 कई कोरी गांव के लोगन ला, 
 बसाइस सहत सिविर मा।
 गांव छुटे परिवार उजड़गे, 
 बसिन्दा सोचत हे सिविर मा।।
 खार खेत सब होगे परिया, 
 माल मवेसी जंगल म जाय।
 ए पार नरवा ओ पार ढ़ोंड़गा,
 दिन रात जी हा गांव मा जाय।। 
 लरा जरा के खुब सुरता आथे,
 चिरई होतेव उड़ के जातेव। 
 तिहार बार के सुन्ना लागथे,
 तिजा नवई लेवा के लातेव।। 
 बेटी के नान नान नोनी बाबु, 
 बड़ उतययिल ओमन हाबय।
 बरजय बास मानय नहीे,
 घेरी बेरी नरवा म जावय।।
 का गलती करे हन भगवन,
 सिविर मा हमला डारे तय हर।
 तन मन मा हमर बेड़ी बंधांगे,
 का के सजा देवत हस तेहा।।
 वरदी वाला डंडा लहरावे, 
 बात बात म वो खिसयाथे।
 काकरो सुने के आदत नईये,
 टांट भाखा सुन माथा पिराथे।।
 हमला देखके बन के बघवा,
 मुड़ी गडि़याय पूछी ओरमाय।
 टेड़गी धारी ये पुलिसिया मन,
 धमकी देवे नी सरमाय।। 
 चिरई चुरगुन ला उड़त देख,
 मन हा उड़थे बादर मा।
 कुहू कुहू कोयलिया बोले,
 थाप लगातेव मांदर मा।।
 हइरना मिरगा नरतन करय,
 मूरली बजावे पड़की मैना।
 फुदक फुदक के भठलिया नाचे,
 कमर मटकावे बन कैना।।
 भर्री मा बोतेव कोदो कुटकी,
मईंद खार म लारी बनातेव।
 मडि़या जोंधरा जुवार बाजरा, 
 सूवा रमली दूर भगातेव।।
 आमा अमली अऊ चार तेंदू,
 सबके अब्बड़ सूरता आथे।
 महुवा फुल बिने बा जातेंव,
 बांस करील के सुरता आथे।। 
 चार चिरौंजी बजार हाट मा,
 सहेब सुदा मन सूब बिसाथे।
 दूनो परानी संग मा जाथन,
 नी जाब मा घरवाली रिसाथे।।
 सिविर बंधन तन ला बांधे,
 मन तरंग मा उडि़ उडि़ जाय।
 कब तक हम बंधाके रहिबो,
 सूवा पिंजरा मा असकटाय।।
 हमर सुनइया कोनो नइये,
 लगथे हमला जग अंिधयार।
 लाल लाल आंखी सबो दिखाथे,
 कहां से मिलही हमला पियार।।
 बन मा घुमय बन मानुस,
 दादा दीदी ओमन कहलाय।
 घर म जबरन आके घूसय,
 पेज पसिया सबो खटिया जठना मा
 वो सूतय, मुहाटी मा 
हमला कुकरा बासत घर से निकले, 
 जावत बेरा घुब धमकाय।।
 पुलिस वाला आवे चढ़ती बेरा, 
 बांध के लाने पुलिस थाना। गारी बखाना खुब देवय,
 लात घुसा के रहय पीना खाना।।
 दलम वाला हमर दार दरे,
 पुलिस वाला करय पिसान।
 जाता मा हम पिसावत हन,
 नी बाचय थोरको निसान।। 
 धरती वाला सब आंखी मंूदे,
 हमला सब कोई डरवाय।
 प्रभू घर मा देर हे अंधेर नहीं,
 तेहा काबर चुप मिटकाय।। ......................................................................000............................................................................... 17 17अक्टुबर 2008 बगुला भगत संतन बन के आइस बगुला, तरिया तिर मा बनाइस डेरा। एक गोड मा चुप खड़े रहय, राम नाम के करत हे फेरा।। ह पता बीते महिना गुजरगे, दाना पानी छोड़ करय तपस्या। मछरी मुखिया करय निवेदन, संतन कहे, हावे भारी समस्या।। हिमालय मा में करंव तपस्या, मिलिस तप बल से दिव्यशक्ति। भगवान बोले हे भक्त राज, अलौकिक हावे तोर शिव भक्ति।। मांग वरदान, जो मांगे सो पावे, प्रभु, जन सेवा में तोला मांगव। रूपिया पैसा सब थोथा जानो, शक्ति दे, में तोर पइंया लागवं।। प्रसन्न हो शिव खोलिस खजाना, दीस मांला अलौकिक दिव्य शक्ति। भूत भविष्य सब दिखथे मोला, यहां तक लाइस परम शक्ति।। होही यहां भारी उथल पुथल, धरती डोलय अऊ पानी उछलय। चिखला पानी सरमेट्टा होय, आग बरसही होही परलय।। जीव जंतु बर दया के भावना, करंव तपस्या तुहंर खातिर, करही भगवान तुहंर रक्षा। प्राण तियागहूं तुहंर खातिर।। तरिया के मछरी होगे भयभीत, स्वामी जी! प्राण रक्षा बता उपाय। बगुला बने चतुरा हुसयार, जीव जंतु ला बताइस उपाय।। सोच म परगे सब मछरी, सरांगी बिजलू कोतरा टेंगना। बामी रूदवा चिंगरी केकरा, मोंगरी देखे बगुला के रंेगना।। @@4@@ पोटोर पोटोर भुख मरत हे, अढि़या बिन पोटा अटियाय। लप लप लप जीभ हर करय, करिया चोंच मा लार टपकाय।। देखा आंखी मा मछरी देखय, राम राम ला वो सुमरत जाय। मोंगरी सोचे दार मा कुछ काला, फौरन मछरी बैठक बुलाय। लेबो परीक्षा ढ़ोंगी संतन के, केकरा गीस बगुला के निकत। मछरी मन सब तमासा देखय, बगुला बर समस्या बिकट।। बगुला केकरा ला आवत देखे, दूनों डाढ़ा ला केकरा फैलाय। बगुला डर मा पाछू घंूचय, सोचत हे, का होगे बिन बुलाय।। कोकड़ा ला कारी पसीना छुटय, मारे डर के भारी जर हमागे। रक्सा बरोबर केकरा दिखय, कोकड़ा के करेजा डर समागे।। मछरी के भोरहा तरिया आवे, केकरा के सपेटा मा परगे। संतन चोला फेंकिस कोकड़ा, केकरा के चरण मा गिरगे।। कोक कोक कोकड़ा नरियाय। चिंगरी कोतरी नाचय कूदय, मछरी मन अति हर साय।। .............................................................................000........................................................................ च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ 12 अक्टुबर 2008 कुकुर देव दूर देश ले आवय ओमन, कहलावे व्यापारी बंजारा। घोड़ा खच्चर के बने काफिला, लेकर चलय दल बंजारा।। लइका सियान अउ दाई माई, पूरा परिवार संग मा चलय। छेरी बोकरा, कूकरी कुकरा, माल मवेसी ला घलो धरय।। नून तेल गुर अउ मनिहारी, बंजारा करय सबो व्यापार। तरिया नदिया पानी असलग, डेरा लगावे चतुरा हुसयार।। दूर दूर तक घूमय फिरय, बट्टा मा धन वदूसा लगाय। सीजन मा जब वापस आवे, करजा वसूले पइसा कमाय।। नाचा गाना संगीत के परेमी, दिन मा घूमे राम मन बहलाय। लोगन से हिल मिल के रहे, सुख दुख मा रहे सहाय।। एक रिहिस गरीब किसान, काम बुता मा कोढि़या अलाल। बंजारा से मांगिस करजा, मदद कर मोर परे हे दुकाल।। हाथ जारिस आऊ पांव परिस, आगे असाड़ खड़ा होगे नांगर। बिसाहूं बइला करहूं किसानी, भरोसा करबे चलत हे जांगर।। गांव वाला सब गवाही दीही, पतियाबे, झन समुझबे लबरा। परिवार बिपत मा पड़े हे मोर, अकाल के मार परत हे जबरा।। दुखल सुन पसीज के बंजारा, ले पइसा मेहनत बने करबे। भगवान रही तोर बर सहाय, काम बुता ल कभू झन डरबे।। प्रसन्न मन से चलय किसान, बइला खरीदिस करिस जुताई। दिन आऊ रात एक करिस , बीजा पाटिस होगे बुवाई।। आगू आगू सब काम करय, करिस निंदाई होगे बियासी। सरग भरोसा खेती किसानी, खेत मांगे पानी, मरे पियासी। बादर उठे हवा उड़ा ले जाय, पानी बिन सब खेत सुखागे। मेहनत खुब करे किसान, दुर्दशा देख चेहरा मुरझागे।। करगा बदरा लूवे किसान, मवेसी बर पैरा सकलाय। सावां बदउर पसिया ओगराबो, भूख भगाबो जिनगी चलाय।। अपन बेरा मा आवे बंजारा, गीस किसान करिस गुहार। आंखी मा बहे आंसू के धार, कइसे करों भारी रिनी तुहांर।। अढि़या पानी बिन तरसत हे, ए जीव हर रही तोर अमानत। कबरा कुकुर तोर सेवा बजाही, नी करे अमानत मा खियानत।। अंधियारा के अधरतिया मा, लुटेरा दल पहूंचिस डेरा मा। हाथ मा ठेंगा फरसा पकड़े, कोरी खइरखा घेरिन डेरा ला।। डेरा मा चुप दुबकगे कुकुर, लुटेरा करिन पूरा सफाई। बुद्धिमानी से कुत्ता करिस काम, मालिक से झन हो हाथापाई।। बिहनिया बेरा जागिस मालिक, धोती खींचे चले तरिया पार। पानी मा वो लगाइस डुबकी, मुंह मा गुंडी रखे तरिया पार।। एक एक कर सबो निकाले, चकित हो देखे कुकुर कमाल। लोगन सब कुकुर ला देखे, आज बचादिस सब जान माल।। कुकुर ला सब सहूंरावत हे, अइसन प्राणी लाखों म होय। कब का होही ओकर का भरोसा, कुकुर मनखे बरोबर होय।। बंजारा लिखिस सुंदर पाती, भेजिस कुकुर मालिक के पास। देख के मालिक गुस्सा होगे, मारिस टंगिया गिरीस लास।। पढि़स पाती उड़ागे होस, चेत बिचेत मुरख किसान। बंजारा सुनिस सबो खबर, वफादार कुत्ता के रही निसान।। माली घोरी के पटपर भांठा, भव्य मंदिर कुकुर देव के। लोगन श्रद्धा सुमन चढ़ावे, सूरता करय कुकुर देव के।। सब जीव होथे एक सामान, फरक होवय रूप रंग मा। आचार-विचार बनके रथे, जइसे मिलय सतसंग मा।। ...................................................................000.................................................................................. शरद पूर्णिमा 13 अक्टुबर 2008 लकड़हारा हर सबेरे घर से निकले, पांच कोस के रेंगय रद्दा। खांद मा टंगिया कमर मा रस्सी, साठ बरस के बुढ़वा दद्दा।। दुबला पतला पिचके गाल, बदन सलुखा सिर मा गमछा। कमर मा धोती माड़ी ओरमाय, जिनगी चलाय प्रभु के इच्छा।। परिवार मा रहय एक अकेला, लकड़ी बेचे दीन लकड़हारा। बीबी बच्चा शहरे मा रहिथे, छोडि़क सब, होगे बेसहारा।। जंगल मा रोज लकड़ी सकेले, बंडल उठावे फिर चले शहर। बदन मा कारी पसीना पझरय, संझा बेरा मा अमरे शहर।। भूखे लांघन रहिके बुढ़वा, मेहनत करे रात आऊ दिन। बेटा बहुरिया सेवा बजातिन, समय के मारे देख दुरदिन।। नाती पोता पातिस पोटारतिस, भाग मा नईये अइसन सुख। ऊपर वाला जो रेखा खींच दिस, उही बनाथे सुख आऊ दुख।। घरवाली पावे बेटा के सुख, सेवा करय बहुरिया रानी। दुधे खाय आऊ दुधे अचोय, मोर भाग मा आवे दुखे दुख।। गुड़ी मा बोहे लकड़ी के बोझा, चिंता फिकर ला सोचत सोचत रद्दा काटे, का बचे हे हाड़ मास के तन मा।। शिव पार्वती चले भ्रमण मा, पृथ्वी लोक मा करिन अवतरण। रद्दा मा रेंगत हे लकड़हारा, माता धरे, शिव-कमल-चरण।। माता शिव से करत हे विनती, दुख के बोझा चैथे पन मा करत हे मेहनत, हावे धन हीन, नइये कर्महीन।। हे प्रभु तोर खजाना भरे बोजे, लकड़हारा ला कर कुछ मदद। घाम पियास मा करे मेहनत, प्रभु, कुछ बरसा दे, हे जलद।। मानव तन होवे कर्म प्रधान, देवी, चलो आगे, करों प्रस्थान। नहीं, प्रभु, ममता ला देबे ध्यान, कृपा कर तब जाबो अन्य स्थान।। शिव, माता के आगे होगे विनत, मुहर के थैेली रखिस रद्दा मा। लकड़हारा लतिया दिस थैली, सुरू कुरू चलिस फिर रद्दा मा।। देवी, ये जनम नइये धन सुख, अगले जनम मा रही माला माल। धन कुबेर के बनही मालिक, बैठांगुर अऊ निचट अलाल।। देव लोक जस करही सुखभोग, सभा मा अप्सरा करही नर्तन। धन्य हो प्रभु मोला होगे संतुष्टि, कर्मशील के होगे सुंदर जतन।। ..............................................................................000....................................................................... 