शनिवार, 3 मई 2008
कुर्यात सदा मंगलम
सृष्टि के रचियेता ईश़्वर ने मानव को श्रेष्ठ कर्मो को करने के लिए रचना की है । मनुष्य योनि मे जन्म लिए व्यक्ति का यह धर्म है की वह सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए कर्म करे। मानव ने समाज का संगठन भी इसीलिए बनाया कि वह पथ भ्रष्ट न हो कर श्रेष्ठ मार्ग पर चल सके। हर जाति ,धर्म ,सम्प्रदाय , समाज ,देश,मे अलग अलग संगठन सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए ही बनाए जाते है । सभी धार्मिक सामाजिक आर्थिक तंत्र किसलिए कार्य करते है ? मात्र मानव हित के लिए ,मानव की समृधि के लिए ,मानव कल्याण के लिए । पर क्या यह यथार्थ मे दिखाई देती है ? तथ्य यह है कि लोग संगठन का ,समाज का, धर्म का सिर्फ़ संकुचित स्वार्थ के लिए उपयोग करते दिखायी देते है । लेकिन ऐसा क्यो ? आज भी परिवार जाति कुटुंब जैसी सामाजिक संस्थाओ का अस्तित्व सिर्फ़ समाज के कारण ही अस्तित्व मे है ।
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