रविवार, 1 जून 2008

छत्तीसगढ़ की संस्कृति मे उभरते नासूर

छत्तीसगढ़ की संस्कृति पूर्णतः ग्रामीण संस्कृति है ,सदियों से यहाँ के लोग सामाजिक सहिष्णुता सदभाव पूर्वक निवास कर रहे है ,पर आज की क्षुद्र राजनीतिक हितों ने इन वर्गों को बाटने का कार्य कर रही , जातिगत सम्प्रदाय धर्म के आधार पर इन्हे विभाजित किया जा रहा है ,विभिन्न जाति के जातिगत नेता भी इन्हे भुनाने के लिए राजनीतिक दलों के कारिंदा बन कर कार्य कर रहे ,न तो इन्हे अपने समाज की फिक्र है न उस राजनीतिक दल के सिद्धांतो से इनका कोई वास्ता है ये सिर्फ़ राजनीतिक अवसर वाद के नमूने मात्र है ,खासकर यह परिपाटी शोषित दलित जातियों मे कुछ ज्यादा ही है ,इन वर्गों की समस्याओ ,पीछडेपन,का लाभ उठाने के लिए इन वर्गों मे कुछ ऐसे नेताओ की जमात खादी हो गई है जो तरह तरह के संगठन बनाने मे माहिर है एन केन सत्तारूढ़ दलों के नेताओ की जी हुजूरी कर उनसे नजदीकी बढ़ाना और निहित स्वार्थ के लिए उपयोग करना इनका शगल है ,कुछ तो कुछ पत्रिकाओ का प्रकाशन भी शुरू कर चुके है जिसमे उनकी जमात के लोगो का लेख या स्तुतिगन होता है , और सबसे बड़ी विडम्बना की बात यह है की ये सिर्फ़ शहरो मे केंद्रित रहते है आज भी छ ग मे ग्रामीण समाज की संख्या ज्यादा है पर इन्हे उनकी समस्याओ से लेना देना नही है ,

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