14 अक्टुबर 2008 श्रद्धा भक्ति हाथ मा कटोरा, कांध मा गमछा, लकुटी ओकर बनय सहारा। माता जी के पुकार ल सुन के, कहे, तोर महिमा हावे कतिक न्यारा।। पय डगरी मा डगर नापय, सोचत गुनत हे मने मन मा। में हा रेंगत रेंगत आहूं माता, तोर तसवीर बनाहूं, मन मा।। मोटर गाड़ी बर नई पइसा, अपन कोरा मा तोला झुलाहू माता। पान फुल के नी होइस जोरा, श्रद्धा सुमन तोला चढ़ाहूं माता।। मोर घर मा नइये आटा चांवल, कहां से मांगतेंव कलेवा मेंहा। दूनों हाथ जोर बिनती करहूं, माफी देबे, परगट होबे तेहा। सरसरउंवा चले मोटर गाड़ी, करथे जी हा धक पक धक पक। नीचट तीर ल फटफटी चलथ्ेा, ओहा करथे फकफक फकफक।। पोटा हा मोर कांपत हे माता, तिहीं हा लगाबे बेड़ा पार माता। चार कोस ले आवत हों रेंगत, ले देके खूंदेव तोर सियार।। तोर दरबार के गजब हे लीला, महमहावत हे चम्पा चमेली। मयना मंजूर नरतन करय, हइरना मिरगा करे अठखेली।। डोंगरी तीर बिराजे हस माता, बहत हे शीतल मंद समीरा। सुर सरिता तोर पखारे पइंया, अउ करत हे आचमन नीय।। भक्तन सब करत हे दरसन, सब बर मयारू हावस तेहा। पान परसाद चढ़ावय सब, मन के आस पूरा करबे तेहा।। ए डोकरा, सरको, भगो यहां से, लोगन सब दुतकार लगावे। भक्तन के मन होगे उदास, कइसे इंकर बेवहार हा हावे।। चलिस मंदिर के पिछवाड़ा मा। गमछा मा अपन आंसू पोछय, चकित, का होगे माता के बाड़ा मा।। अचानक आइस भूचाल वहां, मंदिर मुहाटी घूम पाछू। भक्तन सम्मुख माता प्रगटे। मूरख जन होवय आगू पाछू।। ........................................................................000............................................................................. 06 अक्टुबर 2008 मयारू माता बारह बछर के नोनी आवे, परसाद दे चिल्लावत हे। सेउक हा अंगेठा मा सूतय, आंचे आंच खूब ऊंघावत हे।। थके हारे निंद मा सूतय, नाक हा खूब गर्रावत हे। गोहार ला ओ सूनत नइये, नींद हा जबरा भन्नावत हे।। बबा बबा मोला परसाद दे, नोनी हो ऊंचाहा चिल्लावत हे। रकपका के उठिस सेऊक, आंखी कान ला रमंजत हे।। कोई मोला पुकार लगावे, जतर कतर ला देखत हे। में हा शायद सपना देखेंव, इहां कोई हा नी दीखत हे।। उसनिंदा मा हावय सेऊक, जठना मा फेर नींद मा ओला कोन जगाइस, सोचत करवट बदलत हे।। जठना छोड़ उठिस संतन, हाथ मा ठेंगा उठावत हे। एती ओती खोजत हे आंखी, मोला कोन, रात पुकारत हे।। चारों मुड़ा ला घुम के देखिस, कोनो नजर नी आवत हे। खोजत गिस मंदिर तिर मा, माता सम्मुख झट पहंुचत हे।। इहां भी कोनो दिखत नइये, माता हर सुघ्घर सोवत हे। मंदिर पट ला खोलिस कोन, संतन मन मा खूब सोचत हे।। गुना भाग मन मा करय, हूरहा ओला सूरता आवत हे। जावत बेरा मा बड़े पुजारी, कानों कान समझावत हे।। भूलाबे झन रे तेहा भोंदू, माता आसन मा बिराजत हे। सारा जग नींद मा सोवय, जगदंबा रशिया जागत हे।। सूते जठिया कोनो नी आवय, घर मा सब नींद भंाजत हे। रात माई सखी संग आवय, चहूं दिशा कजरा आंजत हे।। चंपा चमेली सदा सोहागी, रात मनी महमहावत हे। दसमत हा लाली बिखेरे, मदार मंद मुसकावत हे।। गोंदा कनेर अऊ सिरइयां, सोनहा रंग ला बिछावत हे। वरूण देव धूकना धुकय, चंदा हा लोरी सुनावत हे।। रूख राई सब नाचय गावय, बरगद मुड़ी डोलावत हे। पुरइन पान मोतियन बटोरे, खोखमा खूब सरमावत हे।। तरिया जल तरंग बजावय, नदिया मृदंग बजावत हे। मछरी जल नर्तन करय, कुमुदनी खिलखिलावत हे।। कपाट ला ते ओधाके सूतबे, इहीं बात हा बिसरावत हे। मगज कइसे मोर मारे गीस, अभी एदे सूरता आवत हे।। जगदंबा मइया हावे मयारू, माता कैना बन के पुकारत हे। परसाद मांगय के ओखीमा, संतन ला ओहा जगावत हे।। भक्तन बर रहिथे सदा प्रसन्न, माता ल जग सहूंरावत हे। भारी दुःख मा परे हे प्राणी, जगदंबा ल गोहरावत हे।। भाव के भूखा हावय माता, सुमन श्रद्धा भक्ति चढ़ावत हे। माता के कोठी भरे बोजे हे, जो मांगो, मन, चाहा पावत हे।। निस दिन सेवा करबोन माता के, माता जी सब ला बुलावत हे। सब जीव बर मयारू हे माता, जगदंबा ओ कहलावत हे।। .....................................................................000................................................................................ 8 अक्टुबर 2008 बखरी के तूमानार बखरी मा फुल फुलवारी, गोंदा गुलाब महमहावत हे। नार बेलोरा खूब लहरावय, तोरई डोड़का झूमरत हे।। तूमा नार छानी छानी पसरत हे। फलों के राजा कुम्हड़ा दादा, छानी मा खूबेच मोटावत हे।। पाछू पाछू रखिया चलय, सासू हर खूब सहूंरावत हे। रखिया बरी बनाबोन हम, बहुरिया ल खुद बतावत हे।। भीतरे भीतर हरसथ, नोनी, चेहरा ओकर लजावत हे। मया के मारे कहि दिस माता, नोनी हा तो सरमावत हे।। बरबही करेला बने संगवारी, लार मुंह मा टपकावत हे। चना घलो कनोजी मा कूदय, रंधइया मंुह पंशवत हे।। कुंदरू के लरा जरा बाढ़य, माचा मा खूब इतरावत हे। कोरी खइरखा लइका लोगन, बखरी हा गद बदावत हे।। खेखसी जोंथरा बखरी जागय, सुवाद खूब सुहावत हे। देखइया मन साग मांगय, सबके मन ल मडावत हे।। रमकलिया ल सब झन खावय, बघरा अम्मट मिठावत हे। चुचुटिया हा घलो सुहावय, बखरी मा मिट मिटावत हे।। चम्मास धूपकाला दूनो बेरा, चेंच भाजी खूब सुहावत हे। अम्मट बर पटवा भाजी, सबो दिन लल चावत हे।। जरी भाजी साल भर आवय, गुत्तुर गुत्तुर खूब लागत हे। बरी संग बनेच मिठावय, लइका सियान सब खावत हे।। तुमा नार खूबेच बगरय, रूंधना ओपार नाहकत हे। तूमा साग पड़ोसी घलो खावय, हमला कभूच नी बतावत हे।। लुका लुका के तूमा ल टोरय, मुसुर मुसुर साग खावत हे। तूमा ला कोन हर टोरत होही, परोसी चुप्पे मिटकारत हे।। हमर नार के तूमा टोरय, लोगन ला खूबेच बांटत हे। सगा सील ला घलो बांटय, हमर जी हा चुचवावत हे।। ओकर कुकरा रूंधना कूदय, हमर बाड़ी मा खूब बासत हे। मौका हमला सुघ्घर मिलिस, धरेन ओला छटपटावत हे।। कूकरा मालिक घर मा आइस, कुकराल वापस मांगत हे। नियाव कराय के नियत हावे, लोगन ला सब सकेलत हे।। हमार नार के तूमा टोरिस, ओ पार ला अपन समझत हे। कुकरा मिलिस हमर बाड़ी मा, परोसी काबर चिल्लावत हे।। .....................................................................000................................................................................ (विजया दसमी) 8 अक्टुबर 2008 झगरा झगरा लड़ाई काला कहिथे, नाती अपन दादा ल पूछत हे। लइकई बुद्धि जागे जिज्ञासा, दादा मने मन मा गुनत हे।। दादा बोलिस अपन नाती ला, नाती घर से गुर लानत हे। मुहाटी आगू गलियन मा, गुर ला चुप्पे मड़ावत हे।। जहां रहे गुर, वहां आवे चांटी, देखते देखत, चांटी झुमत हे। चांटी ल देख कुकरा आवय, ठोनक ठोनक के बने खावत हे।। कुकरा देख भेंकवा के मुंह मा, पानी आवे लार टपकत हे। भेंकवा कूकरा के पाछु पड़गे, मौका देख झपट्टा मारत हे।। उत्ता धुर्रा कुकरा हा भागिस, भेंकवा खूब दउड़ावत हे। कुकरा के कारी पसीना छूटय, कोट कोटावत खूब भागत हे।। ओती ले आवे करिया कुकुर, भों भों कर जबरा भूंकत हे। कुकुर के दहाड़ ला सुन के, भेंकवा मुंहू ला लुकावत हे।। भेंकवा मालिक घर से आवे, हाथ मा ठेंगा अंटियावत हे। करिया कुकुर के सामत आगे, ठेंगा ठेंगा खूब बरसावत हे।। कांय कांय कर कुकुर भागय, गोसइंया तमतमावत हे। ठेंगा धरे घर से निकलय, गारी बखाना सुनावत हे।। कुकुर बिलाई घरमा खुसरगे, गोसइंया अब ठेंगा भांजत हे। होगे दूनो गुथ्थम गुथ्था, ठेंगा फेंक बजनी बाजत हे।। घर वाला सब कइसे चुकय, माई पिला सब सकलावत हे। गलियन बनय जंगी कुरूक्षेत्र, अपन ताकत बतलावत हे।। माई लोगन कछोरा भीरय, चूंदी ला खुब झटियावत हे। टूरा मन दोंय दोंय पीटय, जोर जोर सब चिल्लावत हे।। रोना चिल्लाना घलो होवय, गारी बखाना खूब देवत हे। भूइंया ठठावे ताल ठोंकय, सब बदला खूब लेवत हे।। नाती बूढ़ा दूनो तमासा देखय, नाती कोरा मा मुंह लुकावत हे। काम बुता ल छोड़ के लोगन, गली मा सब सकलावत हे।। का होगे कुछ समझ नी आवे, एक दूसर ला सब पूछत हे। बताने वाला कोनो नइये, जा जानय ओ हा मिटकावत हे।। लड़त लड़त अलोर पड़गे, भूइंया मा छटपटावत हे। जांगर सबके चेहरा ला सब ओमावत हे।। नाती बूढ़ा घर मा चलदिन, नाती ला फिर बतलावत हे। अइसने होथे लड़ाई झगरा, नाती मुड़ी ला डोलावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 08 सितम्बर 2008 ’’ मरखंडी गाय ’’ गौशाला मा आज होवत हे, पूजा भक्ति के जंगी प्रदर्शन। चमचा करत हे नाराबाजी, नेता जी के गउ माता दरसन। नेता जी के संग मा चलय, चमचा चाटुकार के दल। गउ माता हा रंभावत हे, सतर्क होवय सुरक्षा बद।। एक झन होइस देवीजी, करिस गउ माता के उपहास। पंचपति परमेश्वर बनय, बखान करत हे इतिहास।। जइसे जइसे होथय देव, तइसे चढ़ावय पान फुल। देवी देवता होवय बली, झइन करव कभूच भुल।। जंगल मा खूब राज करय, आदम खोर बब्बर शेर। भोजन बने हइरना मिरगा, झपट्टा मारे लगत देर।। धूप दीप