शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008
छत्तीसगढ़ मे गोवर्धन पूजा की छुट्टी क्यो नही ...
छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जानने वाले इस बात को अच्छी तरह से जानते है की यंहा का सबसे प्रमुख त्यौहार गोवर्धन पूजा होता है ग्रामीण संस्कृति मे क्रषि आधारित त्योहारों को महत्त्व प्रदाय किया जाता है ओउर चूँकि हमारी संस्कृति पूर्णतया ग्रामीण कृषी आधारित संस्कृति है इसलिए इस त्यौहार की महत्ता ही अलग है लोग कितने ही दूर कमाने खाने गए हो उनकी कोशीश रहती है की देवारी तिहार अपने घर गाँव मे मनाये । जब यंहा के लोग दीवाली त्यौहार का जिक्र करते है तब उनके मन मे जेहन मे सिर्फ़ गोवर्धन त्यौहार ही होता है मध्यप्रदेश के अलग होने के बाद जब सरकारी छुट्टिया घोषित की गई तब से अब तक गोवर्धन पूजा को सिर्फ़ एइच्छीक अवकाश की श्रेणी मे रखा गया है यह इस बात को इन्गीत करता है की इस राज्य के नौकरशाह ओउर सत्ता मे बठे अब तक के लोग कितने सवेदनशील यंहा की संस्कृति के लिए है सुदूर देहात जंगल गाँव से चुनकर गए हमारे जनप्रतिनिधियों की यंहा की संस्कृति के प्रति उपेक्षा ओउर शहरी संश्र्ती के प्रति उनके लगाव का भी पता चलता है इस राज्य मे बैठे आई ऐ एस ओउर वरिस्थ नौकर शाहों के यंहा की सांस्कृतिक सामाजिक धार्मिक ज्ञान की पोल खोलता है जो अब तक सोये हुए है और ग्रामीण संस्कृति की उपेक्षा कर रहे है
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आपका चिंतन जायज है, आदरणीय, मैं कल इस पर विस्तृत टिप्पणी करता हूं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चिंतन
जवाब देंहटाएंसही बात ल कहात हस गा । हमर असन गाँव वाला मन बर तो देवरी तिहार मतलब गोबर्धन पूजा राहय । शाहर मे आय के बाद जानेन कि लक्ष्मी पूजा ल शाहर वाला मन देवरी तिहार कथे ।
जवाब देंहटाएंउप्पर मे बैठैया, शाहर के रहैया साहब मन ह गाँव के तिहार ल नइ जाने । उप्पर मे हमर ग़ाँव के एको झन लइका ह जे दिन बैठही ते दिन गोबर्धन पुजा के पुरा छुट्टी मिलही , अव तब तक हमन ल आधा छुट्टी मे काम चलायल लागही ।
ठाकुर गुरूजी,
जवाब देंहटाएंमैंने आपका लेख पढ़ा, बहुत ख़ुशी हुई आपको यहाँ देखकर, मैं दल्ली राजहरा के क्रमांक १ से १९९९ में पढ़कर निकला हूँ.