अऊ जल तरपन, नेता जी करय गोधन पूजा। शरण मा गोहरावत हे माता, अउर नहीं कवनो दूजा।। धरती माता के प्रगट रूप, जग मा हावे साक्षात गौ माता। मनोकामना सब पूरा करय, काम धेनु होथे मयारू माता।। धारण करे सब तीरथ धाम, सबके पूजनीय गौमाता। स्वर्ग नरक होथे धरती मा, गावत हे गुण बेद माता।। कर्म फल तोला मिल के रही, जइसे ते करबे करम। देर हे मगर अंधेर नहीं, बखानत हे नीति धरम।। गौमाता खाथे चारा घास, तेहा परोसत हस लाड़ू। च्क्थ् ब्तमंजवत . च्क्थ्4थ्तमम अ2ण्0 ीजजचरूध्ध्ूूूण्चक4ितिममण्बवउ गौमाता खूबेच बिफरगे, हुमेलिस, चला दिस झाड़ू।। लाली गाय पियंर लाड़ू, घुंसिया के होगे लाल पीला। ओला खवातिस दाना पानी, अक्कल के पेंच, हावय गउ माता बनगे रणचंडी, गाय संभाले नी संभलत हे। नेता जी सोचे जतर कतर, विपक्षी मन के हरकत हे।। अवसर वादी नेता करिस मांग, करत जांच दल के गठन। विरोधी के आंखी फुटत हे, खुल जही ओकर आंखी बटन।। दूसर नेता बोले चूके बिना, एफ आई आर दर्ज करव। सुधवा पन ला छोड़ देवे, जुर मिल के सब अर्ज करव।। तेज तर्रार नेता कइसे चूके, मरखंडी गाय करो गिरफ्तार। राजनीति खूब गरमावत हे, जोस मा पकड़त हे रफ्तार।। नेता मन के नेता भक्ति, खूबेच रंग जनावत हे। ऊल जलूल हरकत करय, प्रजातंत्र ला सरमावत हे।। .........................................................................000............................................................................ 29 सितम्बर 2008 ’’देवी दरसन’’ नेता जी के सवारी निकलय, करही ओहर देवी दरसन। मिडिया वाला संग मा चलय, चमचा चाटुकार होवे हरसन।। गांव गांव मा होगे मुनादी, नेता जी हमर पधारत हे। आदर अगवानी करहू ओकर, स्वागत द्वार बनावत हे।। चैक चैराहा तोरण पताका, लहर लहर लहरावत हे। जगा जगा पढ़इया लइका, जोर जोर नारा लगावत हे।। घाम पियास मा खड़े हे लइका, देख देख बेर बिजरावत हे। खड़े खडे असकटावय सब, गुरूजी ल देःख डर्रावत हे।। मोटर गाड़ी के रद्दा मूंदय, संतरी वाला चमकावत हे। रिक्सा सायकल के सामत होगे, बरदी वाला धमकावत हे।। देवी दरसन बर उमड़य भीड़, भक्तन खूब खिसयावत हे। लाठी डंडा देख के भक्तन, सबके चेहरा मुरझावत हे।। भूख पियास मा लइका रोवय, पानी पानी चिचयावत हे। पुलिसिया डंडा देख के माता, बेबस, पानी पानी होवत हे।। बूढ़वा सियान गोड़हा कांपय, लगे पियास कंठ सुखावत हे। तन बदन पसीना पझरय, बैरी, पोंछे नी पोंछावत हे।। खड़े खड़े उबकासी लागय, मन हा खूब मिचलावत हे। आय हन करेबा दरसन, देवी हमला नी बुलावत हे।। आइस नेता खुलगे पट, पुजारी मन सहुंरावत हे। पालथी मोर बैठिस नेता, घंटों देवी ल मनावत हे।। कोपरा कोपरा मेवा मिस्ठान, देवी ल भोग लगावत हे। जंतर मंतर पढ़य पुजारी, कांख कांख शंख बजावत हे।। प्रसन्न मन से नेता निकलिस, पुजारी मन गिड़गिड़ावत हे। जनता के जब लगिस नंबर, ओला उत्ता धुर्रा सरकारत हे।। देवी सम्मुख भक्तन पहुंचे, नरिहर बत्ती मड़ावत हे। देवी दरसन दोन नी पावे, पाछू वाला धकियावत हे।। देवी रूठे करम हर फुटगे, अपन भाग ल कोसत हे। मन मन्दिर मा देवी बिराजे, दीन हीन सब ला पोसत हे।। कहां भटकहू तुम एती ओती, देवी खुद तोला पुकारत हे। तोर ध्यान मा देवी बसत हे, मन मंदिर ला उजियारत हे।। देवी मां मांगे मिठाई कलेवा, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे। सर्व ब्यापी हावे देवी माता, भक्तन के मन मड़ावत हे।। ....................................................................000................................................................................. 5 अक्टुबर 2008 देवी पूजा अकेला रद्दा झइन रेंगव, कुकुर मन सब घूमत हे। गरवा खोजइया बनके बैरी, यनुक मार मइनखे सूंघत हे।। जेठ के महिना जादा तूकय, घाम खूबेच लकलकावत हे। घाम पियास बन मा घूमय, गांव तीर मा सोरियावत हे।। दिखब मा अब्बड़ सुधवा हाबे, माल मवेसी बहाना बनावत हे। नी चीन्हया लइका आऊ बुढ़वा, झिम झाम के बेरा देखत हे।। बाहरा नार के मौघा फुटय, साले चके दौड़गा बनावत हे। देवी ली बने मनाबोन हम, ओहा सालेच के रूसावत हे।। खुन के टीका मांगय माता, भूख ओकर करलावत हे। पानी गिरे के पहिलेच बदी, देवी ला खूब सपनावत हे।। कारी कारी लुगा ल पहिरय, आंखी लाा खूब नटेरत हे। चूंदी मूड़ी ल फितरा के देवी, जीब लामे खूबेच नाचत हे।। माथ मा लाली के टीका सोहे, गोड़ मा घुंघरू खूब बाजत हे। एक हाथ मा फरसा धारय, दूसर खप्पर गुंगवावत हे।। बिधुन होके नाचय देवी, तन बदन हा लहरावत हे। लप लप लप जीब हा करय, जबरा दांत किटकिटावत हे। नरी मा नरमुंड माला पहिरे, भूइंया तक माला घिरलत हे। रणचंडी बन झूपय माता, जोर जोर खूब किरलत हे।। कोलिहा जंगल मा नरियावय, किलर किलर के रोवत हे। संझा सब कुकुर सकलावे, गांव बहिर सब रोवत हे।। रथिया घूघवा मन रोवय, पोटा सबके अटियावत हे। सुने सुन लोगन के रूवां, बदन मा खूब बगियावत हे।। बिहनिया सब कऊंवा रोवय, कांव कांव सब चिचयावत हे। रथिया मवेसी गऊसाला मा, बजनी बाजय रंभावत हे।। जागिस दादी, टूटय सपना, बिहनिया ल अगोरत हे। सुटुर सुटुर निकलय घर से, सुरूकूरू डोंगरी बाट जावत हे।। कुरबुर कुरबुर करय दादी, मने मन मा गोठियावत हे। जंगल मा चिरइ चिरगुन, दादी देख फड़फड़ावत हे।। बघवा चितवा खूब दहाड़े खबर सब ला बतावत हे। जंगल मा सूंघय जानय, मनुक मार चले आवत हे।। खेत खार के रद्दा टूटय, दिन बूड़त घर आवत हे। गलियन मा सन्नाटा छावय, लोगन घर भीतरावत हे।। मइया लइका ल बरजय, लइका धरइया आवत हे। घर से बहिर निकलो मत, लइका ल सब पोटारत हे।। सियान लोगन ल समझावे, घर मा रहो सब सावाचेत। सरहद मा कुकुर हा घूमय, करय सब ला चेत बिचेत।। अपन घर ला खुद संभालो, गांव तीर मा कुकुर घुमत हे। खार खेत मा घलो दिखय, जकाहा बरोबर घूमत हे।। गांव वाला मन सुनता करय, मनुक मार ला दूर खेदारत हे। दस दस चेलिक के टोली बनय, हावाधूका ल बहिर बिदारत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 25 सितम्बर 2008 ’’हमर गांव’’ शहर मा तुम पढ़थो रहिथो, भुला जथो गांव गवंइ ला। बेरा बखत मा आवत रहव, सूरता करहू तीजा नवइ्र्र ला।। तिहार बार के बनथे इहां, आनी बानी के कुत्तुर कलेवा। सूजी हलवा मडि़या के पकवा, बरा सोहांरी पपची कलेवा।। खूरमी ठेठरी सुवाद हे आला, अइरसा भजिया लार टपकाय। चीला अंगाकर गरमेगरम, चटनी संग गजब सुहाय।। बिहनिया खाथन बासी चटनी, रहय प्रोटिन के अजब भंडार। बासी खवइया रहिथे कड़मस, नी देखे वो हा रक्सहूं भंडार।। जीर्रा चटनी अउ पटवा भाजी, लइका सियान सबो ललचाय। जरी चेंच खोटनी चरोंटा, बासी भात उपराहा खवाय।। जिमी कांदा सब्जी के राजा, मन भर खाव सेहत बनाय। मडि़या पेज के गुण हे आला, झांज झोला बदन बचाय।। कोचई पाना बेसन मांगय, दही मसाला सबो सुहाय। उल्हवा उल्हवा बोहार भाजी, आमा अमली संगी बनाय।। फरा गूंझिया सुंदर कलेवा, करी लाड़ु खूबेच सुहाय। मूर्रा लाड़ू दिखब मा जबरा, पानी पियो भूख भगाय।। खीरा कलिन्दर बात निराला, मुंह मा डालो पानी ओगराय। भूख पियास ल दूर भगावे, झोला गरमी ला खूब चमकाय।। कांदा भाजी संग चना के दार, डबका बघरा सबो सुहाय। कोलयारी भाजी खूबेच मिठाथे, एकर गुण आयुरवेद बताय।। कुम्हड़ा बरबट्टी के भाजी, चना दार ल संगवारी बनाय। सास बहू के झगरा भगावे, दूनों के मया खूबेच बढ़ाय।। कुवंर भाजी मूंग उरदा के, बहुरिया सुंदर बघवा लगाय। सास ससुर मन चरचा करय, नोनी के जेवन खूब खवाय।। चना लाखड़ी के बात निराला, सोंदे सोंद मा खूबेच खवाय। किलिर कालर लइका करय, रंधइया मंुह ताकत रह जाय।। बर्रे भाजी अउ फूटू रमकलिया, मुंह के सुवाद भिनगे बढ़ाय। तोरइ डोड़का गुत्तूर गुत्तूर, बुढ़वा सियान ला खूब सुहाय।। तरिया नदिया घाट घठौंदा संगी जवंहरिया सबो मिलाय, तउंरे डूबके अउ बतियाय, सियान बरजय कहां बिलाय।। खार खेत हा सोना उगले, धान गहूं खेत मा लहराय। रहेर चना अउ मूंग उरदा, झुमर झुमर मन बहला।। दिन मा सूरज रात मा चंदा, कमइया ला रद्दा बताय। खेत कोठार मा मिले कमइया, मेहनत करे पसीना बोहाय।। रात मा चांदनी चले बयार, थकाहारा करे रथिया बिसराम। तिहार बार के नाचय गावय, काम बूता ला देवे विराम।। लोक रंग मा डूबय लोगन, गांव इन्द्र लोक बन जाय। इन्द्र धनुषी छटा बिखेरे, इन्द्र लोक घलो सरमाय।। चिरई चिरगुन रूख राइ मा, संझा बिहनिया मुरली बजाय। गलियन मा लइका खेलय, किलकारी सुन दुख बिसराय।। बड़े बिहनिया कुकरा जागय, कुकड़ंू कू सायरन बजाय। कमइया किसान जठना छोड़े, कुकरा बासत हो जाय।। संझा बेरा बरदी ओइले, दुहानू गाय हुमरत आय। घांटी घुम्मर मन ला भावे, बृन्दाबन जस गांव सुहाय।। देवारी बर गउ माता के पूजा, कलेवा खिचरी भोग लगाय। संझा बेरा गोरधन खुंदावे, गांव हमर गोकुल बन जाय।। यदुवंशी भाई नाचय गावय, कृष्ण कन्हैया परगट हो जाय। गोप बाला राधा बन जावे, वो सुख बरनय नी जाय।। गांव के धरती पावन धरती, मधुर शीतल जल बरसाय। सुबह शाम चले मखइया, तन मन हा अति हरसाय।। रथिया मोतियन के बरसा, बड़े सबेरे परगट हो जाय। बनझार डारा पाना ला, मोती शबनम दुनो नहलाय।। गांव मा बसत हे माटीपूत, सोंधी गंध महमहावत हे। फुल फुलवारी के नाता रिसता, चमन खिलखिलावत हे।। भइया भउजी, अऊ कका काकी, पावन रिसता मनावत हे। पूरा गंाव परिवार जस लागय, देख देख शिव मुसकावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 27 सितम्बर 2008 बिजली बाई गांव मा रहिथे मिटमिटही टुरी, बिजली बाई ओकर नाम। दूर देश ले आथे ओहा, जानथे सब बुता काम।। जइसे तियारबे सबो करही, हाबे बड़ चतुरा हुसयार। गरीब अमीर सबघा जावे, ओला मिलथे सबके पियार।। दिन मान धुंधरासी लागे, रथिया आंखी चमकय। बोली भाषा समझय नहीं, इसारा मा खुब मटकय।। घर दुवार खार खेत मा, पानी भरना ओकर काम। छेड़खानी ल सहय नहीं, तोला कर दीही बदनाम।। हावय चकचकही बानी के, गिजिर गिजिर करत रहिथे। देहें पांव हावय कड़मस, घाम पानी सबो ल सहिथ्ेा।। रिंगी चिंगी कपड़ा पहनय, तन बदन हा दमकत हे। बेनी जस लहरावय नोनी, चाल ओकर चमकत हे।। टीबी अस्तरी घलो चलाय, रंधइया ल करय मदद। थकासी ल जानय नहीं, ओ रहिथे हरदम गदगद।। पढ़इया मन ला बड़ बिजराथे, मिलथे ओला गारी बखाना। दिन अऊ रात धूकना धूकय, असीस देवे लइका सियान।। दिन रात खटथे बूता मा, मरवा पिरावे न तरवा। जब ओला ओतयासी लागे, लोगन झांके तरिया नरवा।। बर बिहाव मा अब्बड़ सम्हरथे, खूबेच मिटमिटावत रहिथे। बर बधू ला छोड़ के लोगन, इ हिच ला देखत रहिथे।। बिहदरा बेरा मा बिजली, रहिथे खूब मसती मा। झूमर झूमर गाना गवाथे, सोर मचाथे बसती मा।। लोगन ला खूबेच भड़काथे, हावय चुगलहिन बानी के। भड़कौनी मा आके लोगन, करनी करथे आनी बानी के।। दिन रात ये हा सेवा बजाथे, करय मेहनत मन लगा के। टांट भाखा सहय नहीं, दम लिही जान नंगा के।। मालिक के मन ला टमड़ के, कहिथे पगार बढ़ादे मोर। बजार हाट मा भाव बढ़गे, खरचा मा पड़े खूबेच जोर।। आफिस दफ्तर मा करे अंजोर, छितका कुरिया घलो सुहाय। खोर गली मा घलो घूमे, कल कारखाना मा इतराय।। मेला मड़ई मा गिंजरे फिरे, होटल दूकान मा अंडि़याय। चउराहा मा टेªफिक संभाले, चलइया ल रद्दा बताय।। शहर देखे बर बड़ पुचपुचीही, रेलगाड़ी मा करय सफर। जंगल पहाड़ सब ला घूमे, नी खोजे अपन हम सफर।। लरा जरा एकर अब्बड़ हावे, संगवारी बनावे तत्काल। जब मइके रही भरे बोजे, बिजली के घर मा सुकाल।। बिजली जस कमइया पा के, सबला मिलथे खूबेच ओत। ओकर बिना जग अंधियार, रहय सदा बिजली के जोत।। .......................................................................000.............................................................................. 20 सितम्बर 2008 पढि़स न सीखिस गरीबों के मसीहा मिलिस पदवी, ताली बजाय, पेपर छापत हे। नेता जी, खड़ा होगे अकड़ के, विकास सड़के सड़क आवत हे।। गांव गरीब किसान भाई ला, सर्वोच्च प्राथमिकता देबोन। गांव गांव मा शाला भवन, मुंह मांगा पइसा देबोन।। बनगे शाला भवन गांव मा, फीता कटय, होवे उद्घाटन। घूमय गली मा बेरा कुबेरा, आव देखय न ताव लोकारपन।। चहा पानी बर नइये फुरसद, तन मा पसीना चुचवावत हे। घूमय दस गांव एक दिन मा, नेता जी मनेमन मुसकावत हे।। जनता के दुख नी धरे कान, खोजत हे, कहां हे कैंची फीता। करय नेता, हड़बड़ हड़हड़ , फेर सुनाबो भगवत गीता।। स्कूल खूलगे, होगे भरती, स्कूल जाथे हांसत हांसत। बजाय घंटी, हाजरी चढ़ाय, आवे चरबज्जी रोवत रोवत।। चुप तोला कोई मारिन हे, रो मत, का होगे, मोला बता। स्कूल के बात स्कूले मा छोड़, कुछ होय तो गुरूजी ला बता।। बइठे बइठे लागथे असकट, नइये गुरूजी पढ़ाई नी होय। मन लगा के पढ़बो कथन, स्कूल जाय के मन नी होय।। झारा झारा खाय के मिलिस नेवता, हाथ धोवाय बइठे पंगत मा। घंटों गुजरगे, भात न कलेवा, कहां पड़ेन अइसन संगत मा।। इही हाल सर्व शिक्षा अभियान के, धोषणा करे, पइसा फेंकत हे। अढ़त के गढ़त योजना बनावे, ठेकेदार के काम, हाथ सेंकत हे।। प ग्रामीण शिक्षा आंसू बहावत हे।। मटक मटक के बजावे गाल, विकास के गंगा बहावत हे।। महतारी मनेमन सोचत हे, धर मा सुघ्घर बनी कमातिस। पढि़स न सीखिस होगे सुखियार, घर देतेन बने सगा आतिस।। .......................................................................000.............................................................................. 22 सितम्बर 2008 ’’मया के मुंदरी’’ नाक मा फूली गल मा सूतिया, दुल्लहन ला सुघ्घर सजावत हे। पांव मा पैरी कान मा खिनवा, देख देख नोनी लजावत हे।। सतलरिया करधन कनिहा खोहे, नागिन जस बेनी लहरावत हे। संगी जवंहरिया करय, ठिठोली, बात बात मा खिलखिलावत हे।। हाथ मा एैंठी बांह मा पहूंची, गोड़ मा मेंहदी रचावत हे। सुंदरी बिछिया अंगरी बिराजे, नोनी हा नी चिन्हावत हे।। अंखियन मा कजरा आंजय, माथ मा टिकली दमकत हे। अंगरी मा भूइंया ला खुरचय, मने मन दिल हा तड़फत हे।। पंच गज्जी लुगा ल पहिरे, लहंगा पोलखा समहरत हे। छिटहीं बंुदीही लुगाल देख, सब के मन हा भरमत हे।। मइंद अंगना मा मड़वा माड़े, जोत कलस जगमगावत हे। सगा सील के आवा जाही, घर अब्बड़ गदबदावत हे।। लइका मन खूब दौड़य घूपय, चिरइ जस चिचयावत हे। बरजय बात मानय नहीं, अऊ जादा इतरावत हे।। मोहरिया वाला मन ला मोहय, आनी बानी धुन सुनावत हे। डफरा वाला धुन मा झुमय, झुम झुम झुमरावत हे।। डमरू के बात हे निराला, लइका सियान डगमगावत हे। टिमिर टिमिर टासक बाजय, मंजीरा करय छिनिन छानन, सुनेच सुने बर मन भावत हे। जोक्कड़ नाचय मटक मटक के, परी सबला रिझावत हे।। गुहाटी मा पधारे दुल्हा राजा, बरतिया मन खुब नाचत हे। दनादन फूटे बम फटाका, रंग गुलाल उड़ावत हे।। पहुना मन के पांव पखारे, अक्षत टीका लगावत हे। समधी से समधी मिलय, जोहारे, गलबइहां पोटारत हे।। केमरा वाला दउंड़ दउंड़ के , आंखी मूंद बटन दबावत हे। घरतिया खोजे, दुल्हा राजा, सब झन ला धकियावत हे।। बरतिया देखे दुल्हनिया ला, मने मन मा हरसावत हे। जुग जोड़ी हा सुंदर फभय, दूनों के भाग ला सहुंरावत हे।। महतारी अइस पांव पखारिस, माथ टीका, आरती उतारत हे। मया के मुंदरी सौंपिस माता, मने मन मा सहुंरावत हे।। सहमे सहमे चले हिरनिया, आंखी हा खूब सरमावत हे। दूनों हाथ मा फुल गजरा, थोरको, संभारे नी संभरत हे।। अन्तस मा उठे तुुफान बैरी, तन बदन ला सिहरावत हे। प्रेम के बिरवा मन मा जागे, मन ला खूब लहरावत हे।। वरसम्मुख पहुंचगे कन्या, वरमाला पहिनावत हे। चरण बन्दन करिस समरपन, मन मन्दिर हरसावत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 23 सितम्बर 2008 ’’नेता जी आवत हे’’ सियान मन सब चरचा करय, नेता जी आवत हे गांव मा। स्वागत अभिनन्दन करबो, बइठाबोन मंच के छाव मा।। दरी ताल पतरी बिछाबोन, शमियाना घला लगाबोन। बेंच कुरसी घलो लगही, गली मा गलीचा बिछाबोन।। खारा मीठा काजू किस मिस, शहर ले मंगाबोन हम। सहूंरावत हन भाग ला, दिल खोल के परघाबोन हम।। टेª गिलास अउ कप पलेट, दाऊ घर ले मंगाबोन हम। नेता जी ला खुश करबो, अरजी बिनती करबोन हम।। दाई माई अउ लइका सियान, मन मा खूब खूशयाली हे। नेता आवत हे हमर गांव मा, जहन मा खूब हरियाली हे।। करबोन हम सब साफ सफाई, गुहाटी मा रंगोली सजाबोन। काम बुता सब रही बंद, नेता तिहार मनाबोन हम।। युवा मंडल महिला मंडल, संभालही सबोच काम ला। हमर बराती के होही सोर, उपर उठाही हमर नाम ला।। घर घर से आही गोंदा फुल, चुन चुन के गजरा बनाबोन। नेता जी पधारही हमर गांव मा, रद्दा मा फुल बिछाबोन।। अक्षत अउ गुलाल के टीका, माथा मा लगाबोन हम। चंदेनी गोंदा, फुल-गजरा, गला मा पहनाबोन हम।। साहंड़ा देव मा हूम दीप, पूजा पाठ अऊ जलतरपन। पूजा करही गउ माता के, खिचरी भोग परसाद अरपन।। देखाबो गऊठान के गयरी, गउ माता बर खही तरस। मयारू नेता करही घोषणा, खोधरा पटाही इही बरस।। सीमेंटी करण ला देखही नेता, गली भ्रमण कराबोन हम। सिरमिट रेती सब बोहागे, नेता जी ला बताबोन हम।। सराहा कांड़ फूटाहा खपरा, शाला भवन ला देखाबोन। बरसात मा छानी खूब टपकथे, लइका बर छतरी मांगबोन।। हावे सात कोरी पढ़इया लइका, पढ़ाथे एक मास्टर जी। कइसे पढ़ाथे एक अकेला, परगट देखही हमर नेताजी।। नवा भवन के छबना ओदरगे, फ्लोरिंग के दरसन कराबो। खोचका डिपरा मा बइठे लइका, लइका मन से भेंट कराबो।। आंगन बाड़ी सामुदायिक भवन, नेताजी ला सब देखाबोन। ठेकेदार करिस बदमासी, सबो लना खुलके बताबोन।। नेता जी हावय बड़ मयारू, सुनही हमर सब बात ला। एक एक ठन ला नोट करही, नी बिसरावे कोनो बात ला।। नेता जी के आइस चिट्ठी, केन्सिल होगे सब परोग्राम। सब झन के चेहरा उतरगे, ये का चरित्तर होगे राम।। नेता बर सब जोरा करेन, ओ हा हमला झंटयावत हे। सुख दुख मा आही कथन, जतर कतर बहंकावत हे।। हमला येहा खरचा कराइस, दिन बादर एकरो आही। लामे हे पानी के धार, किंजर फिर मछरी बेंदुवा आही।। ...........................................................................000.......................................................................... 14 सितम्बर 2008 अनन्त चतुर्दशी ’’चाणक्य’’ परम ज्ञानी अऊ महा प्रतापी, देश विदेश मा नामी विद्वान। करिया बिलवा दुब्बर पातर, मस्तक मा टीका, शिखावान।। महाक्रोधी अऊ स्वाभिमानी, राष्ट्र हित मा करय चिन्तन। कूटनीति के कुशल खिलाड़ी, अखंड भारत के करिस चिन्तन।। नाम बिष्णु गुप्त आचार्य, चाणक्य नाम से जग चाहिर। राजनीति के मुखर वक्ता, जोड़ तोड़ मा रिहिस माहिर।। छोटे छोटे राजा महराजा, गृह कलह मा रहय व्यस्त। दंभी विलासी राजा मन, आपसी युद्ध मा होगे पस्त।। तुर्क यमन आक्रमण कारी, बाज जइसे झपट्टा मारय। कुकुर बिलाई जस लड़इया, तूफानी हमला नी सम्हारय।। अखंड भारत के सपना साकार। कइसे हाही सपना साकार, उधड़ बुन मा लगगे कौटिल्य, युवा चन्द्रगुप्त होनहार।। ऊंचपूर कछावर युवक, मस्तक ओकर दमकस रहय। नालंदा के विा पीठ मा, राजनीति के अध्येता रहय।। ओ दिन ला कइसे बिसराय, मगध के राजा करिस अनादर। शिखा खोल करिस संकल्प, राजा के अही दिन बादर।। करिया बाम्हन के घुंस्सा देखबे, तोर राजवंश के होही पतन। राजसिंहासन ले तरबे तेहा, काल कोठरी मा होही जतन।। भावी राजा के रूप मा होगे, युवा चन्द्रगुप्त के पहिचान। मगध राज मा होगे मुनादी, बचाना हे मगध के शान।। जगा जगा खुलगे सिविर, युवा मन के लगिस कतार। सैन्य संगठन होन लगिस, होही अत्याचारी के तार तार।। दिन मुहरत नियत समय मा, वीर चन्द्रगुप्त करिस हमला। नवा राजा पडि़स कमजोर, मगध झोंकिस सेना जुमला।। चंन्द्रगुप्त ल नवा सीख मिलिस, मगध ल हराना हंसी खेल नहीं। गुरू चेला सोचन लगिन, बघवा कोलिहा मा मेल नहीं।। निकलगे दूनों अज्ञात दिशा मा, रथिया जहां बिताया जाय। दुर कुटिया मा दिखिस रोसनी, कोन रहिथे वहां सूंघा जाय।। महतारी, बेटा ला समझाय, चन्द्र गुप्त जइसे ते करथस। लकरधकर तोला हावय, तीर छोंड़ मइंद ला खाथस।। दूनों झन ला, आगे समझ, उहा पोह मा मिलिस सहारा। समझ मा आगे काबर हारेन, कूट नीति के लेबोन सहारा।। कोन हे बैरी कोन सहारा, एकर पहली पता लगाबो। फुलवारी बनाबो सखा मित्र ला, बैरी ला खूब मजा चखाबो।। साम दाम के नीत ला अपनाबो, दंड भेद ला घला अजमाबो। विषकन्या राजदरबार मा, जो संभव ओ सब ल करबो।। तूफान जइसे चलय चन्द्रगुप्त, मगध मा मचगे हाहा कार। दंभी राजा खइस पटखनी, चमचा चाटूकार करय चित्कार।। मगध मा आइस नवा बिहनिया, चन्द्रगुप्त बनगे युवा राजा। चाणक्य ल बनाइस महामंत्री, बधाई मा बाजय बिगुल बाजा।। चाणक्य ल अभी अराम कहां, कालदूत रावन-फिरंगी आवत हे। भारत विजय हे ओकर सपना, सिकंदर से सीमांत कांपत हे।। घर मा भूंके बहिर पूछी ओरमाय, कोई पांव परे कोई सिर कटाय। थकाहारा सिकंदर पसोपेस मा, सेना आगे बढ़ाय या पीछे हटाय।। यूनानी शिविर ला मिलिस संदेशा, तलवार उठाओ या मिलाओ हाथ। चाणक्य चलिस अद्भूत चाल, यवन बाला चन्द्रगुप्त के साथ।। बचगे मगध रक्तपात ले, चले सिकन्दर वतन के रसता। फंसगे कठिन चाल मा, सिकंदर फंसगे कठिन चाल मा, मरूस्थल बने घर के रसता।। सिकंदर के पंजा बंद, मिसिर पहुंचे हफरत हफरत। वीर उलझे चानक के जाल मा, योद्धा निष्प्राण, थमगे हरकत।। ........................................................................000............................................................................. 18 सितम्बर 2008 ’’सोनाखान के बघवा’’ रत्नगर्भा छत्तीसगढ़ मा, हावय पावन सोभाखान। हर माता के कोख ले, जनमय इहां सपूत महान।। धरती माता जननी माता, होथे दूनो एक समान। सस्यश्यामला धरती देवे, कोदो कुटकी अन्न धान।। सज्जुग त्रेता अऊ द्वापर, कलजुग होथे एक सामान। बेरा बेरा के होथे बात, कोनो साव कोनो बेइमान।। धरती उगले सोना चांदी, छत्तीसगढि़या बोले भी वाणी। सरल सुधवा सुभाव के होथे, गुस्सा मा निकले वीर वाणी।। राजवंश मा पैदा होइस, वीर बहादूर सपूत महान। दाई ददा के मयारू बेटा, नारायण सिंह ओकर नाम।। सोना खान होगे धन्य, राजा करे परजा प्रतिपाल, रिहिस दुस्ट फिरंगी शासन, राजा ला करिस बदनाम।। सूक्खा होगे परिस दुकाल, मचगे चारों ओर हाहा कार। दाना पानी बर तरसय लोगन, कंठ सुखागे करे चित्कार।। खार खेत हा दर्रा हनदिस, तरिया नदिया घलो सुखाय। रूख राई के पाना झरगे, सावां बदउर घलो सिराय।। माल मवेसी झिटका होगे, रूख राई सब मुरझाय। कीरा मकोरा घलो ओठंगे, मछरी कोतरी नरवा अंटियाय।। चीतवा बघव होगे अलोर, हूंड़रा कोलिहा करे विलाप। हथ्थी ला चलना मुस्किल, यमलोक मा होवे मिलाप।। सूवा रमली चील मंजूर, तीतर बटेर पड़की मैना। खुसरा घूघवा कौआ गिधान, कोनो ल नइये बन मा रैना।। कोठी डोली के अढि़या सिरागे, गहना गूठा घलो बेचाय। अढि़या बिन चुल्हा जुडागे, सन्सो फिकर मा मुड़ी पिराय।। मवेसी ला छोडि़न जंगल, उही बाट मा अपनो गिन। घर दुवार मा ओधाइन बेंस, बन मा काटिन दुरदिन।। कांदा कुसा ला खा के लोगन, मिटावे पेट के भूख ला। फिरंगी ला नइये चिंता, नी समझे जनता के दुख ला।। गांव मा रिहिस साहूकार, कपटी काइंया अऊ मक्कार। नारायण सिंह गीस वहां, करिस सेठ आदर सत्कार।। परे हे भारी दुकाल गांव मा, खोल दे गोदाम के ताला। भूखे जनता ला मिलही काम, बांध बंधाही नरवा नाला।। बेरोजगार ला मिलही काम, पेट भरे बर देबे अनाज। दुकाल मा होगे जिना दुभर, सेठ जी, दया कर बचा दे लाज।। आज तेहा जनता ल देबे, तोला दीही ऊपर वाला। धरम करम मा खरचा कर, किरपा करही सबके रखवाला।। धन धान्य ले भरे भंडार, गोदाम मा मुसवा खेलत हे। भूखे लांघन पेट मा मुसवा, कोरी खइरखा पेलत हे।। जगा जगा तेहा देबे काम, जग मा होही तोरच नाम। तोर मिलही सुघ्घर आसिरवाद, लोंगन करही तोला सलाम।। हमला विश्वास अऊ भरोसा हे, बात ला रखबे तेहा सेठ। जनता मा रोस हे प्रबल, हो जबे ते मटिया मेट।। काइंया साहूकार करिस रपोट, थाना ले आगे पुलुस सिपाही। साहूकार निकलिस दगाबाज, राजा ला धरिस पुलिस सिपाही।। तीर कमान टंगिया फरसा, घरे हाथ मा, करिन हमला। घुस्साये आदिवासी करे वार, निचट समझथे फिरंगी हमला।। फिरंगी बंधन तोड़ के राजा, निकलगे बीहड़ जंगल मा। संगठित होगे सब आदिवासी, कूदय लइका सियान दंगल मा।। फिरंगी चलावे गोला बारूद, आदिवासी चलावे तीर कमान। एक एक योद्धा दस दस मारे, फिरंगी पानी मंगे होगे हलाकान।। रयपुर ले आगे फौेजी दस्ता, करिन ताबड़ तोड़ मारकाट। फिरंगी भारी पड़े होगे भंग कमान, वतन रक्षा बर चलिन कुर्बानी बाट।। योद्धा होगे निस्ठुरता के शिकार, नवा सुराज के दीपक जलाइस। वीर नारायण सिंह होगे शहीद, शहादत सुराजी रद्दा दिखलाइस।। हे छत्तीसगढ़ के क्रान्ति योद्धा, तोर करत हन शत शत अभिनंदन। दीन हीन सब ला मिलही न्याय, अन्याय अत्याचार के होही दमन।। .............................................................................000........................................................................ 11 सितम्बर 2008 ’’चक्रब्यूह’’ धर्म क्षेत्र कुरूक्षेत्र मा होवय, महाभारत के युद्ध महान। गदायुद्ध हर देखते बनय, सनसना वय असि, तीर कमान।। चील गिधान झपट्टा मारय, कोलिहा कुकूर भूख भगाय। महा संग्राम बनगे, समसान, जगा जगा चिता गुंगवाय।। दिन मा चलय घनघोर संग्राम, सिविर मा रथिया करय विश्राम। दूनों दल गोल्लर जस लड़य, कब कइसे होही विराम।। कौरव दल मा होइस मंथन, चक्रब्यूह के करव रचना। चक्रब्यूह सेदन अर्जुन जानय, होइस गंभीर कूट रचना।। बिहनिया ले रणभेरी बजय, अर्जुन निकलगे दूर कहीं। कूट बयूह मा उलझगे अर्जुन, अऊ लड़त हे कहीं।। चक्रब्यूह के होगे रचना, पांडव सिविर, गमगीन बनय। होगे उदास पांडव राज, चुनौती अब संगीन बनय।। राज महल मा गिस खबर, चक्रब्यूह के होगे रचना। अर्जुन कहीं दूर लड़त हे, कौरव दल के कुटिल रचना।। पांडव दल मा होगे खलबली, अब का होही भगवान। वीर अभिमन्यू सम्हर क निकलिस, करिस माता के चरण बन्दन।। संग्राम भेस मा देख बेटा ला, आंखी दूनो भरगे माता के। पांडव दल के लाज बचाहूं, रिन चुकाहूं माता पिता के।। चरण बन्दन करिस माता के, माता छाती मा लिपटाय। वीर सावक बैठिस रथ मा, मन मा प्रभू ध्यान लगाय।। पांडव सिविर मा पहूंचे सूरमा, ताउ के करिस चरण बन्दन। भरे मन से धरमराज हा, करिस योद्धा के अभिनन्दन।। धूम केतु बन चले अभिमन्यु, रद्दा अपने आप बनय। होगे फेल द्रोण के रचना, अभिमन्यु ब्यूह भेदन करय।। एक अकेला वीर अभिमन्यु, ध्वस्त करिस ब्यूह रचना। योद्धा महारथी होगे भयभीत, मुस्किल हे तूफान से बचना।। बाज जइसे मारे झपट्टा, कौरव दल करे चित्कार। घायल मुर्दा से पटगे धरती, होगे चारों ओर हाहाकार।। शेर जइसे दहाड़े बालक, दुस्मन के कलेजा फट जाय। सूरज जइसे दमके प्रबल, दुश्मन देखत ही मुरझाय।। नागिन जइसे लहराये योद्धा, दर्जनों सिर कटय एक साथ। बड़े बड़े योद्धा थरथर कांपय, जान बचादे प्राण नाथ।। पवन वेग से चले अभिमन्यू, दुस्मन के सीना फट जाय। काल बन के झूमय सूरमा, दुस्मन के पोटा अंटियाय।। कौरव दल चिंता मा पड़गे, साजिस करय खतरनाक। नीत ल छोड़ अनीत करय, निरणय करिन शरम नाक।। सात महारथी घेरिन रथ ला, अभिमन्यू होगे रथविहीन। रथ के चक्का बनिस सुदर्शन, दुस्मन होवे प्राण हीन।। अंतिम क्षण तक अभिमन्यु, करिस दुस्मन के संहार। वीर गति ला पाइस बालक, सदा सूरता करही संसार।। सूंरवीर के पूजा सब करंय, कायर ला दुनिया बखानत हे। धरती माता सबोच के माता, संतान वत सबला पालत हे।। .............................................................................000........................................................................ 12 सितम्बर 2008 ’’दंडकारण्य’’ दंडक मुनी के पावन धरती, रिसी मुनी के तपस थली। यज्ञ हवन मा विघ्न बाधा, मचावच रक्सा मन खलबली।। होवय मंत्रोच्चार वेदों के, दंडक मन सदा प्रशंात। रक्सा मन के आंखी फुटगे, दंडक होगे परम अशांत।। निस दिन होवय यज्ञ हवन, करंय सब मंगल कमना। गिरिजन सब करंय आरती, प्रभू ध्यान मा मन रमना।। तितर बटेर नाचय कूदय, हइरना मिरगा कमर मटकाय। कोलिहा हूंड़रा गम्मत करय, बन भइसा मुड़ी झटकाय।। बघवा चितवा मैना मंजूर मूरली बजाय। मुसवा भठलिया मंजीरा धरय, रेड़वा भालू कुला मटकाय।। सूवा रमली भजन गावय, चिरइ चुरगुन सुर मिलाय। गजराज हरमोनिया सजावय, पशु पक्षी सब ताली बजाय।। दशरथ नन्दन अजोध्या ले, पधारिस दंडक वन मा। जगत जननी छइंया बनगे, लछमन चलय भाई संग मा।। दुस्ट दलन के संहार करिस, रक्षा करिस रिसी मुनी के। रावन के होइस नियत खराब, दंडक आइस खबर सुनि के।। बहुरूपिया बन कुटिया मा अइस, हरण करिस सीता माता के। रामलखन चितकार करय, सुन्ना होगे बिन माता के।। जामवंत सुगरिव, करिन मदद, पवन सुत पहूंचगे लंका मा। सीता माता के दर्शन करिस, शक्ति दिखाइस लंका मा।। बानर भालू के सेना धरके, पहूंचगे राम सागर तट मा। दिन अउ रात करिन मेहनत, रामसेतु बनाईन झट मा।। शिव जी उंहा होगे परगट, ज्योति पीठ रामेश्वरम कहलाइस। श्री राम के पडि़स चरण कमल, राम सेतु, सागर पार कराइस।। प्रभु राम करिस सर संधान, दहलगे लंका होगे हाहाकार। परिवार उजड़गे, करम फुटगे, दाइ्र्र माई करय चितकार।। भाइ्र्र बंद कतको झन समझाइन, मूरख करय उलटा वार। दंभी रावन एक न सूनय, अहंकार मुड़ी मा सवार।। बेटा अक्षय होगे कालकवलित, मेघनाथ के होगे बोलती बंद। कुंभकरण धरती मा सूतगे, अहिरावण के नजरबंद।। सोनहा लंका होगे समसान, विभीषण संभालिस राजकाज। क्रोध बैर के होगे पलायन, आग बुझाइस राजाधिराज।। पापी दुसमन ला मिलगे सजा, जनता करिस जय जयकार। प्रभु श्रीराम के आर्शीवाद, ज्योतिरमय होगे ओमकार।। ........................................................................000............................................................................. 13 सितम्बर 2008 शकुनि मामा ममा-भाचा के दोस्ती, हावय सारा जगपरसिद्ध। कहे बोले बर लागय नहीं, हावय स्वयम सिद्ध।। बइला खरीदो ममा भंाचा, हो जाव निस-चिन्त। नांगर फांदों गाड़ी चलाव, कलेश नहीं किनचित।। द्वापर जुग मा नाम कमइस, शकुनि ओकर नाम। घर दुवार ला तियाग के, रहय भंाटो के धाम।। कुरूराज जनम के अंधवा, पुत्र मोह के वसीभूत। महारानी माता गंधारी, धृतराष्ट्र के चरण दूत।। दीदी भांटो बरजय नहीं, शकूनी खूब इतराय। ममा भंाचा के खूब पटय, पांडव मन अकुलाय।। शकूनी हर सपना देखय, दुर्जोधन बनतिस राजा। पांडव मन के देश निकाला, बजा दो उंकर बाजा।। शकूनी हर हवा भरय, दुर्जोधन गाल बजाय। कौरव पांडव मन के रिसता, करेला कस करूवाय।। भाई भाई ल लड़त देख, शकुनी मन मा हरसाय। पांडव राज युधिसठिर ला, ुत क्र्रीड़ा खूबेच सुहाय।। शकुनी हर पासा फेंकिस, भंाचा एक दांव हो जाय। पांडव राज हामी भरिस, फौरन सतरंग बिछाय।। सब कुछ लगगे दांव मा, अऊ पांडव होगे कंगाल। दु्रपद सुता ला जीत के, दुर्जोधन जंघा ठोंकय ताल।। गंधार देश के शकुनी मामा, चलय कुटिल चाल। जतकी ओ चतुरा रिहिस, ओतकी रिहिस बाचाल।। लड़ने वाला लड़ मरय, हाथ मा कुछ न आय। अब पछताय से का होत हे, समय हाथ से निकल जाय।। ........................................................................000............................................................................. 9 सितम्बर 2008 राम राज के सपना रामनामी चद्दर ओढ़े एक, स्वामी जी अइस हमर गांव मा। कला मंच मा कुर्सी लगिस, स्वामी जी बैठिस छांव मा।। कोटवार के हांका परिस, सकलावत जादु कला मंच मा। खार खेत ले लहुट के, घर आइन सब लंच मा।। कला मंच के चारों खुटमा, बैठिस परजा रठ मार के। स्वामी जी माइक धरिस, शुरू करिस खखार के ।। मोर संगे संग कहू तूमन, राम राम जय सिया राम। जनता हर धरम के प्रेमी, जपत हे, जय सियाराम।। स्वामी जी कहे प्रवचन मा, राम राज मा सुखे सुख। राम नाम के अइसन असर, मिटय सब संसारी दुख।। राम नाम अंकित कर, वानर, बनाइन एक पुल महान। त्रेता युग मा बने रामसेतु, चकित हो देखय जहान।। राम नाम के महिमा अपार, समुद्र लांध लंका पहूंचे। हनुमान के शक्ति ल देख, रक्सा मन भुइंया खुरचे।। रावण दल के संहार कर, अजोध्या लहुटे प्रभु श्रीराम। राम के राज, राम ला मिले, राम करे सीताप्रति राम।। भाई भरत अऊ लखन सहित, शत्रुहन ला पियार करे। जगत जननी मां जानकी, ममता के नेवछार करे।। बघवा बोकरा सब पशु, पानी पिये एक घाट मा। बिना मोल भाव तराजू के, खरीदी होवय हाट मा।। कुकुर बिलाई संग ना खेले, कुकरा सब ला धमकाय। बघवा देख कोई डरय नहीं, चीयां चील ल चमकाय।। चोर बटमार कहीं न रहे, लोगन घर उघरा छोड़ जाय। मुसवा कुकुर भेकवा बिलाई, बिना देय कभूच नी खाय।। दुध दही के नदियां बोहाय, लेवना के रहय भरमार। सब दूधे खाय दूधे अचोय, अइसन रिहिस राम संसार।। राम नाम ला जपत रहो, जल्दी आवत हे राम राज। त्रेता म रिहिस राम राज, कलजुग मा ग्राम सुराज।। अठोरिया पंद्रह दिन मा, गांव मा आइस एक कार। कार ले उतरिन शंुड भसूंड, रहे टकला, मुड़ी चमकदार।। रक्सा बरोबर दिखत रहे, हाथ मा ठेंगा अंटियाय। डरो नहीं रहो निरभय, बोले मीठ मीठ समझाय।। गांव मा, हम खोलबोन, एक ठन सरकारी दुकान बेरोजगार ला काम देबो, आफिस बर दुहु मकान।। पहुना मन के गोठ ला सुन, जनता होगे गदगद ले। स्वामी जी के भविष्य वाणी, पइसा बरसही रदरद ले।। गांव मा खुलगे नवा दुकान, देशी दारू ओकर नाम। लोगन करे खुसूर फुसुर, का चरित्तर होगे राम।। दूध दही के सपना देखेन, घर मा आही जरसी गाय। दूधे खाबो दूधे अचोबो, बाचल होटल मा जाय।। कोठी डोली सब होगे रीता, कपाट बेंड़ी आन बेचाय। गहना गूठा सबो बेचागे, बर्तन भाड़ा धलो सिराय।। स्वामी जी हमला भलठ गिस, सपना देखेन राम राज के। घर होगे तहस नहस, ये हाल हे ग्राम सुराज के।। ..........0.......... दूध दही हा सपना होगे, गांव गांव मा दारू बेचाय। स्वामी जी चद्दर ला फेंकीस, वसूली मा बेंदरा जस नचाय।। राम राम ला जय राम करिस, बदन सफारी सूट चमकाय। सलाम बंदगी छोड़ दिस, कहे हलो हलो , हाय हाय।। पर परतिस्ठा पाये बर, नीत करम ला छोड़ दिन। धन लक्षमी कमाये बर, ईमान धरम ल बोर दिन।। नवा बोतल मा पुराना शराब, लेबल बदल पइसा कमावत हे। राम राज बने ग्राम सुराज, मीठा छोड़ करू पिलावत हे।। .........................................................................000............................................................................ 10 सितम्बर 2008 ’’कुकुर बिलइ के दोस्ती’’ कथें होनहार बिरवान के, होवत हे चिककन पात। झब्बुलाल के बेटा खब्बूलाल, सब झन ले अलग चिन्हात।। हंडि़या के एक ठन सीथा, तोरन जतन दूना होय। दिन दूना रात चउगुना, सुदी केस चंदा बढ़ती होय।। झब्बूलाल ला होइस चिंता, बेटा होगे चेलिक जवान। जात बिरादरी मा करिस चर्चा, कन्या देखो सुन्दर सग्यान।। झब्बू के मूंह उले के पहली, कन्या के लगिस कतार। देश बिदेश ले मिलिस नेवता, हमर से जोड़ो रिस्ता के तार।। अकबका गे झब्बुलाल, कइसे करंव तइसे लगथे। सुन्दर सुशील कन्या के फोटो, परी जइसे सब झन लगथे।। इस्टदेव ला सुमरिस झब्बू, तेहा मोला अक्कल दे। मोर मगज हर फिरगे माता, मोला ते बुद्धि बल दे।। झब्बू ला सूझिस उपाय, आंखी मुंद एक फोटो उठइस। महतारी बेटा ला भा गे कन्या, माता ला फौरन लाड़ू चढ़इस।। लगिन तिलक के तिथि निकलगे, मंगनी बरनी फौरन होय। सगासील मन देखिन कन्या, अइसन बहू लाखों मा होय।। दइज डोर के अतराप मा छा गे झब्बूलाल। पेटभरहा खइन खुशी मनइन, सब झन खेलिन रंग गुलाल।। बिहाव के असर होवन लगिस, नेता अफसर घर मा आय। भी आइ पी बनगे झब्बू, लक्षमी आवे बिन बुलाय।। झब्बूलाल के जांगर थकगे, कारोबार संभालिस बेटा हा। झब्बू अब करय बिसराम, बंधागे, खब्बू के सर फेंटाहा।। धन बरसा होवन लगिस, धनपति होगे माला माल। एक अगर दस के बाप बनिस, सब बेटा करिन कमाल।। बेटा मन ला सौपिस जिम्मा, एक देखय राशन दुकान। दूसर करय ठेकादारी, सबके खूलगे अलग दुकान।। नेता अफसर के मितानी, मिलिस सरकारी कोटा के जिम्मा। माल के होवे, अफरा तफरी, कोई न करय तितम्म।। रासन निकलय गोदाम ले, कहां जाय कुछ पता नहीं। मिडिया हर खूब उछालिस, प्रशासन के कुछ पता नहीं।। जागरूक नेता आगू आइस, असेंबली मा उठइस सवाल। मंत्री करिस टरकाउ बात, मचगे सदन मा बवाल।। मुड़ी गडि़या के मंत्री बोलिस, हो के रही एकर फौरन जांच। मंत्री अफसर चलिन चाल, काकरो उपर न आवे आंच।। विपक्ष अड़गे अपन बात मा, फौरन करो रपोट थाना मा। रासन घोटाला अतिक होवत हे, मुंहु लुकावत हो थाना मा।। शासन हर घुटना टेकिस, प्रशासन अइस हरकत मा। कुशासन के पोल खुलगे, खब्बूलाल होगे हिरासत मा।। कुकुर बिलाई के दोस्ती, एक दिन हो के रहि चरयि। मौका देख भूंकय कुकुर, अवसर मा बिलई गुर्राय।। ......................................................................000............................................................................... 24 सितम्बर 2008 ’’पीतर’’ कुंवार बदी के महिना आवय, पीतर मन सब सकलावत हे। कऊंवा बन सब रद्दा देखय, कांव कांव खूब नरियावत हे।। बड़े बिहनिया रक्सहूं दिशा मा, गोबर पानी मा निरपत हे। चउंर पिसान के चउंक पूरय, पूरखा मन ला सूमरत हे।। लकड़ी पाटा के आसन बनावे, फुलकंसिया लोटा मड़ावत हे। ताजा साफ पानी भरके, दतउन मुखारी परोसत हे।। तोरइ तिरइंया फूलवा लावय, तोरइ पान के पतरी बनावत हे। धूप दीप के करय व्यवस्था, चउंर दार उरदा चढ़ावत हे।। करय पूरखा मन ला तरपन, श्रद्धा सुमन चढ़ावत हे। पूरखा मन ला मिलिस नेवता, मंझनिया जेवन बुलावत हे।। बरा सोहांरी गुराहा भजिया, तोरई बरबट्टी चना बनावत हे। खीर दार भात सब रांधय, दही तुमा कुम्हड़ा मिठावत हे।। फुल कंसिया थारी कलेवा सजावे, तोरइ पान के पतरी लगावत हे। हूम दीप अउ जलतरपन, पूरखा मन ला सब बुलावत हे।। पीतर भात के भोग लगावे, पूरखा मन ला खिलावत हे। फुदक फुदक के खावे पीतर, देवे आसीस मन अघावत हे।। ........................................................................000............................................................................. 03 सितम्बर 2008 श्री गणेश वन्दना वैनायिकी चतुर्थी प्रथम सुमरंव गणेश देव ला, हे गणनायक परगट हो। भूल चूक ला क्षमा कर दे, हे सिद्ध विनायक परगट हो।। शंकर सुवन पार्वती नंदन, हे विघ्न हनता परगट हो। हे लम्बोदर गजानन प्रभू, रिद्धि-सिद्धि सहित परगट हो।। मस्तक मा, सिंदुर के टीका, हे गणपति परगट हो। दुर्ग तोला अति प्रिय हे, हे कैेलाश नंदन परगट हो।। मेवा मिस्ठान्न के भोग लगय, हे गणाधिपति परगट हो। फुल गजरा गला मा सोहे, सहज कृपालू परगट हो।। मूसक वाहन करे सवारी, हे बुद्धि बिनायक परगट हो। पीताम्बर बसन हे तन मा, हे अंकुसधारी परगट हो।। लाड़ू कलेवा तोला रूचय, हे दीनबन्धू परगट हो। दीन हीन समझ के भगवन, हे एक दन्ता परगट हो। धूप दीप अऊ पूजा आरती, हे प्रसन्न वदना परगट हो।। ’’ओम् श्री गणेशाय नमः’’ प्रथम सुमरंव गणेश देव ला, हे गणनायक परगट हो। ऋषी पंचमी 04 सितम्बर 2008 श्री दुर्गा स्तुति हे आदि शक्ति मां दुर्गा भवानी, हे सिंह वाहिनी, हो परगट मां। रक्ताम्बर बसन तन मा सोहे, हे महिषासुर मर्दिनी हो परगट मां।। सुरनर, मुनिगण सेवत निश दिन, हे खप्पर धारी हो परगट मां। मस्तक मा सोहे सिंदूर के टीका, हे खडगधारी हो परगट मां।। रक्तपुष्प के सोहे, फुल गजरा, हे त्रिसूलधारी, हो परगट मां। शुभ्भ निशुम्भ के संहार करइया, हे गदाधारी, हो परगट मां।। चण्डमुण्ड रक्सा मारय, संतन के त्रास हरे, हे जगत जननी, हो परगट मां। शंख चक्र अउ कमल हाथ मा, हे ब्रम्हाणी, रूद्राणी, हो परगट मां।। चैंसठ जोगिनी, नित मंगल गावत, हे कमला रानी, हो परगट मां। दूख हरता मइया तुम सुखदाता, अस्ट भुजाधारी हो परगट मां।। मधू कैटम पछाड़े हे रणचण्डी मां, हे अंबे गौरी, हो परगट मां। धूप दीप से करय आरती, हे दुर्गा भवानी, हो परगट मां।। दुःख दारिद्र के हरण करो मां, हे कृपानिधान, हों परगट मां। तोर दरबार मा खड़े हे भक्त जन, हे वर दायनी, हो परगट मां।। या देवी सर्व भूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः। 6 सितम्बर 2008 हरहा गरवा एक झन रिहिस लफराहा नौकर, रिहिस बड़बोला सुभाव के। काम बुता मा कोताही करय, मुंह चलावे बेभाव के।। मालिक रिहिस अब्बड़ सुधवा, सब ला समझे एक समान। चाहा पानी अऊ चोंगी माखुर, सब ला पूछय अपन जान।। खेती रिहिस दस नांगर के, दस नौकर कड़मस कमाय। दरोगा रिहिस सबके मुखिया, बनिहार तियारे हाजरी लगाय।। भीतर बाहर सब ला जाने, लेन देन मा रिहिस हुसयार। एक एक ठन के रखे हिसाब, बात करब मा जस कुसयार।। धान लुवागे अइस ओलहा, खार मा ओनारिस गहूं चना। हांक दून जातिस अब्बड़, थभकगे खेत मा गहूं चना।। बेरा मा पानी पलोइस, अउ डारिस फसल देख आंखी फुटय, रखवाली बिना होही बरबाद।। खेत रखवार करते जुगाड़, बोलिस दरोगा ला मालिक। पानी पसिया खाथन हम हा, रखवाली खुद करहूं मालिक।। सूतहूं मेंहा चना खेत मा, लारी बनाहूं मईंद खार मा। अंगेठा बार के जाड़ भगाहूं, रात पहाहूं मइंद खार मा।। उमर पहागे खेती कमावत, नी जानों में हा डर भाव ला। मोर उपर ते करबे भरोसा, सब जानत हों चोर-साव ला।। तोर उपर हे पूरा भरोसा, तब ले, सून ते मोर बात। उत्ती बूड़ती मा तरिया के पानी, भंडार मा डोंगरी, करही धात।। चोर चंडाल अउ हरहा गरवा, निझाग बेरा दूनों उतरथे। सावा चेत रबे, जागे जागे सूतबे, मूसरा खाथे कम, जादा कतरथे।। अधरतिया अइंस हरहा गरवा, चरन लागिस मइंद खार मा। खुरच खुरच गोल्लर भुंकरे, खुरखेंद मचाइस खार मा।। पहाती बेरा जागिस रखवार, आंखी रमजत ठेंगा उठइस। गोल्लर सुनिस खूब गोहार, अंखमुंदा भागे दुम उठइस।। चढ़ती बेरा गइस मालिक धर, बढ़ा चढ़ा के बताइस बात। फलाना के हरहा गोल्लर, खुरखेंद करिस लगायेंव लात।। हरहा गरवा पछाड़े जाय, उसनिंदा हस रात भर के बइठ, बनावत हे चाय, खा पी के जाबे, मन भर के।। हम निचट बसुन्दरा किसान, बनीभूती मा गुजर बसर। दिन अऊ रात सेवा बजाथन, बदला मा मिलथे दोना पसर।। जुन्ना पुराना कपड़ा लत्ता, पहिनके सहूंराथन भाग। बेरा बखत मा मिलथे मदद, मिल बांट के खाथन साग।। तुहंर परसादे जियत हन, नाक के कान कभू नी जियाने। बउगला हंस बरोबर नहीं, नीत के बात कहे सियाने।। मुसुर मुसुर मुस्काइस कहे, पुचुर पुचुर बड़ मारत हस। रात भर के उसनिंदा हावस, नानुक गोठ खूब बघारत हस।। जा घर, नहा खोर अराम कर, संजहा,रखवाली मा जाबे। पांव परिस, जावत हों मालिक, तोर नमक मोला लगे हावे।। ............................................................................000......................................................................... बइसंकी 15 सितम्बर 2008 ’’मदिरा महिमा’’ करिस एक जनहितैषी काम, गांव गांव खुलगे, दारू दुकाान। खाओं पियो और मौज उड़ाओ, चैक चैराहा, मुहाटी मा दुकान।। सपना मत देखो जरसी गाय के , लात मारे खरचा करवाय। बनाहू घर कोठा लगे पइसा, करजा मा बूड़के करम ठठाय।। छांद गेरवा , कोटना घलो लगही, चारा भूसा मा उपराहा पइसा। रतन जतन मा होवय चेंघट, जांगर थकही, बहाहू पइसा।। चेपटी के हावय महिमा अपार, यार मिलावे, महफिल सजाय। अमीर गरीब सबके चहेता, पिपाला छलके, वंक राजा बन जाय।। बियर बरांडी हर्रा, सबो मिलथे, चेपटी होथे, थान निराला। मिक्चर मटन भजिया गोंदली, खाओ पिओ, स्वाद हे आला।। कहां जेहू, मन्दिर गुरूदुवारा, रहे दिन रात खूला, मधूशाला। समाजवाद के दरसन परसन, प्रगट करावय मधुशाला।। हाथ मा पियाला, मुख मा हाला, नित जस्न मनावय मधुशाला। छटठी बरही , बर बिहाव मा, खूब रंग जमावय मधुशाला।। मेला मड़ई, बजार हाट मा, भक्तन के रहे, भीड़ अपार। पोरा हरेली, देवारी दसराहा, मधुशाला करे, सब ला पियार।। जिगरी दोस्त जिगर के टुकड़ा, सगा सील के, सम्मान बढ़ाय। आरटी पारटी, जहां कहीं होय, मधुशाला सबके कदर बढ़ाय।। खुद पिओ, पिलाओ सब ला, दारू के नदिया बोहावत हे। आंगन मा पिओ, भट्ठी मा पिओ, मधुशाला सब ला नहलावत हे।। शासन करत हे नेक काम, बेवहार मा, मदिरा रामबाण। शासन के भरय, कोठी खजाना, आबकारी विभाग हे परमाण।। मन मा दारू रग रग मा दारू, दारू सर्वब्यापी, अंग मा समाय। शासन मदिरा के सम्मान बढ़ाय, गांव मा जगा जगा दारू बेचाय।। ..........................................................................000............................................................................ पोला- 30 अगस्त 2008 सोन चिरइया दूनो हाथ जोड़ करय बंदगी, मस्तक पसीना चुचवावत हे। गला गमछा लहराय, आंखी हा भिचभिचावत हे।। चैक मा नेताजी के आम सभा, झरफर झरफर रेंगत हे। जिन्दाबाद, नेताजी के जय हो, जोश मा जनता चिल्लावत हे।। आम सभा के दर्शक ल देख, नेता जी भारी गदगद हे। भरे जड़कला तन बदन मा, कारी पसीना पझरत हे।। उद्घोषक एनाउन्स करय, हार्दिक स्वागत अभिनन्दन हे। कोल्लर भर फुल गजरा, अऊ बोरा भर बन्नदन हे।। नेता जी ठीक करिस टोपी, अउ थाम लिस माइक ला। मयारू जनता ला हाथ जोडि़स, परनाम करिस माइक ला।। हमर भाइ्र्र मन के सहयोग, अऊ दाई मन के आर्शिवाद। दुस्मन जरूर पटखनी खाही, तुहंर लाख लाख धन्यवाद्।। ढ़ोंगी कोढि़या लफराहा मन, भूइंया मा छटपटावत हे। हमर जइसे कड़मस ला, दुनिया कइसे सहुरावत हे।। असली छत्तीसगढिया ला, हम बना के रबो राजा। ढ़ोंगी कपटी कोढि़या बर, नई खुले राज दरवाजा।। जरूरत मंद ला देबो हम, रोटी मपड़ा अऊ मकान। पानी अऊ बिजली मिलही, खेती मा आही मुस्कान।। हर गांव के पाठशाला मा, नौबत नी आय ताला बंदी के। पुलिया कपटा बनाबोन हम, बाधा नी आय नाला नंदी के।। उन्नत खेती करय बर, बीजा दवाई मिलही तुंहला। दवा खातु मिलही बेरा मा, झइन ताको ककरो मुंह ला।। बस्तर ले रक्सा भगाबो, अमन चैन जरूर अही वहां। आदिवासी मन के जीवन बनही, किंजरइया फिरइया जहीं वहां।। गली मा होही सीमेंटीकरण, भ्रस्टाचार ला भगाबोन हम। यंत्री संत्री मा लगाम कसके, प्रजातंत्र लाबोन हम।। हर हाथ ला काम देबो, मिलही गारंटी रोजगार के। सबके रक्षा करबोन हम, बनिहार कुली कामगार के।। हर बनवासी ला मिलही हक, घर जमीन अऊ जंगल के। सबके सपना पूरा होही, जरूर, जंगल मा मंगल के।। कल कारखाना के आसपास, खेती के होथे खुब नुकसान। कंपनी मालिक करही भरपाई, पइसा पाही गरीब किसान।। पंन्द्रा किलोमीटरा हछल मा, ओहा करही विकास के काम। गांव वाला मन कंपनी, सबले पहली दीही काम।। स्वास्थ्य परीक्षण घलो करही, शाला सड़क बना के दीही। पानी अऊ बिजली के परबन्ध, गांव ला सुघ्घर बना के दीही।। खेती वाला अफसर मन, आफिस छोड़ खेत मा घुमही। सब रोग राई दूर भगाही, धान गेंहू खेत मा झूमही। पी एस सी के प्रतियोगी परीक्षा, नियमित होही हर साल। छत्तीसगढ़ मा ला के रबो, कार्यक्रम अनूठा बेमिसाल।। अनुभव अउ विश्वास हावे, हमर पास हमर दल मा। जतर कतर ला देखो मत, फंस जाहू तुम दलदल मा।। जान लो हर चमकने वाला, कभू नी होवय असल हीरा। बाद में पछताहू जबरा, कोन सुनही तुहर पीरा।। हमला जानत हो पहिचानत हो, वोट मिलही तुंहर सबके। गांव गरीब किसान मजदूर, प्यार मिलही आप सबके।। कोई न हो फालतु बइठांगुर, न रहे किंजरइया फिरइया। एक दिन जरूर बनके रही, छत्तीसगढ़ सोन चिरइया।। सबके तरक्की सबके भला, ये हमर सबला गोहार हे। दाई बहिनी दीदी ला राम राम, भाई मन ला हमर जोहार।। .......................................................................000.............................................................................. 05 सितम्बर 2008 गुरू वन्दना प्रथम सुमिरन गुरूदेव ला, करत हो तुहर चरण-वन्दन। गला सोहे फुल गजरा, माथे मा टीका चंदन बंदन।। सर्व पल्ली डाॅ. राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन के ज्ञानी महान। पांच सितम्बर जनम दिन मा, सम्मानित होथे शिक्षक महान। भारत मा पढि़स-लिखिस, पढ़ाइस देख विदेश मा। भारतीय दर्शन के सही रूप ला, फैलाइस देश विदेश मा।। सोवियत रूस मा बनिस राजदूस, बढ़ाइस रूस-भारत मितानी। बी. एस. पी. ला करिस मदद, आड़े दिन काम आइस मितानी।। उपराष्ट्रपति बनिस भारत के, राज्य सभा के सदर। दार्शनिक राजा के आचार-विचार, ृ मन ला भाइस, छूगे अंदर।। राष्ट्रपति बनके, राधाकृष्णन, बनिस राजा हिन्दुस्तान के। पूरा होगे सपना, अफलातुन के, नाम उजागर करेन हिन्दुस्तान के।। धर्म राजनीति के कोरे समन्वय, लिखिस ग्रंथ कई ठो महान। भारतीयता के करे वकालत, अध्यात्म शक्ति हे महान।। रूसी मुखिया क्रुश्चिेव पूछिस, हमर देश तोला कइसे लागिस। भौतिक विज्ञान करय तरक्की, अध्यात्म मरणासन्न लागिस।। भारत देश के यहाभाग, सर्वपल्ली जइस सपूत महान। पांच सितम्बर शिक्षक दिवस, त्याग तप बनावे व्यक्ति महान।। राष्ट्र निर्माता गुरू ज्ञान के भंडार, मन रोवे मुखड़ा मा मुस्कान। शिक्षक दिवस मा हमर संकल्प, मिलही ज्ञान करो गुरू सम्मान।। ...........................................................................000.......................................................................... 15 अगस्त 2008 छत्तीसगढ़ पुरान सुनो संगवारी सुनो मितान, ध्यान लगा के तुमन सुनहू। सुनावत हो कथा कहानी, मने मा खुबेच गुनहूं।। एक झन आइस मंगन बनके, चिरहा फटहा कपड़ा लत्ता मा। हम का जानन सुधवा मन, वो खेलिस आगी इंगरा मा।। सज्जुग त्रेता अऊ द्वापर, अभी चलत हे कलजुग। छत्तीसगढि़या नइ बदले, सबो जुग ला समझे सज्जुग।। पावन गंगा कस दिल रखथे, हमर छत्तीसगढिया भाई मन। छल कपट ला कभू नी जानय, भाई बहनी अऊ दाई मन।। माटी के ओ वेद पुराण सब बनावत हे। मत कर घमंड रे पाखंडी, आगे जमराज गुरबित हे।। रथे गांव के जोगी जोगड़ा, होवय आन गांव के सिद्ध। हमर सुभाव ला जानत हे, मेहमान नवीसी मा परसिद्ध।। पहुना बनके घर आइस, बैठिस खटिया के पाटी मा। खुद पसरगे खटिया मा, हमला धकयाइस माटी मा।। हम तो ठहरे धरती पूत, कहलाथन छत्तीसगढि़या। पसीना बोहात करथन मेहनत, बासी खाथन पीथन मडि़या।। बघवा खाल ला ओढ़के कोलिहा, बनगे, ओहा जंगल के राजा। राज काज के मरम नई जानय, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।। कोलिहा राजा के हाव भाव ल देख, जनता के मन मा होइस शंका। अब तो भेद खुल के रही, बजाईन सब मिलके डंका।। हुआं हुआं करिन सब कोलिहा, राजा ला घलो लगिस हुआंस। राजा पन ला भुलगे कोलिहा, हुआं हुआं कर करिस खुलास।। चारों मुड़ा ले दोडि़स परजा, खुलगे भेद खुलगे राज। आंखी ल नटेर दिस कोलिहा, जंगल मा आगे सुराज।। मंत्रालय मा बइठे बइठे, मेछरावत हे सब मंत्री मन। रक्षक हा भक्षक बनगे, अंटियावत हे संतरी मन।। बंगदेश के नकसल बाड़ी ले, पसरत हे खूनी सलाम। सत्ता दलम थरवित हे, जनता के होगे हाल बेहाल।। पूरे छत्तीसगढ़ मा पसरगे, आतंक अराजकता के राज। सुध बुध लेवइया कोनो नइये, मौज करत हे खुनी बाज।। बेसरम कंत्री मंत्री सबझन, मिथ्या बजावत हे गाल। भ्रष्टाचारी सब यंत्री संत्री, मनमौजी खेलत रंग गुलाल।। सड़क भवन तरिया डबरी, भ्रस्टाचार के कहे कथा। आंख के अंधरा कान के बहरा, कोन सुनही हमार ब्यथा।। शिक्षा कर्मी के नाम पर, बेरोजगार होवय हलाकान। दलाल दलम सक्रिय होगे, चलगे रिस्वत के दुकान।। सत्ता पाये के खातिर कपटी, आदिवासी मन ला भरमाइस। सरल सुभाव के आदिवासी, लबरा के छलावा मा आइस।। एक ठन गाय दूहूं किहिस, झूठ बोलिस लबरा हा। कतको छिपाबे ते हा लबरा, छलकत पाप के गगरा हा।। कुकुर भरय मुड़ी के घाव, मंगन भरे गोड़ के घाव। तेहा कतको सफाई देबे, नइ भुलाय लबरा के नाव।। सलवा जुडुम के नाम पर, होत हे बस्तर के विनास। उड़न खटोला मा उड़े मंत्री, कहे, होत हे बस्तर के विकास।। आगू आगू एस पी ओ चले, पाछू चले पुलुस जवान। फिरंगी चाल चले ओमन, जनता ल करे हलाकान।। ये हा राहत सिविर नहीं, बनगे जलिया वाला बाग। ओ डायर बनके बैरी, बरसावत हे शोला आग।। कहां जहु तुम काशी नगरी, जा के देखो बस्तर मा। पूरा बस्तर समसान बने हे, सूल चलत हे अन्तस मा।। धू धू कर चिता जलत हे, पूरा बस्तर गुंगवावत हे। सत्ता दलम सैर मा निकले, हाथ सेकय जाड़ भगावत हे।। खेती किसानी के मत पूछो हाल, बेरा मा खातु मिलय न बिजली। मांगों तो होथे टोटा फांसी, किसान के उड़ाथे खिल्ली।। लोगन पूछत हे बारमबार कब किसान के दिन बहूरही। कोढि़या लफराहा ल भगाओ, कड़मस लाओ किसान के दिन बहुरही।। छत्तीसगढ़ महतारी के ललाट, दमकत हे, भूजा फड़कत हे। छत्तीसगढ़ मा आही, नवा बिहनिया, अइसन लक्षण महकत हे।। .......................................................................000.............................................................................. 25 अगस्त 2008 उड़न खटोला फुरफूंडी पुरान रैनएयरवेज के उड़नखटोला, होगे शासन के, जी के काल। दंडक वन मा रक्सा घूमय, गट सांप के बिला मा छूछू घूसय, लीलत बनय न उगलत। गृह मंत्रालय ठाढ़े सुखागे, करन लागिस हरकत।। कहां लुकागे उड़न खटोला, चारों मुड़ा मा भेजो दूत। ऐसी ले निकलय नहीं, कागद मा करय करतुत।। बघवा खइस के चितवा खइस, गृह मंत्री हर करय विचार। राम नाम होवय सत्य, सोचत हे बारम बार।। पवन रथ फुरफुंडी अस उड़ैया, ते कहां उतर गय मोला बता। मरघट मा उतरे, कि पन घट मा, बीहड़ मा कहां समागे ये बता।। हे यज्ञ देव ते हो जा परगट, लगिन मुहरत लकठावत हे। यज्ञ पुरोहित आके बइठे हे, घड़ी देख छटपटावत हे।। चुनावी शंख बजा के बैरी, दनादन नंगाड़ा ठोकत हे। हमर योद्धा महारथी मन, चेथी खजवाय खिसयावत हे।। हे फुरफुडी ते हो जा परगट, में घर के होयेंव न घाट के। गृह मंत्री हर चिंता मा पड़गे, होवत हे चर्चा बाजार हाट में।। एस पी जारी करय फरमान, नरवा देखो ांको। जंगल पहाड़ ल छान मारो, कोई कसर न बाकी राखो।। हुकूम करइया ला करन दे, आओ चलो खैनी फांको। दम मारो सुस्ती भगाओ, रखो सामान गाड़ी हांको।। एक ठन गांव मा पूछेन हम हा, तुमन ला इहां कुछ दिखिस हे। लबारी हम काबर कहिबो, उत्ती डहर ले निकलिस हे।। सच कहत हो तुमन दादी, उत्ती ले उथे, बेर जाथे बूड़ती मा। हमर बइठे के बेरा नइये, हमू जावत हन बूड़ती मा।। हवलदार पूछे दादी ला, कतिक रिहिन दूकोरी दस। अरे बाप रे फौरन फुटो यहां से, हमर संख्या हे पांच कम दस।। बीबी बच्चा रद्दा देखत होही, दरसन बर तरसत होही। बिहनिया ले मुन्ना स्कूल जाथे।। ददा बिना वो हर रोवत होही।। दिहि डोंगर ला देख डारेन, अऊ देखेन जंगल झाड़ी ला। रूख राई ला पूछ डारेन, अउ खंगालेन कचरा काड़ी ला।। बेंदरा भालू ला घलो पूछेन, अऊ पूछेन चील गिधान ला। हे नाथ नई पायेन विमान ल ।। दंडक बन मा रक्सा के राज, हुकुम बिना हवा चले न पानी। नेता अफसर रयपुर मा बइठे, गाल बजाय करे सियानी।। नरवा देखेन ांकेन, खेत खार ला छान मारेन। रूख राई ल चढ़ के देखेन, गाड़ी ल छोड़के पैदल घूमेन।। चितवा बघवा हांव ले करे, बन भइसा मारे बर कुदाय। गिरत हपटत भागेन हम हा, ले देके परान बचाय।। पहली दफा सपेटा मा परगेन, नी देखे रेहेन ददा पुरखा। सहेब सुदा मन एसी मा बइठे, हमला समझथे निचट मुरखा।। पानी पुरा ला तउंर के नहाकेन, अऊ पुछन कमइया किसान ला। जोन ला पुछो मुड़ी डोलाथे, हे नाथ नी पायन विमान ला।। कब लहुटही नोनी के बाबू, परेशान परिजन करे चित्कार। नाक कान मा पोनी गोंज के, सूते हे उंघरी सरकार।। भाई भइया के मयारू भइया, तोर बिन होगे घर सुन्ना। चेत बिचेत पड़े गुडि़या, भूखे लांघन सोवत हे मुन्ना।। बिलख बिलख के पत्नि रोवय, चारों मुड़ा मा होगे अंधयार। सूसक सूसक के बेटा रोवय, कब मिलही पापा के पियार।। दाई ददा के दुलरूवा बेटा, कब लहुटही घर संसार। रोवत रोवत आंखी भरगे, गंगा जमुना बोहावत हे धर।। तरा जरा मन देख रद्दा, संगी साथी कब के अगोरत हे। शासन ला नइये ककरो चिंता, फीता काटय ताली बटोरत हे।। चारो धर मा मातम छागे, जस्न मनावत हे सरकार। टेटका असन रंग बदलय, महिनो गुजरगे नई मिलिस, बात बनावत हे सरकार। सावन के अंधा ला हरिहर सूझे, जन पीड़ा से ओला का दरकार।। .............................................................................000................................................................... .. क्रमांक शीर्षक 1. चाणक्य 2. चक्रब्यूह 3. दंडकारण्य 4. शकुनी मामा 5. राम राज के सपना 6. कुकुर बिलाई के दोस्ती 7. श्री गणेश वंदना 8. श्री दुर्गा स्तुति 9. हरहा गरवा 10. मरखंडी गाय 11. सोन चिरइया 12. गुरू वन्दना 13. छत्तीसगढ़ पुरान 14. फुरफुडी पुरान 15. मदिरा महिमा 16. सोनाखान के बघवा 17. पढि़स न सीखिस 18. मया के मुंदरी 19. नेता जी आवत हे 20. पीतर 21. हमर गांव 22. बिजली बाई 23. देवी दरसन 24. देवी पूजा 25. मयारू माता 26. बखरी के तूमानार 27. झगरा 28. कुकुर देव 29. लकड़हारा 30. श्रद्धा भक्ति 31. पिंजरा के सुवा 32. बगुला भगत